वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि सरकार की पहल के कारण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का मुनाफा पिछले नौ साल में तीन गुना बढ़कर 1.04 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का शुद्ध लाभ वित्त वर्ष 2023 में लगभग तीन गुना बढ़कर 1.04 लाख करोड़ रुपये हो गया है, जो वित्त वर्ष 2014 में 36,270 करोड़ रुपये था। सरकार की ओर से की गई विभिन्न पहलों के कारण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रदर्शन में सुधार हुआ है। उन्होंने कहा कि उन राज्यों में ऋण मिलने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए जहां ऋण लेने की गति राष्ट्रीय औसत से कम है, विशेष रूप से देश के पूर्वोत्तर और पूर्वी हिस्सों में।
यह सही है कि सरकार की नीतियों के कारण आज सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की स्थिति काफी हद तक अच्छी हुईं है। लेकिन इसमें और भी बहुत से कारण और कर्मचारियों का योगदान है जिसे नकारा नहीं जा सकता। और यदि इन सभी कारणों पर ध्यान दिया जाए तो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की स्थिति और बेहतर हो सकती है। बैंकों के इस तरह हो रहे सुधार और लाभ के बढ़ने के बाद सरकार को इन बैंकों के निजीकरण का विचार भी छोड़ देना चाहिए।
बैंकों में आज कर्मचारियों और अधिकारियों की संख्या में काफी कमी आयी है। जहाँ 2014 में 8.50 लाख वर्कफोर्स थी जो घटकर आज 7.70 लाख रह गई है। इसके विपरीत बैंकों का बिजनेस बढ़ा है, बैंक आज अच्छा खासा लाभ कमाने की स्थिति में हैं। क्या सरकार की सोच बैंको में वर्कफोर्स को कम करके एस्टेब्लिशमेंट कॉस्ट को कम करके प्रॉफिट बढ़ाना चाहती है, तो यह सरासर गलत है। यदि नहीं तो फिर बैंकों में नई भर्ती सही तरीके से क्यों नहीं हो रही। लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में सरकार ने माना कि जुलाई 2022 तक 12713 अधिकारी वर्ग के, 14226 क्लर्क और 11208 सब स्टाफ के पद खाली हैं। इसके विपरीत 2022 में अधिकारी वर्ग के 6615 और क्लर्कों के 6036 पदों के लिए आवेदन मांगे गए। बैंक कर्मचारी आज जिन परिस्थितियों और दबाव में काम कर रहे हैं उससे जहां उनके स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है वहीं सैंकड़ों बैंक कर्मचारी अभी तक आत्महत्या कर चुके हैं।
बैंकों की वर्कफोर्स के अनुपात में भी बहुत ज्यादा अंतर है। बैंकों का टॉप भारी होता जा रहा है और निचले लेवल पर वर्कफोर्स (क्लर्क और सब स्टाफ) की बहुत कमी है। बैंकों में सफाई कर्मचारियों, सुरक्षा कर्मचारियों की भर्ती तो बिलकुल बंद है और इन कामों को आउटसोर्स किया जा रहा है । यदि वर्कफोर्स के अनुपात को ठीक किया जाए तो जहां एक और ग्राहक सेवा में सुधार हो सकता है, ऋण देने और रिकवरी प्रक्रिया में तेजी आ सकती है और एस्टेब्लिशमेंट कॉस्ट भी कम हो सकती है जिससे बैंकों का प्रॉफिट और बढ़ सकता है।
बैंक आजकल व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा आधारित होते जा रहे हैं जबकि कोई भी बैंक व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा आधारित न होकर बैंक की दीर्धकालीन पालिसी और विकास की योजनाओं के अनुरूप होना चाहिए। बैंकों में प्रबंध निदेशक, कार्यकारी निदेशक और बोर्ड के सदस्य बहुत कम समय के लिए रहते हैं और किसी भी व्यक्ति की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा बैंकों के दीर्धकालीन पालिसी और विकास की योजनाओं पर असर करती है। एक प्रबंध निदेशक के जाने के बाद जो भी नया प्रबंध निदेशक आता है वो अपना व्यक्तिगत एजेंडा लागू करना चाहता है । जिससे बैंक की विकास प्रक्रिया में बाधा आती है और बार बार बैंक की सरंचना को बदलने से बैंकों का काफी खर्चा भी होता है । यदि वित् मंत्रालय का सभी बैंकों में एक जैसी सरंचना का आदेश है तो कोई भी बैंक कैसे इसका उलंघन करता है। सरकार इस पर ध्यान देकर भी बैंकों के प्रॉफिट को और बढ़ा सकती है ।
बैंक कर्मचारी लम्बे समय से बैंकों में 5 दिन की बैंकिंग की मांग कर रहे हैं। जोकि आज के टेक्लोनोजी के युग के अनुसार भी आवश्यक है। इससे जहाँ कर्मचारियों को भी राहत मिलेगी, पर्यावरण को भी इसका लाभ होगा वहीं बैंकों की एस्टेब्लिशमेंट कॉस्ट कम होगी और बैंकों का प्रॉफिट भी बढ़ेगा।
बैंकों में एक और बड़ी समस्या है, हर वर्ष बड़े पैमाने में होने वाले ट्रांसफर्स। बैंकों में हर वर्ष देश के एक कोने से दूसरे कोने में हजारों ट्रांसफर होते हैं जिससे जहां बैंकों का बड़ा खर्चा होता है वहीं ट्रांसफर्स होने के कारण वर्कफोर्स भी परेशान होती है। कई बार तो बैंक सरकार द्वारा निर्धारित पति पत्नी को एक स्थान पर ट्रांसफर के नियम का भी उलंघन करते हैं जिससे कई परिवार टूटने की सीमा तक पहुँच जाते हैं। बहुत बार बैंकों में उच्च अधिकारी ट्रान्सफर को टूल की तरह भी इस्तेमाल करते हैं, और उनके गलत आदेश न मानने वाले कर्मचारियों अधिकारीयों को दूर दूर ट्रान्सफर की धमकी देते हैं और ट्रान्सफर भी क्र देते हैं । सभी बैंकों में उचित यूनिफॉर्म ट्रांसफर्स पालिसी बनाकर एक बड़े खर्चे को कम करके भी प्रॉफिट को बढ़ाया जा सकता है।
आज लगभग 5 लाख से ज्यादा बैंक पेंशनर्स हैं जिन्होंने बैंकों के लिए अपना पूरा जीवन दिया और अपने जीवन की जमा पूंजी इन्ही बैंकों में रखी हुई है। ये लोग आज भी बैंकों के ब्रैंड एम्बेसडर की भूमिका में हैं, लेकिन सरकार का इनकी तरफ ध्यान नहीं है। पेंशनर्स की न तो पेंशन रिवाइज़ होती है और न ही इनके लिए अच्छी मेडिकल सुविधाएं हैं। मेडिकल के नाम पर मेडिक्लेम है जोकि बहुत ही महँगा है। यदि सरकार और बैंक इन पेंशनर्स की तकलीफ को समझें और उनकी मांगों पर विचार करें तो आज भी बैंकों के रिटायर्ड और पेंशनर्स बैंकों के विकास में और अच्छी तरह से अपना सहयोग कर सकते हैं ।
वॉयस ऑफ़ बैंकिंग ने वित् मंत्री को पत्र लिखकर इन सभी बिन्दुओं से अवगत कराया है। वॉयस ऑफ़ बैंकिंग का मानना है की यदि सरकार इन सुझावों पर सकारत्मक विचार करती है तो निश्चित रूप से बैंकों के प्रॉफिट में और वृद्धि होगी । सरकार को बैंकों के निजीकरण के फेसले को भी वापिस लेना चाहिए ।
अशवनी राणा
फाउंडर,
वॉयस ऑफ बैंकिंग
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