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आप भी जाने राजस्थान में सुहागिने कैसे मनाती है करवा चौथ व्रत

Written by Vaarta Desk
महेंद्र शर्मा 
वजीरपुर ( सवाई माधोपुर) ! करवाचौथ हिन्दुओं का एक ऐसा  प्रमुख त्यौहार है, जिसमें महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, उन्नति, खुशहाली के लिए पूरे दिन व्रत रखकर कामना करतीं हैं।यह राजस्थान का विशेष पर्व हुआ करता था। अब यह पूरे भारत ही नहीं विश्व के हर कोने में जहां हिन्दुधर्मालम्बी रहते हैं।अब पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। करवाचौथ कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियों द्वारा मनाया जाने वाला इस पर्व के लिए व्रत सुबह सूर्योदय से पहले करीब 4 बजे के बाद शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है।ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक सभी नारियां करवाचौथ का व्रत बडी़ श्रद्धा एवं उत्साह के साथ रखती हैं।
शास्त्रों के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करना चाहिए। पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है। करवाचौथ में भी संकष्टीगणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अध्र्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है। वर्तमान समय में करवाचौथ व्रतोत्सव ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही मनाती हैं लेकिन अधिकतर स्त्रियां निराहार रहकर चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करक चतुर्थी (करवा-चौथ) व्रत केवल सौभाग्यवती स्त्रियां ही चाहे के किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो रखकर अपने लिए अखण्ड सौभग्यवती होने का वरदान मांगती हैं। इस दिन पति को प्रसन्न करने के लिए अच्छे अच्छे पकवान बनाए जाते हैं।
करवाचौथ का व्रत रखने वाली महिलाएं शाम को कथा पूजन कर रात्रि में सामूहिक रूप से छलनी में से चांद देखकर अपना व्रत खोलती है। जिले में सबसे प्राचीन एवं सबसे अधिक ख्याति प्राप्त चौथ का बरवाड़ा गांव में स्थित है। चौथ माता के नाम पर इस गांव का नाम बरवाड़ा से चौथ का बरवाड़ा पड़ गया। चौथ माता मंदिर की स्थापना महाराजा भीमसिंह चौहान ने की थी। सुहागनों ने अपने घर पर ही दीवार के एक कोने को लीपकर उस पर चौथ माता तथा उससे सम्बंधित कथाएं चावल को पीस कर बनाये गए रंग से उकेरी जाती थीं। अब ये सभी बाजार में बनी बनाई मिल जाती हैं।

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