अमर भारती काव्योत्सव में उर्वशी अग्रवाल की कविता ‘मी टू’ ने बटोरी सराहना
गाजियाबाद। रोटी, कपड़ा और मकान के बाद आदमी की सबसे बड़ी जरूरत साहित्य है। समाज के लिए बुनियादी सुविधाओं के साथ तुलसी, सूर, कालिदास, शेक्सपियर, मिल्टन, प्रेमचंद, कबीर व निराला भी जरूरी हैं। साहित्य समाज का निर्माण करने के साथ उसे दिशा देने का काम भी करता है। सुप्रसिद्ध लेखक हरि यश राय ने उक्त उद्गार प्रकट करते हुए कहा कि कविता खत्म नहीं होती जीवन के साथ चलती है।
नेहरू नगर स्थित सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में अमर भारती साहित्य संस्कृति संस्थान के काव्य उत्सव को संबोधित करते हुए श्री राय ने कहा कि नृत्य, नाटक, कविता देखने सुनने के बाद हम वैसे नहीं रहते जैसे पहले थे, यानी कला हम में बदलाव लाने, आत्मावलोकन करने का अवसर प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि बेहतर समाज और बेहतर इंसान की संरचना का काम कविता ही करती है। काव्य उत्सव की मुख्य अतिथि डॉ. मीना नकवी ने कहा कि अमर भारती का मंच हिंदी उर्दू तहजीब का संगम बन गया है। उन्होंने कहा कि इस मुल्क की मिट्टी में कई कौमों की तहजीब बसी है। जो हमारी साझा विरासत है। अपने शेर और गजलों पर डॉ. नकवी ने जमकर दाद बटोरी। उन्होंने कहा “मुख्तलिफ लोग मुख्तलिफ कौमें मुल्क में यकजबान रहते हैं, रंग जिसमें धनक के बिखरे हों उसको हिंदुस्तान कहते हैं।
” कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि उर्वशी अग्रवाल उर्वि ने अपने दोहों और ” मी टू” कविता पर जमकर दाद बटोरी। उन्होंने कहा “मैं शबरी हूं राम की शक्ति चखती बेर, तकती रहती रास्ता हुई कहां पर देर।” “शबनम की एक बूंद दहकते अंगारों से क्या लड़ती, एक अकेला जुगनू थी मैं अंधेरों से क्या लड़ती।” कार्यक्रम का शुभारंभ आर.के. भदौरिया की सरस्वती वंदना से हुआ। डॉ. तारा गुप्ता ने कहा “बस गए अब शहर में मगर क्या करें, भीड़ में हम खड़े हैं बियाबान से।”
नेहा वैद ने अपने गीत की पंक्तियों “अंगुलियों के पोर खुरदुरे हुए, फूल काढ़ते हुए रुमाल पर, कितनी बार हाथ में सूई चुभी, एक फूल तब खिला रुमाल पर” वाहवाही बटोरी। शालिनी सिन्हा ने कहा “कितने भी पतझड़ आए, मन के पत्ते मुरझाए, जीवन की आपाधापी में मन एकाकी हो जाए, मन का एक कोना हरा-भरा रखना।” आशीष मित्तल ने कहा “मैं सुलझा रहा था जिंदगी, पर खुद ही उलझ गया, मैंने उसे एक हद तक समझाया, फिर खुद समझ गया।
” डॉ. माला कपूर ने कहा “नया है जो आज, कल पुराना होगा, कल फिर एक नया जमाना होगा।” सुरेंद्र सिंघल ने कहा “कोई दरवाजा कहीं होता तो कहीं खुलता तो जरूर, यानी दस्तक मेरी दीवारों से टकराती रही।” कार्यक्रम संचालिका तरुण मिश्रा ने कहा “दरबारों की बाजारों की या खबरें अखबार की हों, अपनी आंखें बंद ही रखियो बातें जब सरकार की हों।” रमा सिंह की ग़ज़ल के शेर “तुमने मुझको जाना कब और मुझे पहचाना कब, कैसे किससे बात हुई, पूछ लिया पर माना कब। मुझ पर छोड़े तीर कई, पर दुश्मन पर ताना कब। गहरी गहरी साजिश का, मिले यहाँ तहखाना कब ” भी सराहे गए।
अमर भारती प्रतिभा सम्मान से नवाजे गए सुप्रसिद्ध रंगकर्मी अक्षयवरनाथ श्रीवास्तव ने कहा कि अमर भारती की उपलब्धि यह है कि यहां कविता में ड्रामा देखने को मिलता है।
इस अवसर पर डॉ. रमा सिंह, मासूम गाजियाबादी, अतुल सिन्हा, डॉ. बृजपाल सिंह त्यागी, श्रीविलास सिंह, कुमैल रिज़वी, सुभाष अखिल, सरवर हसन सरवर, सीताराम अग्रवाल, तूलिका सेठ, आलोक यात्री, प्रवीण कुमार, कीर्ति रतन, मधुरिमा सिंह, कमलेश त्रिवेदी, राज किशोरी, सुरेंद्र शर्मा, इंद्रजीत सुकुमार, विनोद पाराशर, सुरेश मेहरा, कुसुम पंडेरा, ललित चौधरी, गोविंद गुलशन, डॉ. धनंजय सिंह ने भी काव्य पाठ किया।
इस अवसर पर डॉ. मंगला वैद, सुभाष चंदर, अमरेंद्र राय, बबली वशिष्ठ, अनिल बाबू, सुशील शर्मा, उमाकांत दीक्षित, राजपाल त्यागी, सुशील शैली, मधु बी. जोशी, राकेश सेठ, मीनू कुमार, शिवराज सिंह, सोनिया चौधरी, सुधांशु मिश्र, अजय शर्मा, राज किशोर, फरहत खान, टी.पी. चौबे, मंजू कौशिक, सुजाता चौधरी एवं अमित गर्ग सहित बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी मौजूद थे।
You must be logged in to post a comment.