एक राष्ट्र एक चुनाव पर आयोजित की गयी संगोष्ठी
गोण्डा___मंगलवार को दीन दयाल शोध संस्थान के सभागार में एक राष्ट्र एक चुनाव विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि बार-बार चुनावों से न केवल सरकारी कार्य प्रभावित होते हैं, बल्कि देश का वित्तीय व्यय भी अत्यधिक बढ़ता है। हर छह महीने पर आचार संहिता लागू हो जाती है जिससे विकास कार्य ठप पड़ जाते हैं। यदि देशभर में एक साथ चुनाव होंगे तो एक स्थिर और दक्ष प्रशासनिक व्यवस्था सुनिश्चित की जा सकेगी।
उन्होंने ऐतिहासिक दृष्टिकोण से समझाया कि स्वतंत्रता के प्रारंभिक वर्षों में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते थे और यह प्रणाली काफी हद तक सफल रही थी। उन्होंने कहा कि यदि संविधान और लोकतंत्र को सशक्त करना है तो चुनाव प्रणाली में सुधार अनिवार्य है। उन्होंने श्रोताओं से आग्रह किया कि वे इस विषय को केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से न देखें, बल्कि इसे राष्ट्रहित से जोड़कर विचार करें। उन्होंने कहा कि युवाओं को इस विषय पर जागरूकता बढ़ानी चाहिए और वैचारिक रूप से इसकी पड़ताल करनी चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे शोध संस्थान के प्रधानाचार्य हनुमत लाल पांडे ने कहा कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ से न केवल चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी, बल्कि क्षेत्रीय असंतुलन की राजनीति भी कम होगी। उन्होंने कहा कि इससे प्रशासनिक ढांचे पर बार-बार का दबाव नहीं पड़ेगा और शासन सुचारु रूप से चलेगा। उन्होंने इस विषय पर व्यापक विमर्श की आवश्यकता पर बल देते हुए इसे लोकतांत्रिक मजबूती के लिए आवश्यक कदम बताया।
एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के संभावित लाभ
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ व्यवस्था से देश में अनेक लाभ होने की संभावना है। सबसे पहले यह व्यवस्था देश के आर्थिक संसाधनों की बचत करेगी। एक ही समय पर चुनाव होने से सुरक्षा बलों, चुनाव आयोग और सरकारी मशीनरी पर बार-बार बोझ नहीं पड़ेगा। इसके साथ ही विकास कार्यों में आचार संहिता की बार-बार बाधा नहीं आएगी। राजनीतिक अस्थिरता की संभावनाएं भी कम होंगी और शासन का ध्यान लगातार जनहित पर केंद्रित रह सकेगा। यह लोकतंत्र को अधिक मजबूत और व्यवस्थित बना सकता है।
इस अवसर पर वरिष्ठ अधिवक्ता राजा बाबू गुप्ता समेत कई प्रबुद्ध वक्ताओं ने अपने विचार रखे और छात्रों, बुद्धिजीवियों तथा समाजसेवियों की उल्लेखनीय उपस्थिति रही।