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घर में नहीं दाने अम्मा चली भुनाने, जिला चिकित्सालय प्रशासन पर फिट बैठ रही ये कहावत

जहां जर्जर केबिलों के कारण ए सी बन्द करने की करनी पडती है गुहार वहीं दिन में भी जलती रहती है चिकित्सालय की तमाम लाइट

गोण्डा। जीं हां चिर परिचित और बहु प्रचलित इस कहावत को चरितार्थ होते देखना हो तो बाबू ईश्वरशरण जिला चिक्सिलय पधारिये यहां आपको इस कहातव का जीता जागता प्रमाण दिखाई दे जायेगा, इतना ही नहीं इस घनघोर अव्यवस्था पर यहां के जिम्मेदारों का जो जवाब सुनाई देगा वह आपको और भी हैरत में डाल देगा।

अनियमितताओं और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा बाबू ईश्वरशरण जिला चिकित्सालय प्रशासन अपने कारनामों से बाबू ईश्वर शरण के नाम को भी कलकिंत करने से बाज नही आ रहा, ताजा मामला भी कुछ ऐसा है जिसमें इस भीषण गर्मी में चिकित्सालय की सुचारू व्यवस्था के लिए इलेक्ट्कि विभाग को जहां पूरे चिकित्सालय मे चल रहे लगभग 35 वातानूकूलन यंत्र में से कुछ को बन्द करने की गुंजारिश करनी पडती है ताकि वर्षो पुराने जर्जर हो चुके केबिल के सहारे संचालित हो रही विद्युत व्यवस्था में किसी प्रकार की बाधा न उत्पन्न हो वहीं दूसरी तरफ चिकित्सालय प्रशासन अपनी आंखों पर दिन में ही पटटी बांध अनावश्यक जल रही लाइटों को देख कर भी अनदेखा करते हुए विद्युत का दुरूप्योग कर रहा है। हैरानी तो तब होती है जब इस विषय पर बिना सोचे विचारे बयान देते हुए प्रमुख अधीक्षक यह तक कह डालते है कि मै अपने वाहन से आता हूं इसलिए जलती हुयी लाइटों को देख नहीं पाया।

सोमवार की दोपहर लगभग तीन बजे जब समाचार वार्ता की टीम अचानक जिला अस्पताल पहुची तो वहां एक नहीं दर्जनों लाइटे जलती हुयी दिखाई दी जिनका दिन में खासकर दोपहर के समय किसी तरह का कोई भी उपयोग नहीं था, दोपहर तीन बजे जल रही लाइटे इस बात का प्रमाण थी कि वे रात्रि में जलाई गयी होंगी और अभी तक जल रही होंगी।

बाबू ईश्वरशरण जिला अस्पताल के विद्युत व्यवस्थापक के अनुसार अस्पताल के केबिल काफी पुराने हो चुके है समय के साथ अस्पताल में विद्युत की आवश्यकता भी काफी बढ गयी है जिसका लोड पुरानी और जर्जर केबिल बर्दाश्त नही कर पा रही इस वजह से आये दिन फाल्ट आती रहती है इस समस्या से बचने के लिए पुरे परिसर में लगाई गयी लगभग 35 वातानूकूलित यंत्रों में से गैर जरूरी यंत्रों को बन्द रखने के लिए अस्पताल प्रशासन से गुहार लगाई जा रही है जिससे अस्पताल की जरूरी व्यवस्था बनी रहे और मरीजों को परेशानी का सामना न करना पडे। ये तो रही विद्युत व्यवस्थापक की बात जिसे अस्पताल के प्रमुख अधीक्षक डा0 रतन कुमार भी स्वीकार करते है परन्तु जैसे ही उनके यह बात पूछी जाती है कि जब एक तरफ सुचारू व्यवस्था के सचालन हेतु यंत्रों को बन्द करने की भी नौबत आ जाती है तो फिर दिन में जल रही इतनी सारी लाइटों का क्या औचित्य है वैसे ही उनके सुर बदल जाते है और वे जैसे बिना सोचे विचारे अपने बयानों से ही अपनी लापरवाही को उजागर करने लग जाते है।

सवाल के जवाब पर पहले तो प्रमुख अधीक्षक डा0 रतन कुमार अपना रटा रटाया जवाब देते है कि यह इलेक्टि्ीशियन की लापरवाही है उसे देखना और बन्द करना चाहिए इसके लिए उससे जवाब मांगा जायेगा। लेकिन जब उनको उनकी भी जिम्मेदारी का अहसास कराते हुए यह बताया जाता है कि लाइटे सुबह से ही जल रही है इतने देर में आप भी कार्यालय से बाहर और अन्दर कई बार आये गये होगें, क्या आपको दिन मे ंही जल रही लाइटें नहीं दिखाई दी तो उन्होनें जो जवाब दिया उस पर उनकी कर्तव्यपरायणता पर हसंने के सिवा और कुछ नही रह जाता, सवाल पर उन्होनें जवाब देते हुए कहा कि मैं अपने वाहन से आता हूं इसलिए जल रही लाइटो को नहीं देख पाया, अब यह उनका कैसा वाहन है जो उनके कार्यालय में कक्ष के अन्दर लाकर उतारता है जिससे वह अपने ही कक्ष के बाहर की भी दिन में ही जल रही लाइटों को नही देख पाते, समझना मुश्किल है।

यहां यह भी बताना आवश्यक है कि डा0 रतन कुमार चिकित्सालय कें प्रमुख अधीक्षक ही नहीं देवीपाटन मण्डल के अपर निदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य भी हैं परन्तु वे अपना सारा समय जिला अस्पताल को ही देते है, अब यहां यह भी जानना आवश्यक है कि जब स्वास्थ्य विभाग का इतना जिम्मेदार मण्डल स्तरीय अधिकारी अपने कर्तव्य और जिम्मेदारी के प्रति लापरवाह और बेतुका बयान देने वाला हो तो उस जनपद तो दूर मण्डल के विभाग का क्या हाल होगा आसानी से समझा जा सकता है।

जहां तक रही डा0 रतन कुमार के एडी आफिस से दूरी बनाने की बात तो चल रही विभागीय चर्चाओं के मुताबिक लगभग पूरी तरह बन कर तैयार हो चुके नये भवन के लिए होने वाली करोडों की खरीदारी में भागीदारी के लिए ही इन्होनें प्रमुख अधीक्षक का प्रभार ग्रहण किया है। अब विभाग की इस तरह की चर्चा पर यह समझना मुश्किल नहीं है कि डा0 रतन कुमार एडी आफिस का कार्यभार छोड जिला अस्पताल में ही क्यों डटे रहते है।

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राजेंद्र सिंह

राजेंद्र सिंह (सम्पादक)

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