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सरकारी आवास पर वर्षो से जमा रखा है रिटाएर कर्मचारियों ने कब्ज़ा, लिपिक की मेहरबानी आ रही सामने

अस्पताल प्रसाशन भी दे रहा अवैध कब्जेदारों को संरक्षण, नोटिस देने  की बात कह झाड़ रहा जिम्मेदारी से पल्ला

गोण्डा ! जिला चिकित्सालय के नर्सेस हास्टल में चिकित्सालय प्रशासन की सांठगांठ से सेवानिवृत हो चुकी नर्सो का वर्षो से नाजायज कब्जा है। हैरानी की बात तो यह है कि इस बारे में चिकित्सालय प्रशासन सब कुछ जानते हुए भी अनजान बना हुआ हैं। वहीं वर्षो से कब्जा जमाये बैठी रिटायर्ड कर्मचारी सरकारी आवास, बिजली, पानी का उपभोग करते हुए प्रतिवर्ष चिकित्सालय प्रशासन को लाखों रूप्ये राजस्व का चूना भी लगा रही हैं। पूछताक्ष करने पर चिकित्सालय प्रशासन ऐसे अवैध कब्जेदारों के विरूद्व नोटिस तामील कराने की बात कहकर मामले को और भी उलझाने की कोशिश कर रहा है। आखिर ऐसे कर्मचारियों को नोटिस किस हैसियत से दी जायेगी जबकि वे वर्षो पूर्व सेवा से ही निवृत हो चुके है।

जिला चिकित्सालय परिसर के पीछे की ओर बना नर्सेस हास्टल नाजयज कब्जेदारों के कब्जें में है, जहां वर्षो पहले रिटायर्ड हो चुके महिला कर्मचारियों ने कब्जा जमा रखा है जानकारी के अनुसार चार वर्ष पूर्व ही रिटायर हो चुकी महिला कर्मचारियों में वार्डेन की पोस्ट पर तैनात लीलावती उपाध्याय, शोभा गौतम स्टाफ नर्स, उमा अवस्थी स्टाफ नर्स ने सेवा निवृत हो जाने के बाद भी आवास को नही खाली किया ओैर नियमों को धता बताते हुए नो आब्जेक्शन सार्टीफिकेट भी प्राप्त कर पेश्ांन का उपभोग भी कर रही हैं।

आश्चर्य है कि इन कर्मचारियों ने हास्टल को खाली भी नहीं किया और पेशन भोगी बन गये, यह कैसे सम्भव हुआ। चिकित्सालय में कार्यरत कई कर्मचारी दबी जुबान से यह कहते है कि चिकित्सालय प्रशासन में तैनात एक वरिष्ठ लिपिक का इस भ्रष्टाचार में महत्वपूर्ण योगदान है। यही वह बात है जो इस बात का संकेत देता है कि चिकित्सालय प्रशासन की मिलीभगत से यह रिटायर्ड कर्मचारी वर्षो से नर्सेस हास्टल पर नाजायज कब्जा जमाये बैठे हैं। नियमानुसार आवास खाली करने के बाद ही एनओसी प्रमाण पत्र जारी किया जाना चाहिए जिसके जारी होते ही पेशन की भी संस्तुति कर दी जाती है, चूकि सभी रिटायर्ड महिला कर्म्रचारी पेशन का उपभोग कर रही है जिससे यह तो बिल्कुल स्पष्ट है कि इन्हें एनओसी प्राप्त हो चुकी है। यदि ऐसा है तो सवाल यह है कि वे वर्षो से नर्सेस हास्टल पर कैसे कब्जा जमायें बैठी हैं।

वर्ष 2011 से स्थायी नौकरियों पर स्वास्थ्य विभाग में किसी की भी तैनाती नहीं हुयी है यहां तैनात अधिकतर कर्मचारी सविदा या निविदा पर कार्य कर रहे है जिन्हें नियमतः आवास का आवटंन नहीं किया जा सकता। दूसरी ओर अस्पताल के अन्दर तैनात स्थायी कई कर्मचारी ऐसे भी है जिन्हें आवास की अत्यन्त आवश्यकता किन्तु उन्हें आवास खाली नहीं है का रटारटाया जवाब देकर पल्ला झाड लिया जाता है जबकि ऐसे रिटायर्ड कर्मचारियों का वर्षो से हास्टल मे अवैध रूप से जमा रहना अस्पताल प्रशासन की कार्यशैली पर गम्भीर प्रश्नचिन्ह खडा कर रहा है।

प्रकरण पर सीएमएस डा0 वीरपाल का कहना है कि उन्हें जानकारी मिली थी और उन्होनें ऐसे कर्मचारियों को पूर्व में पत्र जारी कर नोटिस भी दिया है किन्तु क्या हुआ उन्हेें नहीं पता, यह प्रकरण उनके कार्यकाल से पहले का है इसलिए उन्हें इसकी कोई विषेश जानकारी नहीं है किन्तु जानकारी हुयी है शीघ्र ही नर्सेस हास्टल का निरीक्षण किया जायेगा और अवैध कब्जेदारों को नोटिस भी दुबारा दिया जायेगा। इस बारे में सीएमएस का जवाब सुनकर यह बात तो स्वतः स्पष्ट हो गयी कि नर्सेस हास्टल में अवैध तरीके से लोगो ने कब्जा जमा रखा है, अवैध कब्जे दारों के विरूद्व प्रतिवर्ष लाखों रूप्ये के हानि की प्रतिपूर्ति का नोटिस न दे मात्र आवास खाली करने का नोटिस देना भी चिकित्सालय प्रशासन की कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह खडा करता है ऐसा लगता है कि जिला चिकित्सालय प्रशासन इन अवैध कब्जेदारों को मौन स्वीकृति देकर नोटिस देने का दिखावा कर रही है।

सच्चई तो यह है कि वर्षो से नियमें के विरूद्व कब्जा जमाये बैठे कब्जेदारों से किरायेदारों की तरह प्रतिमाह टेबल के नीचे से शुल्क वसूला जा रहा है जिसका उपभोग चिकित्सालय के ही एक वरिष्ठ लिपिक द्वारा किया जा रहा है। विचारणीय तो यह है कि जिन अवैध कब्जेदारों के विरूद्व राजस्व हानि की प्रतिपूर्ति के साथ कार्यवाही किया जाना चाहिए था उन्हें मात्र नोटिस देने की बात कही जा रही है जो कि गले नहीं उतरती।

About the author

अशफ़ाक़ शाह

(संवाददाता)

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