मध्य प्रदेश शिक्षा

सुपरफीशियल अध्ययन की बजाय छात्र गहन अध्ययन पर दे ध्यान -डाॅ पी के खरे

Written by Vaarta Desk

पन्ना राष्ट्रीय उद्यान का विद्यार्थियों ने किया शैक्षणिक भ्रमण

छतरपुर (मध्यप्रदेश)। शासकीय महाराजा महाविद्यालय छतरपुर के वनस्पतिशास्त्र विभाग द्वारा 12 फरवरी को पन्ना राष्ट्रीय उद्यान का एकदिवसीय शैक्षणिक भ्रमण किया गया।जिसे वनस्पतिशास्त्र विभागाध्यक्ष डाॅ मंजूषा सक्सेना के मार्गदर्शन में डाॅ पी के खरे,डाॅ अमिता अरजरिया व डाॅ पी एल प्रजापति के सहयोग से संचालित किया गया।

इस शैक्षणिक भ्रमण में विभाग के एम एस सी फाइनल ईयर से राखी रिछारिया, जयंती, सरिता चौरसिया, रोहिणी पटेरिया, पूजा यादव, सत्येन्द्र तिवारी, नीलेश दुबे, भारती अहिरवार, रचना राजपूत, चन्द्रप्रभा पटेल, भानूप्रताप अहिरवार, भरत यादव, वंदना त्रिपाठी, पूनम विश्वकर्मा, शुभी अरजरिया, शायना खातून, कंचन, आकांक्षा पाठक, पूर्णिमा सिंह परिहार, पूनम रैकवार और एम एस सी प्रिवियस ईयर से गायत्री श्रीवास, पूजा विश्वकर्मा, दीक्षा चौरसिया, प्रियंका विश्वकर्मा, सिवानी मिश्रा, राजकुमार प्रजापति, राजोली, सचिन कुमार अहिरवार, अशोक पटेल, निकिता चौरसिया, उर्वशी शर्मा, रोशनी कुमारी, रीना ओमरे, रीता चौरसिया, पूजा गुप्ता, मोनाली सरकार, रोहनी साहू, सपना अहिरवार, आरती आदिवासी, मानसी यादव, प्रियंका गुप्ता और मदन साहू सहित 42 छात्र -छात्राओं ने शैक्षणिक भ्रमण कर पन्ना राष्ट्रीय उद्यान की वनस्पतिक विशेषताओं को जाना।

इस दौरान विद्यार्थियों को पांडव फाॅल, कर्णावती म्यूजियम, केन नदी, स्वर्गेश्वर धाम व राजगढ़ स्थित कजलिया तालाब सहित कई महत्वपूर्ण स्थानों का भ्रमण कराया गया। जिसमें छात्र -छात्राओं ने क्षेत्रीय वनस्पति को पहचाना, स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र को समझा, वनस्पतियों के महत्व व उपयोग जाने और क्षेत्रीय शैलों की विशेषताओं के आधार पर पहचान कर अपने ज्ञान को बढ़ाया।

भ्रमण के दौरान छात्रों को पांडव फाॅल के आस-पास वनस्पतिशास्त्र में वर्णित लोवर प्लांट की अनेक प्रजाति देखने को मिली। जिसे लेकर विभागाध्यक्ष डाॅ मंजूषा सक्सेना ने पाण्डव जलप्रपात क्षेत्र को शैवाल, फंजाई, ब्रायोफाइटा, टेरिडोफाइटा की विभिन्न दुर्लभ प्रजातियों का उत्कृष्ट केन्द्र बताया। इस दौरान वहां पाई गई वनस्पतियों में डाॅ पी के खरे द्वारा शैवालों में छात्रों को नाॅस्टाॅक काॅलोनी की पहचान, सिलैजिनेला आदि, फंजाई, ब्रायोफाइटा, टेरिडोफाइटा सहित कई वनस्पतिक तथ्यों को बारीकी से समझाया गया।

डाॅ अमिता अरजरिया ने छात्रों को वहां मौजूद बड़े पेड़ों से परिचित कराते हुए उनके औषधि गुणों से भी अवगत कराते हुए बताया कि कुल्लू वानस्पतिक नाम यसटरकूलिया यूरेंस की गाद से ब्लड प्रेशर, नाक फूटने जैसी बीमारियों को आसानी से खत्म कर सकते है।

वहीं डाॅ पी एल प्रजापति ने वहां मौजूद फर्न, अतिमहत्वपूर्ण पौधों को पहचानने में छात्रों की मदद की। पांडव फाॅल के आस-पास अर्जुन के पेड़ पर मधुमक्खियों के छत्ते तोड़कर खाने चढ़े भालू के निशानों की पहचान की गई और भूवैज्ञानिक रूप से भी वहां की स्थलाकृतियों का विश्लेषण किया गया। जिस दौरान वहां चूनाघुलित पानी से निर्मित स्टेलेगटाइट, संस्तरित बलुआ पत्थर और उसमें लेमिना के स्पष्ट उदाहरण और वहां चूनापत्थर के मौजूद होने के स्पष्ट प्रमाण मिले।

भ्रमण के दौरान छात्रों ने कर्णावती म्यूजियम पहुंचकर पन्ना की वनस्पतिक,जैविक,भूवैज्ञानिक और भौगोलिक विरासत को जाना।वहीं केन नदी से डाॅ अमिता अरजरिया द्वारा सिरेटोफिल्लम, आईपोमिया, साइप्रस रोटन्डस यानि नागरमोथा को प्रायोगिक परीक्षण के लिए इकट्ठा किया गया। इसी तारतम्य में छात्रों को स्वर्गेश्वर धाम भी ले जाया गया जहां फर्न के स्पष्ट उदाहरण और स्पष्ट अवसादी संस्तरणों से झरने के रूप में जलस्राव का मनोरम दृश्य भी देखने को मिला।इसी दौरान राजगढ़ स्थित कजलया तालाब में मौजूद विभिन्न जलीय पौधों को विद्यार्थियों को विस्तृतरूप से बताया गया और वहां मौजूद जलीय वनस्पति एजोला, पोटामोजीटाॅन को भी एकत्र कर प्रायोगिक अध्ययन के लिए साथ ले जाया गया।

भ्रमण के दौरान डाॅ पी के खरे द्वारा विद्यार्थियों से सुपरफीशियल अध्ययन की बजाय विषयों का गहराई से अध्ययन करने और उसे व्यवहारिक तौर पर समझने को कहा गया।वहीं डाॅ अमिता अरजरिया द्वारा छात्रों को अध्ययन के दौरान सीखे गए ज्ञान का उपयोग करते हुए उन्नत कृषि और स्वरोजगार स्थापित करने के तरीके भी समझाए गए।विभागाध्यक्ष डाॅ मंजूषा सक्सेना ने बताया कि भ्रमण के सफल संचालन में विभाग के टीचिंग स्टाफ और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी देवकी बेन और देव सिंह का महत्वपूर्ण सहयोग रहा।वहीं छात्र-छात्राओं ने इस भ्रमण को अति महत्वपूर्ण और उपयोगी बताते हुए जमकर सराहा और धन्यवाद देते हुए आयोजकों का आभार भी प्रकट किया।वहीं वनस्पतिक शैक्षणिक भ्रमण में वनस्पतिक अध्ययन के उद्देश्य से आए छात्रों ने राष्ट्रीय उद्यान प्रबंधन द्वारा शैक्षणिक और शोध कार्यों के लिए भी सख्त नियम बरते जाने को लेकर आपत्ति जताते हुए प्रशासन से शैक्षणिक और शोध कार्यों हेतु विशेष प्रावधान और सुविधाएं उपलब्ध कराने का भी आग्रह किया।उनका कहना था कि इससे राष्ट्रीय उद्यान की नई विशेषताएं, जलवायु परिवर्तन से नेशनल पार्क पर पड़ रहे प्रभाव को समझने और सुलझाने में भी मदद मिल सकेगी।

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