बहराइच। जिले में आयोजित अर्न्तराष्ट्रीय पत्रकार सम्मेलन जिसमे प्रदेश सहित देश भर के बुद्धिजीवियों सहित तमाम पत्रकारों ने भाग लिया, कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकारों सहित अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले अतिथियों को सम्मानित किया गया, इसी क्रम में जनपद गोण्डा का देश विदेशों में भी नाम ऊंचा करने वाले महाकवि स्व0 अदम गोंडवी के भतीजे दिलीप गोंडवी को भी सम्मानित किया गया।
पत्रकारों के बीच मिले अपने सम्मान पर बोलते हुए श्री गोंडवी ने कहाँ की सर्वप्रथम कार्यक्रम के आयोजन कर्ता आनन्द प्रकाश गुप्ता, जिलाध्यक्ष-बहराइच, मेजर डॉ. एस.पी. सिंह, कार्यक्रम संरक्षक शादाब हुसैन मण्डल अध्यक्ष के साथ उ.प्र. ज़िला मान्यता प्राप्त पत्रकार एसोसिएशन बहराइच की पूरी टीम का विशेष आभार।
उन्होंने कहा की सम्मान ये एक ऐसा शब्द है जिससे किसी की कीमत का पता चलता है। यह तो हम सभी जानते हैं कि हमारे जीवन में सम्मान का कितना अधिक महत्व है। हर व्यक्ति अपने जीवन में अन्य लोगों से सम्मान प्राप्त करना चाहता है। हालांकि, सम्मान प्राप्त करना व्यक्ति के अपने ही हाथों में होता है, जो दूसरों का सम्मान करता है एवं अपनी फर्ज को ईमानदारी से करता है, ऐसा हर व्यक्ति जगह सम्मान प्राप्त करता है।कई बार किसी व्यक्ति को उसकी प्रतिष्ठा एवं योग्यता के लिए भी सम्मान प्राप्त होता है। वहीं अगर आप दूसरों से सम्मान प्राप्त करना चाहते हैं तो आप भी दूसरों का सम्मान करना होगा और बात करते हुए उनके प्रति सम्मान की भावना का प्रदर्शन करना होगा।
गोण्डा मेरा अपना शहर है
हिंदी के महान कवि राम नाथ सिंह अदम गोंडवी की जन्म भूमि
यूँ खुद की लाश अपने काँधे पर उठाये हैं,
ऐ शहर के वाशिंदों ,हम गाँव से आये हैं,
मेरा जन्म हुआ और मेरी माध्यमिक शिक्षा हुई। मुझे हमेशा महसूस होता है कि मैं आज जो कुछ भी हूं, जैसा भी हूं और जहां भी हूं, उसका श्रेय गोण्डा को ही जाता है
इस अवसर पर उन्होंर अदम गोंडवी की रचनाओं की कुछ पंक्तियों का उल्लेख करते हुए कहा——–
शोलों जैसी आंच आ रही है पीपल की छांव में,
सिवा भूख या बेकारी के क्या रखा है गांव में,
धरती के तन पर फोड़े सी झोपड़ियां हैं फूस की,
पनघट है वीरान पड़ गयी छाया किस मनहूस की ,
पेट की खातिर अब भी अस्मत लग जाती है दांव में,
सिसक रही देखो मानवता गांव की सुनी गलियों में,
है कोई जो आग लगा दे दिल्ली की रंगरलियों में,
दिल के सूरज को, सलीबों पे चढ़ाने वालो!
रात ढल जाएगी, इक रोज जमाने वालो!
मैं तो खुशबू हूँ, किसी फूल में बस जाऊँगा!
तुम कहाँ जाओगे काँटों के बिछाने वालो !
मैं उसूलों के उजालों में रहा करता हूँ!
सोच लो मेरी तरफ लौट के आने वालो !
उँगलियाँ तुमपे उठाएगी ये दुनिया इक दिन!
अपने ‘अदम’ से नजर फेर के जाने वालो !
जहाँ पर भाईयों में प्यार का सागर नहीं होता,
वो ईंटों का मकाँ होता है , लेकिन घर नहीं होता ,
जो अपने देश पर कटने का जज्बा ही न रखता हो ,
वो चाहे कुछ भी हो सकता है , लेकिन सर नहीं होता,
जो समझौते की बातें हैं , खुले दिल से ही होती है,
जो हम मिलते हैं उनसे, हाथ में खंजर नहीं होता है,
हकीकत और होती है, नजर कुछ और आता है,
जहाँ पर फुल खिलते हैं, वहाँ पत्थर नहीं होता है,
जो एक सीमा मे रहकर रोशनी देता है ‘अदम’ को,
वो जुगनू हो तो हो, लेकिन कभी दिनकर नहीं होता !
एक कदम चलते है, और चल के ठहर जाते हैं,
हम तो अब वक़्त की आहट से भी डर जाते हैं!
जो भी इस आग के दरिया में उतर जाते हैं,
वही तपते हुए सोने -से निखर जाते हैं!
भीड़ के साथ चले हैं, वो उधर जाते हैं!
हम तो खुद राह बनाते हैं, इधर जाते हैं,
मेरी कश्ती का खिवैया है, मुहाफिज तू हैं,
कितने आते हैं यहाँ, कितने भँवर जाते हैं !
जब भी आते हैं मेरी आँख में आँसू ‘अदम’
जख्म सीने के मेरे, और निखर जाते हैं!
सत्ताधारी लड़ पड़े हैं आज कुत्तों की तरह,
सूखी रोटी देखकर हम मुफलिसों के हाथ में!
जो मिटा पाया न अब तक भूख के अवसाद को ,
दफ़्न कर दो आज उस मफलूस पूँजीवाद को !
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