घटना 19 मार्च 2013 की है जब प्रदेश में स.पा. सरकार थी और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे। इटावा जिले का संतोषपुर गांव और गांव के सब से प्रतिष्ठित और सम्मानित व्यक्ति शिव कुमार बाजपेई।
सपाई ब्राह्मण थे बेचारे..
शिव कुमार बाजपेई की पत्नी उर्मिला बाजपेई अपने घर में बैठी थीं। एकाएक 20 -25 आदमी घर में प्रवेश करते हैं और उर्मिला बाजपेई को लातों से मारना शुरू कर देते हैं। वह गिर जाती हैं , उनका बाल और पैर पकड़कर खींचते हुए बाहर लाते हैं। उनके मुख पर कालिख पोतते हैं, उनके गले में जूतों और चप्पलों की माला पहनाते हैं और उन्हें गांव में घुमाते हैं और जब वे दर्द और अपमान से रोते हुए अपना मुंह हथेलियों से छुपाना चाहती हैं तो उनका हाथ पीछे बांध देते हैं।
आपको यह घटना अविश्वसनीय लगती होगी लेकिन इसमें एक-एक शब्द अखबारों का है। तारीख 20 मार्च 2013)
उर्मिला बाजपेई का दोष क्या था? कोई दोष नहीं। घटना कुछ इस तरह थी कि उनके पति शिव कुमार बाजपेई के पड़ोसी प्रदीप त्रिपाठी के बेटे के साथ राज बहादुर यादव की बेटी फरार हो गई।
प्रदेश में यादव शासन था और यादवों की लड़की भागी थी तो पुलिस को तो सक्रिय होना ही था। बेटा न मिला तो बाप ही सही। पुलिस ने प्रदीप त्रिपाठी को पकड़ मंगाया और कुछ दिन तो थाने में उन्हें बैठाकर, प्रताड़ित करके लड़के का पता पूछती रही और जब वह नहीं बता पाए तो उन्हें जेल भेज दिया। उर्मिला बाजपेई के पति शिवकुमार का दोष बस इतना था कि वह प्रदीप त्रिपाठी की जमानत के लिए भागदौड़ कर रहे थे।
शिव कुमार बाजपेई के सिर्फ इस गुनाह के कारण ही उनकी पत्नी उर्मिला बाजपेई के मुंह पर कालिख पोत कर, चप्पलों की माला पहनाकर और हाथ पीछे बांधकर पूरे गांव में घुमाया गया और उसके बाद यादवों का झुंड पूरे गांव में घूमा। जो भी ब्राह्मण सामने मिलता, उसे पीट-पीटकर गिरा देते और बेहद फूहड़ गालियां बकते हुए तथा औरतों को घर से निकाल कर पूरे गांव में नंगी घुमाने की धमकी देते हुए। गांव के प्राय: सभी ब्राह्मण परिवार घर के अंदर बंद , भय से कांप रहे थे और बाहर यादवों का चीख- चीख कर गालियां देने का क्रम चालू था । गांव के कुछ युवक हिम्मत करके पुलिस स्टेशन पहुंचे लेकिन वहां कोई सुनवाई नहीं हुई। यह सूचना कुछ ही देर में पूरे जिले में फैल गई और करीब 7 घंटे बाद आई. जी.के आदेश पर गांव में पी.ए.सी तैनात हुई और यादवी अत्याचार रुका।
लेकिन अभी सपा छाप पुलिस का परिचय बाकी है। इतने शर्मनाक कांड के बाद और ग्राम प्रधान सुशील यादव सहित कई पर नाम सहित की गई रिपोर्ट पर भी पुलिस ने एक भी गिरफ्तारी नहीं की। लेकिन पीड़ित परिवारों को सांत्वना देने गए लोगों में जिसमें ब्राह्मण सभा और परशुराम सेना के पदाधिकारी भी शामिल थे, उनमें से एक दर्जन से अधिक लोगों को जेल भेज दिया गया कि इनसे शांति भंग का अंदेशा है।
और जानते हैं कि शासन स्तर पर क्या हुआ ? पीड़ितों का एक दल जीप में लदकर इटावा से लखनऊ पहुंचा और ब्राम्हण प्रतिनिधि तथा मुख्यमंत्री का विश्वासपात्र समझकर राज्य सरकार के मंत्री अभिषेक मिश्र से मिला।
उस दिन (20 मार्च 2013) प्रायः सभी अखबारों में यह घटना बहुत विस्तार से छपी थी । अतःश्री अभिषेक मिश्र जी भी इससे पूरी तरह अवगत थे लेकिन उन्होंने यह कह कर प्रतिनिधिमंडल को लौटा दिया कि यह मुख्यमंत्री के जिले का मामला है, मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता।
वही ब्राह्मण द्रौही अभिषेक मिश्र सपा में आज भी हैं।माता प्रसाद पाण्डेय भी सपा का मोहरा वने हैं।अयोध्या के पवन पाण्डेय सदैव अखिलेश यादव की चापलूसी में रहता है कि क्षेत्र के सारे ब्राम्हण वोट उनके कारण सपा को मिलेंगे।
यह एक बानगी है उस जंगलराज की जब एक यादव सिपाही अपने अधिकारी दरोगा को बिल्ला उतरवा लेने की धमकी देता था। बहुतों को याद होगा हजरतगंज (लखनऊ ) के सी.ओ अतर सिंह यादव की जिसने अपने एस.एस.पी. को कभी सैल्यूट नहीं किया बल्कि हमेशा उनसे हाथ मिलाया। एस.एस .पी .की भी बर्दाश्त करने की मजबूरी थी क्योंकि अतर सिंह के नाम के साथ ‘यादव’ जुड़ा था।
यादवी सेना ने हजरतगंज में जीप की बोनट पर एक पुलिस अधिकारी को घुमाया था।वह बोनट पर न बैठ जाता तो सरेआम उसे कुचल देते।
पीसीएस परीक्षाओं में आधे एसडीएम यादव चुने जाते थे।
सब छोड़िए, आपको झांसी की घटना याद है ?
अखिलेश यादव के ही कार्यकाल का है। 20 जनवरी 2014 को क्षेत्र के जाने-माने भाजपा नेता बृजेश तिवारी अपनी पत्नी ,बेटे और भतीजे के साथ जा रहे थे। एक स्थानीय स.पा. नेता तेजपाल यादव के नेतृत्व में करीब एक दर्जन सपाइयों ने उन्हें घेर लिया और बृजेश तिवारी सहित उनके पूरे परिवार को भून डाला। पूरे शहर में जैसे मातम छा गया।
हत्या की रिपोर्ट लिखी गई। तत्कालीन पुलिस एस.पी. अपर्णा गांगुली के नेतृत्व में पुलिस ने तेज कार्यवाही की और पुलिस ने शीघ्र ही हत्या में प्रयुक्त हथियार सहित मुख्य अभियुक्त तेजपाल यादव को गिरफ्तार कर लिया।
एस.पी.अपर्णा गांगुली ने प्रेस को बताया कि साक्ष्य तो यही मिल रहे हैं कि हत्या राजनीतिक कारणों से की गई है। 11 हमलावरों में से 8 को पहचान लिया गया है और एक- तेजपाल को गिरफ्तार कर लिया गया है लेकिन अभी तो सरकार का जातिवादी रूप आना शेष था। पुलिस डी.जी.पी. को ऊपर से निर्देश दिया गया और लखनऊ में डी.जी.पी. रिजवान ने बयान दिया कि ” बृजेश तिवारी और उनके परिवार की हत्या में समाजवादी पार्टी के किसी भी नेता या कार्यकर्ता का हाथ नहीं था।”
इस बयान पर हालांकि तमाम अखबार और राजनैतिक दल डी.जी.पी. रिजवान पर टूट पड़े। तमाम अखबारों ने लिखा कि झांसी की पुलिस अधीक्षक ने जब जांच कर सपा नेता और मुख्य अपराधी तेजपाल को हथियार सहित गिरफ्तार कर लिया है और 11 में से 8 सपा कार्यकर्ताओं की पहचान भी कर ली है तो लखनऊ में बैठकर डीजीपी कैसे कह सकते हैं कि वारदात में समाजवादी पार्टी के लोग शामिल नहीं हैं ??
टाइम्स ऑफ इंडिया ने तो यहां तक लिखा था कि श्री रिजवान एक पुलिस अधिकारी की तरह नहीं बल्कि राजनीतिक निष्ठा के अनुसार कार्य कर रहे हैं। लेकिन डी.जी.पी. का बयान ही उनका एक तरह से आदेश था और बृजेश तिवारी और उनके पूरे परिवार की हत्या के आरोपी छोड़ दिए गए। और समाजवादी पार्टी को इसका नतीजा भी मिला।
याद होगा कि एकबार स.पा. ज़िलों- जिलों में ब्राह्मण सम्मेलन करवा रही थी। ऐसा ही एक सम्मेलन झांसी में भी आयोजित किया गया लेकिन बृजेश तिवारी हत्याकांड और उसमें हुए जातीय पक्षपात से आहत झांसी के ब्राह्मणों ने स.पा. के उस आयोजन के बहिष्कार का निर्णय लिया और उस आयोजन में जिले के स्वाभिमानी ब्राह्मणों में से एक भी ब्राह्मण नहीं पहुंचा इसलिए उन्हें यह आयोजन रद्द करना पड़ा था।
कहीं भी, कोई भी मुख्यमंत्री होगा, उसकी कोई जाति भी होगी । क्या उस जाति के लोगों द्वारा इटावा के संतोषपुर जैसी घटना का कोई दूसरा उदाहरण देश में मिलेगा?
जहां एक निर्दोष, सम्भ्रांत महिला को बिना किसी दोष के, मुंह काला करके, जूतों की माला पहना कर गांव में घुमाया गया हो और पुलिस ने कोई कार्यवाही न की हो -यह अखिलेश यादव के राज में ही संभव है…!!
निर्णय आपका है ब्राह्मणों 🙏
सपाई ब्राह्मण बनकर अपने घरो की औरतों को सरेआम बीच बाजार नंगा कालिख पुतवाना है या सपरिवार गोलियों से भुनवा डालना है…
या प्रदेश हित मे निष्ठा के साथ वोट करना है ताकी ऐसे आतताइयों को सत्ता का राजसिंहासन कभी नसीब ना हो…!!
जय जय श्री राम
साभार यतीन्द्र त्रिपाठी का फेसबुक वाल