राष्ट्रीय संस्कृति

गुरुकुल में संघ प्रमुख की पाठशाला

Written by Vaarta Desk

सेवा, संकल्प, समर्पण, देशभक्ति, संस्कार, अनुशासन, धर्म, गुरुकुल सरीखे शब्दों की चोटीपुरा, अमरोहा का श्रीमद् दयानन्द कन्या गुरुकुल महाविद्यालय के उपनयन संस्कार समारोह में गहन व्याख्या की अनूठी पाठशाला चली। सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत कभी इस पाठशाला में बतौर चांसलर, कभी अभिभावक तो कभी संघ प्रमुख के रूप में नज़र आए। छह घंटे के प्रवास में उन्होंने नवनिर्मित संस्कृति-नीडम् का उद्घाटन किया। उपनयन संस्कार समारोह के यज्ञ में बतौर दत्तक पिता की भूमिका निभाई। रूद्राक्ष का पौधारोपण किया, संग ही दयानन्द कन्या गुरुकुल की छात्राओं के देशभक्ति से ओत-प्रोत कार्यक्रमों के साक्षी बने। गुरुकुल की छात्राओं के प्रश्नों का तर्कसंगत जवाब दिया। संस्कृत के श्लोक सुने और सुनाए। गुरुकुल की छात्राओं ने संघ प्रमुख के नाम को केन्द्र में रखते हुए श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद प्रस्तुत किए। मंच पर रथ के संग-संग श्रीकृष्ण और अर्जुन के अलावा कौरव-पांडव सेनाओं के रंग-बिरगे परिधान में महाभारत के युद्ध की जीवंत प्रस्तुति दी। गुरुकुल में अपने भव्य स्वागत, वहां के अनुशासन और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से अभिभूत नज़र आए। जाते-जाते उन्होंने नई शिक्षा नीति के विशेषज्ञों को गुरुकुल जैसे शिक्षण संस्थानों में भी भ्रमण करने की अनमोल राय दी।

 

धर्मोन्नति-देशोन्नति एक

देश और धर्म अलग नहीं हो सकते हैं। धर्म ही देश है और देश ही धर्म है। धर्मोन्नति से ही देशोन्नति होती है। सृष्टि के बनने, चलने और विलीन होने का नियम ही धर्म है। सनातन धर्म तब से है, जब से दुनिया बनी है। भारत विविधताओं का देश है। सम्पूर्ण संस्कृति की विविधता ही धर्म है। यहां देश और धर्म को अलग मानना ठीक नहीं है। अभ्युदय और निःश्रेयस की प्राप्ति कराए, वही धर्म है। धर्म के आधार पर अनेक रास्ते बनते हैं, लेकिन इसका लक्ष्य सत्य का पाना ही है। सत्यार्थ का प्रकाश हमारे दिल में होना चाहिए। धर्म की रक्षा करते हुए देश हित के लिए काम करना चाहिए। हमें अपने धर्म और आचरण की संस्कृति को सम्पूर्ण विश्व को प्राप्त करना चाहिए। धर्मोत्थान से ही देशोत्थान है।

 

गीता शब्द नहीं, एक जीवनम

हाभारत काल में अर्जुन के बलशाली होने के बावजूद गीता के उपदेश के लिए भगवान श्रीकृष्ण की जरूरत पड़ी थी, लेकिन आज इन सबके अभाव में गीता सबको उपदेश देने में सफल होगी? श्रीकृष्ण तो सत्य है, जो सत्य है उसका अभाव नहीं होता। जिसका अभाव होता है, वह सत्य नहीं है। भारत में योगेश्वरों की कभी कमी नहीं रही। न पहले रही और न अब है, लेकिन अब धनुर्धर पार्थ चाहिए। ऐसे लोग चाहिए, जो कर्तव्य के लिए धनुष उठाने के लिए तैयार रहें। गीता एक शब्द नहीं, जीवन है। गीता ज्ञान की प्राप्ति को अपने जीवन को संकल्पित करें। समाज में कर्मयोग करें। श्रीमद् भागवत गीता के श्लोकों को आत्मसात करें। गीता ज्ञान स्वंय ही मिल जाएगा।

 

संघ के नेपथ्य में नारी की बड़ी भूमिका

राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के विस्तार में महिलाओं की कितनी भूमिका है? क्या संघ में नारी उत्थान के लिए काम किए जाते हैं? महिलाओं की प्रत्यक्ष तौर पर संघ में कोई भूमिका नहीं है, लेकिन नारी पर्दे के पीछे बड़ी भूमिका का निर्वाह करती है। संघ में करीब चार हजार स्वंयसेवक अविवाहित हैं, जबकि लाखों स्वंयसेवक गृहस्थ जीवन में रह कर संघ के लिए काम करते हैं, क्योंकि उनके परिवार की माताएं-बहनें संघ के लिए समर्पण का भाव देती है। मातृ शक्ति के लिए राष्ट्र सेविका समिति नामक संगठन है। इसकी हजारों शाखाएं महिलाओं के लिए काम कर रही हैं। 1933 में केशव बलिराम हेडगेवार जी के सम्मुख नारी को संघ में शामिल करने का प्रस्ताव आया था। हेडगेवार जी की पहल पर ही राष्ट्र सेविका समिति का गठन हुआ।

 

आरएसएस का आदेश हमेशा सर्वोपरि

जीवन के उन संघर्षों को सुनना और समझना चाहेंगे, जिन्हें पार करके आप इस ऊंचाई तक पहंुचे हैं। यह भी जानने की प्रबल उत्सुकता है, संघ प्रमुख होने के नाते प्रधानमंत्री बनना आपके लिए सहज था, लेकिन आपने ऐसा क्यों नहीं किया? संघ में मैं अकेला ऐसा नहीं हूं, बल्कि संघ के सभी कार्यकर्ता ऐसे ही होते हैं। संघ जैसा रखता है, वैसे ही रहते हैं। व्यक्तिगत इच्छा से कुछ नहीं होता है। हम अपनी बुद्धि, मन और शरीर पर वास्तविकता का आवरण करें। अहंकार को हावी न होने दें। सबकुछ होने के लिए यहां नहीं आते हैं। केवल देश और देशभक्ति के लिए काम करना होता है। किसी भी स्वंयसेवक या अकेले में प्रधानमंत्री से भी पूछोगे तो वह शाखा में जाने की इच्छा जताएगा। संघ का आदेश ही सर्वोपरि होता है।

 

संघ प्रमुख ने की अपने नाम की व्याख्या

आपके नाम के दोनों शब्द ईश्वर का स्मरण कराते हैं। आपके इस नाम को रखने के पीछे उद्देश्य है? यह तो मुझे नहीं मालूम। मेरा नाम भी आप ही तरह परिजनों ने दिया है। एक वृतांत साझा करते हुए कहा, एक संघ के एक स्वंयसेवक के घर गए थे। वहां उन्होंने बच्चे का नाम पूछा, पिता बोले- बेटे का नाम विवेक रखा है। वह ऐसा है, इसीलिए नहीं रखा है। वह ऐसा बने, इसीलिए रखा है। भागवत मेरे कुल का नाम है। शायद मेरे पूर्वज भक्ति का काम करते होंगे। भक्ति का प्रचार करने वाले भागवत कहलाते हैं। मैं तो देशभक्ति का प्रचार करता हूं, लेकिन देश और देव भक्ति में कोई अंतर नहीं मानता हूं। उन्होंने अंग्रेजी शब्द पर्सनेलिटी डवलपमेंट का भी अपनी तरह से व्याख्यित किया। समारोह में केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के कुलपति आचार्य प्रो. श्रीनिवास वरखेडी ने अपने आशीर्वचन में कहा, राष्ट्र निर्माण में यह गुरुकुल महाविद्यालय महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। महर्षि दयानन्द सरस्वती की 200वीं जयन्ती पर आयोजित इस समारोह में संघ प्रमुख की गरिमामयी उपस्थिति हमारे लिए संबल है। गुरुकुल की प्राचार्या डॉ. सुमेधा ने महाविद्यालय की प्रगति आख्यां प्रस्तुत की। उन्होंने गुरुकुल के सपनों से लेकर उसके साकार होने तक के अनुभवों को साझा किया। डॉ. सुमेधा बोलीं, यह गुरुकुल स्वावलंबन का ध्वज है। निष्ठा, लगन और ईमानदारी का प्रतिफल है। इस सुअवसर पर उन्होंने दोनों अतिथियों को गुरुकुल का प्रतीक चिन्ह भी भेंट किया।

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