धान की फसलों को रोगों से बचाने के लिए कृषि रक्षा अधिकारी ने दी जानकारी
गोण्डा ! बारिश के बाद खरीफ की फसलों में तेजी से लग रहे रोगों को लेकर जिला कृृषि रक्षा अधिकारी ने जानकारी दी है कि धान की फसल में कीट एवं रोग प्रबन्धन कैसे किया जाय और फसल को कैसे रोगों से बचाया जाय।
रोगों की रोकथाम हेतु जानकारी देते हुए उन्होंने बताया है कि खरीफ के मौसम में वर्षात अच्छी हुयी हैं जिसमे खरीफ की मुख्य फसल धान बहुत अच्छी स्थिति में है। इस समय धान की फसल में कीट एवं बीमारी के प्रकोप की सम्भावना है, जिसके सम्बंध में कृषक भाईयों को चाहिए कि अपने फसल की बराबर निगरानी करते रहे। कीट, रोग के लक्षण के अनुसार आई0पी0एम0 फसल पद्वति अपनाते हुयें फसल की सुरक्षा करें। धान में कई प्रकार के कीट एवं रोगों का प्रकोप होता है। जीवाणु झुलसा रोग, जिसे बैक्ट्रेरियल ब्लाइट रोग के नाम से जाना जाता है, इसका प्रकोप फसल में कल्ला निकलने की अवस्था पर अधिक होता है। पत्तियां नोक से अथवा किनारे की तरफ से सूखना प्रारम्भ कर नीचे की तरफ सूखती हैं। आरम्भ मे ंधब्बे धूसर रंग के होते हैं जो एक या दो दिन में पीले हो जाते है। इसके नियंत्रण हेतु स्ट्रेप्टो माइसीन सल्फेट 90 प्रति0 15 ग्राम एवं कापर आक्सीक्लोराइड 50 प्रति0 डब्ल्यू0पी0 500 ग्राम हे0 की दर से 400 से 500 ली0 पानी मे घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। अवशयक्तानुसार 10 से 15 दिन के अन्तराल पर दूसरा छिड़काव करना चाहिए, रोग की अवस्था में यूरिया का पर्णीय छिड़काव नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार फाल्स स्मट (झूठा कण्डुआ रोग) जिसे किसान हर्दिहवा रोग के नाम से जानते हैं। इस रोग मे धान की बाली के दाने पीले रंग के आवरण से ढक जाते है, जो बाद मे काले रंग के हो जाते है। यह रोग बीज जनित बुवाई के समय बीज शोधन करना चाहिए। रोग पर कार्बेन्डाजिम 50 प्रति0 डब्ल्यू0पी0 02 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से 500 से 700 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
तना छेदक कीट जिसकी मादा कीट पत्तियों पर समूह में अण्डा देती है, अण्डे से सूड़ि़यां निकल कर तनों मे घुस कर मुख्य शूट को क्षति पहुचाती है। जिससे बाली आने पर सफेद दिखायी देती है। इसके नियंत्रण हेतु कार्बोफयूरान 3 जी 20 किलो ग्राम प्रति0 ई0सी0 की दर से प्रयोग करना चाहिए अथवा क्यूनाफाॅस 25 प्रति0 ई0सी0 1ण्5 ली0 या क्लोरोपाइरीफास 20 प्रति0 ई0सी0 1ण्5 ली0 प्रति0 हे0 की दर से 500 से 600 ली0 पानी मे घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
फुदका कीट जो कि भूरे, सफेद रंग के पंख वाले छोटे आकार के होते हैं। जिसमे भूरा रंग फुदका अत्यन्त बिनाशकारी है। जिसके प्रकोप से जगह जगह पौधे झुलसे दिखायी देते है, फुदका नियंत्रण हेतु कार्बोफयूरान 3 जी 20 किलो ग्राम प्रति0 ई0सी0 की प्रयोग करना चाहिए अथवा क्यूनाफाॅस 25 प्रति0 ई0सी0 1ण्5 ली0 या क्लोरोपाइरीफास 20 प्रति0 ई0सी0 1ण्5 ली0 या इमिडाक्लोप्रिड 17ण्8 प्रति0 एस0एल0 मिली0 प्रति हे0 की दर से500 से 600 ली0 पानी मे घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
ग्ंाधी कीट जो कीट के प्रौढ़ वाली के दुग्धावस्था मे दानों से रसचूस लेते है। जिससे दाने नहीं बनते है, इसके नियंत्रण हेतु मैलाथियान 5 प्रति0 धूल या फेनवलरेट 0ण्04 प्रति0 धूल 20 से 25 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से भुरकाव करना चाहिए अथवा इजाडिरेक्टीन 0ण्15 प्रति0 ई0सी0 25 ली0 प्रति हे0 की दर से 500 से 600 ली0 पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
सैनिक कीट जो कि जिसकी सूड़ियाॅ भूरे रंग की होती है जो दिन के समय धान के कल्लांे या मिट्टी की दरारों में छपी रहती है। रात में बाहर निकल कर पौधों के ऊपर चढ़ जाती हैं, और बालियांे को छोटे-छोटे टुकड़ो मे काट कर नीचे गिरा देती है। इसके नियंत्रण हेतु मैलाथियान 5 प्रति. धूल या मिथाइलपैराथियान 2 प्रति0 धूल अथवा फेनवलरेट 0ण्04 प्रति0 धूल 20 से 25 किलो0 प्रति हे0 की दर से सायं के समय भुरकाव कराना चाहिए।
उन्होंने किसानों की सुविधा के लिए बताया कि किसान भाईयों अपने फसल की सुरक्षा हेतु आनलाइन ब्यवस्था सहभागी फसल निगरानी एवं निदान प्रणाली(पी0सी0आर0एस) के अन्तर्गत दूर भाषा नं0 9452247811, 9492257111 एंव कृषि विभाग की वेवसाइट www.upagriculture .com से भी समस्या का निदान प्राप्त कर सकते है।