अज़ब ग़ज़ब अरुणांचल प्रदेश

यहाँ की महिलाये अपने को कुरूप दिखाने के लिए करती है अजीबो गरीब प्रयोग

जहाँ एक तरफ अपनी सुंदरता को बढ़ाने और उसका प्रदर्शन करने के लिए आम महिलायें हज़ारो रुपये खर्च करने के साथ अजीबो गरीब प्रयोग करने में नहीं पीछे नहीं रहती वही अपने देश में एक ऐसी भी जगह है जहाँ की महिलाये अपनी सुंदरता को छिपाने के लिए तरह तरह के प्रयोग करती है ! यहाँ ऐसा भी नहीं है की ये चलन कोई हाल में शुरू हुआ हो ये चलन प्राचीन काल से ही चला आ रहा है !

जी हाँ ये कहानी है भारत के अरुणाचल प्रदेश के अपातानी या तनव कबीले की  जिसको स्‍थानीय भाषा में अपा या अपातानी के नाम से जाना जाता है. यह अरुणाचल प्रदेश के निचले सुबानसिरी जिले के जीरो घाटी में रहने वाले जनजातीय समूह है.

अरुणाचल प्रदेश के अपातानी कबीले की महिलाएं नाक में जेवर के बजाए लकड़ी की एक मोटी बाली जैसी पहनती हैं. आमतौर पर आभूषण सुंदरता को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल होते हैं, लेकिन अपातानी समुदाय की महिलाएं सुंदरता को छुपाने के लिए ऐसा करती हैं.किस्से कहानियों के मुताबिक अपातानी कबीले की महिलाएं अपनी सुंदरता के लिए मशहूर थीं. पुराने समय में कई बार दूसरे समुदाय के पुरुष अपातानी महिलाओं का अपहरण भी करते थे. एक बुजुर्ग अपातानी महिला के मुताबिक अपहरण से बचने के लिए महिलाओं से नाक में लकड़ी पहनना शुरू किया.ऐसा कर महिलाओं ने खुद को कुरूप स्त्री के तौर पर दिखाने की कोशिश की. दोनों तरफ नाक छेदने के साथ-साथ माथे पर एक लंबा काला टीका भी लगाया जाने लगा. ठुड्डी पर पांच लकीरें खीचीं जाने लगीं.पंरपरा के रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक यह रिवाज पहुंचा.

इस रिवाज को अपनाने वाली महिलाओं को स्थानीय समाज में सम्मान मिलता था. लेकिन 1970 के दशक के बाद धीरे-धीरे यह परंपरा खत्म होने लगी है.अरुणाचल प्रदेश के सबसे ऊंचे जिले में रहने वाला अपातानी कबीला कृषि के जबरदस्त तरीकों के लिए भी मशहूर है. बेहतरीन पर्यावरण संतुलन के चलते ही यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर का दर्जा भी दिया.

ये मछली खेतों में छोड़ी जाती है. अपातानी घाटी में मछली पालन काफी प्रचलित है. यहां के लोग मछली, बांस, चीड़ और कृषि में संतुलन साध चुके हैं. जून और जुलाई में खेतों में छोड़ी जाने वाली ये मछलियां सितंबर व अक्टूबर में पकड़ी जाती हैं.

लेकिन इतिहास बनती यह संस्कृति आज धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है. अब अपातानी की ज्यादातर महिलाएं नाक में बड़े छेद कर लकड़ी की बाली नहीं पहनती. ये परंपराएं अब सिर्फ कबीले के बुजुर्गों में दिखाई पड़ती हैं.

इस कबीले की महिलाओं का ये अजीबो गरीब रिवाज़ के धीरे धीरे समाप्त होने से अब ये देश की मुख्यधारा में भी शामिल होने लगी है जो एक सुखद परिवर्तन का इशारा है !

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राजेंद्र सिंह

राजेंद्र सिंह (सम्पादक)

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