15, जून 1997 का गूल-रामबन नरसंहार
जब आतंकियों ने खचाखच भरी बस में से बेकसूर कश्मीरी हिंदूओं की पहचानकर नीचे उतारा और निर्मम हत्या की …..
कौन थे तीनों शिक्षक जो अपनी जान की बाजी लगाकर भी कश्मीरी लोगों को शिक्षित कर रहे थे और उन्हीं लोगों ने उनकी हत्या कर दी….
आओ जाने उनके बारे में….
साल 1997 तक कश्मीर घाटी से ज्यादातर कश्मीर हिंदू अपना पुश्तैनी घर छोड़कर जम्मू क्षेत्र में बस गये थे। कश्मीरी हिंदूओं ने यहां अपना जीवन नये सिरे से शुरू किया था। लेकिन जिहादियों ने कश्मीर घाटी से सटे जम्मू के इलाकों में भी कश्मीरी हिंदूओं का निशाना बनाना शुरू कर दिया। 15 जून 1997 गूल नरसंहार इसी का एक दर्दनाक उदाहरण है। 15 जून की सुबह एक यात्री बस रामबन से गूल जा रही थी, जब गूल सिर्फ 7 किमी दूर था। 4 आतंकियों ने बस को रूकवाया, इनमें 2 सेना की वर्दी में थे और 2 पठानी सूट में। चारों के पास एके 47 रायफल थीं। एक आतंकी ने ड्राइवर के धमकाकर बस साइड में लगवायी। फिर बस में से हिंदूओं को खड़े होने को कहा। आईकार्ड चेक करने को कहा गया। इसे देखकर कुछ 6 लोग खड़े हुए। जिनमें 2 बस कंडक्टर और ड्राइवर थे, 3 हायर सेकेंड्री स्कूल गूल के अध्यापक थे। इनमें स्कूल प्रिंसिपल अशोक कुमार रैना, अध्यापक सुशील भट और प्राध्यापक रविंद्र काबू थे।
एक और शख्स, जोकि हिंदू था। उसने खुद को मुस्लिम बताया, बस में बैठे कुछ लोगों ने इसकी तस्दीक कर दी कि हां वो मुस्लिम है औऱ वो उसे जानते हैं।
इन 6 हिंदूओं को बस से नीचे उतार लिया गया। कुछ चश्मदीदों के मुताबिक इनमें से 2 बस से उतरते ही भागकर बच निकलने में कामयाब हो गये। जबकि कुछ का कहना है कि ड्राइवर और कंडक्टर होने के चलते उनको छोड़ दिया गया। बाकी बचे 4…। इनमें से भी एक को आतंकियों ने जाने दिया, क्योंकि वो कश्मीर घाटी से नहीं था। बल्कि जम्मू का रहने वाला था। इसके बाद सिर्फ 3 बचे थे, जोकि 3 हायर सेकेंड्री स्कूल गूल के अध्यापक थे और तीनों कश्मीर घाटी से थे। आतंकी इन तीनों को करीब 50 मीटर दूर नाले के पास ले गये और वहां गोली मारकर तीनों की निर्मम हत्या कर दी।
इस नरसंहार ने जम्मू क्षेत्र में रहने वाले हिंदूओं में जबरदस्त रोष पैदा किया। कई दिनों तक लोग प्रशासन से आतंकियों पर कार्रवाई करने का दवाब बनाते रहे। लेकिन धीरे-धीरे फिर से सब कुछ सामान्य हो गया, जो आज तक जारी है।
शिक्षकों के बारे में…..
सुशील भट्ट अपने पिता और पूरे परिवार समेत 1990 में आतंकवाद के चलते बारामूला से जम्मू शिफ्ट हो गये थे। उनको लगा कि यहां सब सुरक्षित रहेंगे। गूल इलाके में कई सालों से इस्लामिक आतंकवाद ने पैठ बनानी शुरू कर दी थी। यहां किसी हिंदू के लिए नौकरी करना खतरे से खाली नहीं था। 30 साल के सुशील की सिर्फ डेढ साल पहले शादी हुई थी। लेकिन एक अध्यापक होने के नाते सुशील ने ये चैलेंज स्वीकार किया।
अशोक कुमार रैना मूलत: सोपोर के रहने वाले थे। गूल के बिगड़ते माहौल को देखते हुए हायर सेंकेड्री स्कूल में कोई प्रिंसिपल बनने के तैयार नहीं था। अशोक रैना के घर में मां, पत्नी के अलावा एक बेटा और बेटी की जिम्मेदारी थी। लेकिन अशोक कुमार रैना ने भी खतरे के बावजूद अपने कर्तव्य को चुना।
रविंद्र काबू एक साहसी और विश्वासी कश्मीरी हिंदू अध्यापक थे, जिन्हें विश्वास था कि कलम की ताकत औऱ शिक्षा के जरिये बदलाव लाया जा सकता है।