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सुहागिनों के लिए अद्भुत संयोग लेकर आया है करवाचौथ…

Written by Vaarta Desk
इस साल करवा चौथ पर 4 राजयोग सहित कई शुभ योग बन रहे हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री का कहना है कि इससे पहले करवा चौथ पर इतने शुभ योग पिछले 100 सालों में नहीं बने। 4 नवंबर बुधवार को करवा चौथ यानी सौभाग्य पर्व पर शिव, अमृत और सर्वार्थसिद्धि योग बन रहे हैं। वहीं, शंख, गजकेसरी, हंस और दीर्घायु नाम के राजयोग भी बन रहे हैं।
करवा चौथ मुहूर्त
करवा चौथ तिथि 04 नवंबर 2020 दिन बुधवार
करवा चौथ पूजा मुहूर्त- शाम 5 बजकर 29 मिनट से शाम 6 बजकर 48 मिनट तक
चंद्रोदय- रात 8 बजकर 16 मिनट पर
चतुर्थी तिथि आरंभ 04 नवंबर की सुबह 3 बजकर 24 मिनट पर
चतुर्थी तिथि समाप्त 05 नवंबर की सुबह 5 बजकर 14 मिनट तक
ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री कहते हैं, ”करवा चौथ पर जब चंद्रमा और पति की पूजा की जाएगी, उस दौरान गोचर कुंडली में बृहस्पति दांपत्य जीवन के भाव में अपनी ही राशि के साथ रहेगा। ये स्थिति सौभाग्य बढ़ाने वाली रहेगी, जिससे ये पर्व और भी शुभ हो जाएगा।”
इसके अलावा भी ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री ने करवा चौथ के दिन पडनेवाले कई संयोगों का उल्लेख किया है जो इस प्रकार है।
चतुर्थी और बुधवार का संयोग
इस बार सौभाग्य पर्व पर बुधवार और चतुर्थी के संयोग में होने वाली गणेश पूजा का फल और बढ़ जाएगा। इस बार करवा चौथ व्रत मृगशिरा नक्षत्र में किया जा रहा है। इस नक्षत्र का स्वामी मंगल होने से ये व्रत समृद्धि बढ़ाने वाला रहेगा। इस दिन सूर्योदय भी चतुर्थी तिथि में होगा और चंद्रोदय भी। पिछले कुछ सालों में कई बार ऐसा हुआ है, जब चतुर्थी तिथि 2 दिन तक रही और व्रत को लेकर असमंजस की स्थिति बनी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा।
शुभ संयोग का असर
अतुल शास्त्री बताते हैं कि करवा चौथ पर तिथि, वार, नक्षत्र और ग्रहों का महासंयोग बनने से व्रत और पूजा का पूरा फल मिलेगा। जिससे सौभाग्य के साथ समृद्धि भी बढ़ेगी। इस करवा चौथ पर व्रत से पति-पत्नी में प्रेम बढ़ेगा और घर में सुख-समृद्धि बढ़ेगी। शुभ संयोगों में पूजा होने से महिलाओं को रोग और शोक से छुटकारा मिल सकता है। इतने सारे शुभ संयोग होने से ये पर्व मनोकामनाएं पूरी करने वाला रहेगा।
करवाचौथ व्रत की पूजा विधि बताते हुए ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री कहते हैं, ”सुबह सूर्योदय से पहले उठ जाएं। सरगी के रूप में मिला हुआ भोजन करें पानी पीएं और भगवान की पूजा करके निर्जला व्रत का संकल्प लें।
करवाचौथ में महिलाएं पूरे दिन जल-अन्न कुछ ग्रहण नहीं करतीं फिर शाम के समय चांद को देखने के बाद दर्शन कर व्रत खोलती हैं।
पूजा के लिए शाम के समय एक मिट्टी की वेदी पर सभी देवताओं की स्थापना कर इसमें करवे में रखें।
एक थाली में धूप, दीप, चन्दन, रोली, सिन्दूर रखें और घी का दीपक जलाएं।
पूजा चांद निकलने के एक घंटे पहले शुरु कर देनी चाहिए। इस दिन महिलाएं एक साथ मिलकर पूजा करती हैं।
पूजन के समय करवा चौथ कथा जरूर सुनें या सुनाएं।
चांद को छलनी से देखने के बाद अर्घ्य देकर चन्द्रमा की पूजा करनी चाहिए।
चांद को देखने के बाद पति के हाथ से जल पीकर व्रत खोलना चाहिए।
इस दिन बहुएं अपनी सास को थाली में मिठाई, फल, मेवे, रूपये आदि देकर उनसे सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद लेती हैं।
महिलाएं बिना मंगलसूत्र पहने पूजा न करें। पूजा के वक्त बाल खुले नहीं रखना चाहिए। करवे को थल या छत पर नहीं रखना चाहिए। किसी के बहकावे में न आएं। बच्चों को नहीं डाटना चाहिए। दीपक भी बुझना नहीं चाहिए। सभी बहने अगल-बगल पूजा न करें। व्रती महिलाओं को देखकर उपहास न करें। अन्यथा चंद्रमा रूष्ट हो जाते हैं। काली हल्दी चढ़ाना शुभ है। सुहाग सामग्री दान करनी चाहिए। सम्भव हो तो पहला व्रत मायके से आई पूजन सामग्री से ही करना चाहिए।”
इस दिन सुहागिनें अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन चंद्रमा की पूजा की जाती है। चंद्रमा के साथ- साथ भगवान शिव, पार्वती जी, श्रीगणेश और कार्तिकेय की पूजा की जाती है।
ऐसी मान्यता है कि जिन कन्याओं का विवाह न हो रहा हो उन्हें किसी महिला की बची हुई  मेहंदी लगानी चाहिए। शीघ्र ही विवाह होगा। इस दिन कढ़ी, चावल, मूंग के बड़े व विविध प्रकार के व्यंजन बनाने चाहिए। मूंग के बड़े तो विशेषकर बनवाएं। जहां छत पर पूजन करें उस जगह को जल से या गाय के गोबर से लीप लें। करवे पर मौली जरूर बांधे, मिट्टी, ताबां, चांदी, सोने का करवा पूज्यनीय है इसलिए इनका भी इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि मिट्टी का करवा ज्यादा शुभ होता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं क्यों मनाया जाता है करवाचौथ और कैसे हुई थी इसकी शुरुआत। एक किवदंति के अनुसार एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गाँव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया। स्नान करते समय वहाँ एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया। वह मनुष्य करवा-करवा कहकर अपनी पत्नी को पुकारने लगा।
उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी करवा भागी चली आई और आकर मगर को कच्चे धागे से बाँध दिया। मगर को बाँधकर यमराज के यहाँ पहुँची और यमराज से कहने लगी- हे भगवन! मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगर को पैर पकड़ने के अपराध में आप इसे अपने बल से नरक में ले जाओ।
यमराज बोले- अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे नहीं मार सकता। इस पर करवा बोली, अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूँगी। सुनकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगर को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी। हे करवा माता! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना।
कहा जाता है कि तब से स्त्रियां अन्न-जल का त्यागकर अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हुए करवाचौथ का व्रत रखती हैं। द्रौपदी द्वारा भी करवाचौथ का व्रत रखने की कहानी प्रचलित है।
कहते हैं कि जब अर्जुन नीलगिरी की पहाड़ियों में घोर तपस्या लिए गए हुए थे तो बाकी चारों पांडवों को पीछे से अनेक गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। द्रौपदी ने श्रीकृष्ण से मिलकर अपना दुख बताया। और अपने पतियों के मान-सम्मान की रक्षा के लिए कोई उपाय पूछा। श्रीकृष्ण भगवान ने द्रोपदी को करवाचौथ व्रत रखने की सलाह दी थी, जिसे करने से अर्जुन भी सकुशल लौट आए और बाकी पांडवों के सम्मान की भी रक्षा हो सकी थी
महाभारत काल में द्रोपती ने श्रीकृष्ण के परामर्श पर करवाचौथ का व्रत किया था। वहीं गान्धारी ने धृतराष्ट्र के लिए कुंती ने पाण्डव के लिए और इंद्राणी ने इंद्र के लिए करवाचौथ का व्रत रखा था।
शिव पुराण के अनुसार विवाह के पूर्व पार्वती जी ने शिव की प्राप्ति के लिए व सुंदरता के लिए करवाचौथ व्रत रखा था। यह भी कहते हैं कि श्री लक्ष्मी जी ने नारायण के लिए ये व्रत रखा था जब भगवान विष्णु राजा बलि के यहां बंधन में थे तो लक्ष्मी जी ने व्रत किया था।
पंडित अतुल शास्त्री

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