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श्रीधर वेम्बू:- चप्पल, लुंगी और साईकिल, स्वदेशी की अलख जगाने वाले ख़रबपति उद्धमी की बनी पहचान

Written by Vaarta Desk

ठीक पाँच वर्ष पहले इनके बारे में जाना था, तो लिखा था । अच्छा लगता है कि आज लोग जोहो काॅरपोरेशन को जान रहे हैं । आशा करता हूँ , जोहो काॅरपोरेशन भारतीयों की अपेक्षाओं-आकांक्षाओं पर खरा उतरेगी ।

पाँच वर्ष पुरानी स्मृति –

उनका अगला लक्ष्य प्राइवेट जेट खरीदना होना चाहिए था । वैसे भी यदि किसी की कुल सम्पत्ति 18 हजार करोड़ रुपये की हो , तो 300 करोड़ रुपये के प्राइवेट जेट विमान खरीदने पर कोई भी आपत्ति नहीं करेगा । … और फिर जब अथाह धन हो , तो फिर आपत्ति होना भी क्यों है ?

लक्ष्मी जब छप्पर फाड़कर धन बरसाती है , तो ऐसे निर्णय किसी को अचंभित नहीं करते । सम्भवतः एक खरबपति के लिए जेट विमान खरीदना ऐसा ही है , जैसे किसी मैनेजर के लिए मारुति कार खरीदना ।

लेकिन #ZOHO_CORPORATION के चेयरमैन #श्रीधर_वेम्बु पर लक्ष्मी के साथ-साथ सरस्वती की भी असीम कृपा थी , इसलिए उनके उद्देश्य औरों से बिलकुल अलग थे ।

प्राइवेट जेट खरीदना तो दूर , उन्होंने अपनी कम्पनी के बोर्ड-निदेशकों से कहा कि वे अब जोहो काॅरपोरेशन का मुख्यालय कैलिफोर्निया ( अमेरिका ) से कहीं और ले जाना चाहते हैं । श्रीधर के इस प्रस्ताव से कम्पनी के अधिकारी हतप्रभ थे ; क्योंकि सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री के लिए कैलिफोर्निया के बे-एरिया से उपयुक्त स्थान दुनिया में और कोई नहीं । गूगल , एप्पल , फेसबुक , ट्विटर … सब के सब इसी क्षेत्र में बसे , फले , फूले ; पर श्रीधर तो कुछ और बड़ा अप्रत्याशित निर्णय लेने जा रहे थे ।

वे कैलिफोर्निया से सीएटल या ह्यूस्टन शिफ्ट नहीं हो रहे थे । वे अमेरिका से लगभग 13000 किलोमीटर दूर चेन्नई वापस आना चाहते थे ।

उन्होंने बोर्ड मीटिंग में जोर देकर कहा – “अगर डैल , सिस्को , एप्पल या माइक्रोसॉफ्ट अपने दफ्तर और रिसर्च सेंटर भारत में स्थापित कर सकते हैं , तो जोहो काॅरपोरेशन को स्वदेश लौटने से परहेज क्यों है ?”

श्रीधर के तर्क और प्रश्नों पर बोर्ड में मौन छा गया । निर्णय हो चुका था । आईआईटी मद्रास के इंजीनियर श्रीधर वापस चेन्नई आने का संकल्प ले चुके थे । उन्होंने कम्पनी के नये मुख्यालय को तमिलनाडु के एक गाँव ( जिला टेंकसी ) में स्थापित करने के लिए 4 एकड़ जमीन पहले से ही खरीद रखी थी और घोषणा के अनुसार ही अक्टूबर 2019 , अर्थात् ठीक एक वर्ष पहले श्रीधर ने टेंकसी जिले के मथलामपराई गाँव में जोहो काॅरपोरेशन के ग्लोबल हेडक्वार्टर का शुभारम्भ किया । यही नहीं , 2.5 बिलियन डॉलर के जोहो काॅरपोरेशन ने पिछले ही वर्ष सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट कारोबार में 3,410 करोड़ रुपये का रिकॉर्ड राजस्व प्राप्त करके टेक जगत में कितनों को चौंका दिया ।

स्वदेश क्यों लौटना चाहते थे श्रीधर … ?

श्रीधर अमेरिका की किसी एजेंसी , बैंक या स्टॉक एक्सचेंज के दबाव के कारण स्वदेश नहीं लौटे । उन पर प्रतिस्पर्धा का दबाव भी नहीं था । वे कोई नया व्यवसाय भी आरम्भ नहीं कर रहे थे । वे किसी नकारात्मक कारण से नहीं , एक सकारात्मक विचार लेकर स्वदेश लौटे । उन्होंने कई वर्ष पहले संकल्प लिया था कि अगर जोहो ने बिजनेस में सफलता पायी , तो वे लाभ का बड़ा हिस्सा स्वदेश में निवेश करेंगे । कम्पनी के लाभ को वे गाँव के बच्चों को आधुनिक शिक्षा देने पर भी खर्च करेंगे । इसी उद्देश्य से उन्होंने सबसे पहले मथलामपराई गाँव में बच्चों के लिए निःशुल्क आधुनिक स्कूल खोले । कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी के जानकार श्रीधर गाँव में ही जोहो विश्वविद्यालय भी बना रहे हैं , जहाँ भविष्य के सॉफ्टवेयर इंजीनियर तैयार होंगे । फोर्ब्स मैगजीन में दिये गये एक इंटरव्यू में श्रीधर कहते हैं – “यदि टेक्नोलॉजी को ग्रामीण क्षेत्रों से जोड़ा जाए , तो गाँव से पलायन रोका जा सकता है । गाँव में प्रतिभा है , काम करने की इच्छा है ; यदि आधुनिक शिक्षा से हम बच्चों को जोड़ें , तो एक बड़ा टैलेंट पूल हमें गाँव में ही मिल जाएगा । इसीलिए मैं भी बच्चों की क्लास में जाता हूँ , उन्हें पढ़ाता हूँ । मेरी कोशिश गाँव को सैटेलाइट से जोड़ने की है । हम न केवल दूरियाँ मिटा रहे हैं , न केवल पिछड़ापन दूर कर रहे हैं ; अपितु शहर से बेहतर डिलीवरी गाँव से देने जा रहे हैं । प्रोडक्ट चाहे सॉफ्टवेयर ही क्यों न हो ।”

चित्र स्पष्ट करते हैं कि श्रीधर अत्यंत सहज और सादगी पसंद व्यक्ति हैं । वे लुंगी और शर्ट में ही प्रायः आपको दिखेंगे । गाँव और तहसील में आने-जाने के लिए वे साइकिल पर ही निकलते हैं । उनकी बातचीत से , हाव-भाव से यह आभास नहीं होता कि श्रीधर एक खरबपति सॉफ्टवेयर उद्योगपति हैं , जिन्होंने 9 हजार से अधिक लोगों को रोजगार दिया है , जिनमें अधिकांश इंजीनियर हैं । उनकी कम्पनी के काम अमेरिका से लेकर जापान और सिंगापुर तक फैले हैं , जहाँ 9,300 टेक कर्मियों को रोजगार मिला है । श्रीधर का कहना है कि आने वाले वर्षों में वे और 8 हजार टेक रोजगार भारत के गाँवों में उपलब्ध कराएँगे और ग्लोबल सर्विस को देश के नॉन-अर्बन इलाकों में शिफ्ट करेंगे । शिक्षा के साथ-साथ गाँवों में वे आधुनिक अस्पताल, सीवर सिस्टम, पेयजल, सिंचाई, बाजार और स्किल सेंटर स्थापित कर रहे हैं ।

एक प्रश्न उभरता है –

क्या कारण है कि देश में श्रीधर जैसे हीरों की परख जनता नहीं कर पाती ? क्या कारण है कि हम असली नायकों को अनदेखा करके छद्म नायकों को पूजते हैं ? श्रीधर चाहते , तो आज कैलिफोर्निया में निजी जेट विमान पर उड़ रहे होते , सेवन स्टार लक्जरी विला में रहते , अपनी कमाई को विदेश में ही निवेश करते जाते । आखिर उन्हें स्वदेश लौटने की जरूरत ही क्या थी ? फिर भी देशवासी उनके त्याग का संज्ञान नहीं लेते !

क्या कीचड़-उछाल और घृणा-द्वेष से रँगे इस देश में अब श्रीधर जैसे लोग अप्रासंगिक हो रहे है या हमलोग इतने निकृष्ट और निर्लज्ज होते जा रहे हैं कि नर में नारायण की जगह नालायक ढूँढने लगे हैं ?

श्रीधर जैसे अनेक ध्रुवतारे आज देश को आलोकित कर रहे हैं , पर इन तारों की चमक समाज को आकर्षित नहीं कर रही । उनके कर्म न्यूज चैनल की सुर्खियाँ नहीं बन पाते हैं और जिन व्यक्तियों को सुबह-शाम चमकाया जा रहा है , वे अँधेरों के सिवा आपको कुछ दे नहीं सकते ।

आपसे आग्रह है कि यदि बच्चों का भविष्य बदलना है , तो कुछ देर के लिए राष्ट्रीय न्यूज चैनल बंद कर अपने आसपास , अपने गाँवों-शहरों में श्रीधरों को ढूँढ़िए ।

रजनीश पाठक के फेसबुक वाल से 

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