अरुणांचल प्रदेश धर्म राष्ट्रीय

आखिर क्यों उपेक्षित है शिवपुराण में वर्णित देवालय, अधिकारियों के प्रयासों के बाद भी नही हो रहा सरंक्षण

पूर्वोत्तर को शेष भारत से जोडने मेंं निभा सकता है महत्वपूर्ण भूमिका

अरूणांचल प्रदेश। अरूणांचल प्रदेश के सुसंबरी जिलें में वर्ष 2004 में खोजे गये दुनिया के सबसे बडे स्वयंभू शिवलिंग के संरक्षण से सभी ने अपने हाथ खींच लिये है हालाकिं स्थानीय प्रशासन ने इसके लिए अपने स्तर से कई प्रयास किये लेकिन केन्द्रीय संस्थाओं के निराशाजनक रवैये के चलते ये शिवलिंग अपने क्षरण को अभिशप्त हो रहा है। सबसे बडी विडम्बना तो यह है कि इस शिवलिंग का वर्षन शिवपुराण में भी किया गया है परन्तु फिर भी इसे उचित संरक्षण नहीं मिल पा रहा है।

जी हां वर्ष 2004 मेंं प्रेम सुब्बा नाम के एक लकडहारे नें इस शिवलिंग की खोज की थी। यहां इस सबसे उंचें शिवलिंग के अतिरिक्त माता पार्वती और कार्तिकेय के भी लिंग प्राकृतिक रूप सेस्थापित हैं। शिवलिंग के बाये ओर भगवान गणेश तथा सामने स्थित एक चटटान पर नंदी की भी आकृति स्थापित है। सबसे बडी बात तो यह है कि लिंग के उपरी हिस्से में बने स्फटिक माला वाले इस शिवलिंग के निचले स्थान पर जल का प्राकृतिक प्रवाह हमेशा बना रहता ळें

भारत ही नहीं ंविश्व के अनेक देशों के भारतीयों की आस्था वाले भगवान शिव परिवार का यह पौराणिक स्थान अपने उपर एक अदद छत के लिए भा मोहताज बना हुआ है। हिन्दू हित के के स्वंयभू झडाबरदार विहिप, बजरंगदल, राष्ट्ीय स्वयंसेवक संघ तथा इन जैसे अन्य कई संगठन शिवपरिवार के इस पौराणिक और सामाजिक महत्व के स्थान को अपना छोटा सा भी सहयोग देने को तैयार नहीं दिखते।
बात करें इसके प्राकृतिक रूप् की तो शिवलिंग के साथ उपस्थित अन्य सभी प्रतिमाये और लिंग पूरी तरह से प्राकृतिक हैं और इनके साथ अभी तक किसी भी प्रकार की छेडछाड नही की गयी है। चारों ओर से मनोरम जंगल से घिरे इस स्थान के लिए बाबा भोले के नाम पर सियासत करने वाले राजनैतिक दल भी इन्हें नजरअंदाज ही कर रहे हैं। महत्वपूर्ण तो यह है कि चीन की सीमा से सटे अरूणांचल प्रदेश के इस स्थान के पास पूर्वोत्तर के प्रदेश सहित पूरे भारत को सांस्कृतिक रूप् से जोडने की अदभुत क्षमता है लेकिन एएसआई, राज्य सरकार सहित स्थानीय प्रशासन उदासीनता व उचित संरक्षण के अभाव में मौसम की मार से शिवलिंग का क्षरण जारी है जिसे इटानगर के शोध निदेशक की ताजा रिपोर्ट में भी बताया गया है, हालाकिं स्थानीय प्रशासन ने जिसमें प्रमुख रूप् से सीएमओ जगदीश कौर ने स्थानीय मंदिर समिति, जिला प्रशासन, राज्य संरकार, राज्यपाल से इस महत्वपूर्ण स्थान की ओर ध्यान देने का अनुरोध किया था साथ ही उन्होनें केन्दीय संस्कृति मंत्रालय के संयुक्त सचिव से भी मुलाकात कर अनुरोध किया परन्तु किसी ने भी उनके इस अनुरोध को गम्भीरता से नहीं लिया।
अब बात करें इस स्थल के पौराणिक महत्व की तो इस स्थान का उल्लेख शिवपुराण के नवे खंड के 17वें अध्याय में मिलता है जिसमें इस बात का उल्लेख स्पष्ठता से किया गया है कि विश्व का सबसे उंचा शिवलिंग लिंगालय नामक स्थान पर पाया जायेगा जिसे कालांंतर में अरूणांचल के नाम से जाना जायेगा। ज्ञात हो कि अरूणांचल को यह नाम वर्ष 1987 मेंं मिला है इससे पहले इसे उत्तर पूर्व फं्रटियर एजेंसी के नाम से जाना जाता था।

पौराणिक महत्व के इस शिवलिंग का नाम स्थानीय प्रशासन ने सिद्वेश्वर नाथ मदिंर रखा है इस जगह हजारो श्रद्वालू आते है महाशिवरात्रि को स्थानीय के अतिरिक्त दुनिया भर के भोले के भक्त भ इस स्थान पर पहुचतें है। पूर्व में मुख्यमंत्री ने भी इस स्थान के विकास के लिए केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय से मदद मांगी थी परन्तु फिर भी किसी ने ध्यान नहीं दिया।

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राजेंद्र सिंह

राजेंद्र सिंह (सम्पादक)

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