एंटीबायोटिक दवाओं का उत्पादन 75 साल पहले शुरू हुआ था। इन्हें लेकर अर्से से जताई जा रही चिंता भले ही गंभीर रूप लेती जा रही हो, लेकिन हकीकत यह है कि तमाम बीमारियों का रामबाण इलाज आज भी इन्हीं दवाओं से संभव हो पा रहा है। कभी-कभी ये दवाएं शरीर में एलर्जी व अन्य नई बीमारियों को पैदा करने का सबब बन जाती हैं।
ये दवा-दुकानों के अलावा गांव की परचून दुकानों पर भी मिल जाती है। लिहाजा शरीर में जो जीवाणु व विषाणु मौजूद हैं, वे इन दवाओं के विरुद्ध अपना प्रतिरोधी तंत्र विकसित करने में सफल हो रहे हैं। नतीजतन ये दवाएं रोग पर बेअसर भी साबित हो रही है।
WHO ने बताया वैश्विक खतरा
इसीलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी एक रिपोर्ट में एंटीबायोटिक दवाओं के विरूद्ध पैदा हो रही प्रतिरोधत्मक क्षमता को मानव स्वास्थ के लिए वैश्विक खतरे की संज्ञा दी है। डब्ल्यूएचओ ने 114 देशों में विश्लेषण करते हुए रिपोर्ट में एक ऐसे पोस्ट एंटीबायोटिक युग की आशंका जताई गई है, जिसमें लोगों के सामने फिर उन्हीं सामान्य सक्रंमणों के कारण मौत का खतरा होगा, जिनका पिछले कई दशकों से इलाज संभव हो रहा है। यह रिपोर्ट मलेरिया, निमोनिया, डायरिया और रक्त संक्रमण का कारण बनने वाले सात अलग-अलग जीवाणुओं पर केंद्रित है। रिपोर्ट के अनुसार अध्ययन में शामिल आधे से ज्यादा लोगों पर दो प्रमुख एंटीबायोटिक का प्रभाव नहीं पड़ा।
कहीं ज्यादा तेजी से प्रतिरक्षा पैदा कर रहे जीवाणु
स्वाभाविक तौर पर जीवाणु धीरे-धीरे एंटीबायोटिक के विरूद्ध अपने अंदर प्रतिरक्षा क्षमता पैदा कर लेता है, लेकिन इन दवाओं के हो रहे अंधाधुंध प्रयोग से यह स्थिति अनुमान से कहीं ज्यादा तेजी से सामने आ रही है। चिकित्सकों द्वारा इन दवाओं की सलाह देना और मरीज की ओर से दवा की पूरी मात्रा न लेना भी इसकी प्रमुख वजह है।
प्राकृतिक रूप से हमारे शरीर में 200 किस्म के ऐसे सूक्ष्मजीव मौजूद हैं, जो हमारे प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत व शरीर को निरोगी बनाए रखने का काम करते हैं। लेकिन ज्यादा मात्रा में खाई जाने वाली एंटीबायोटिक दवाएं इन्हें नष्ट करने का काम करती हैं। एंटीबायोटिक दवाओं की खोज मनुष्य जाति के लिए ईश्वरीय वरदान साबित हुई थी। मगर जैसे ही संक्रामक रोगों से लड़ने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल शुरू हुआ, वैज्ञानिकों ने पाया कि पुराने सूक्ष्मजीवों ने अपना रूपांतरण कर लिया है। यानी पेंसिलीन की खोज एक क्रांतिकारी खोज थी, किंतु वैज्ञानिकों ने देखा कि कुछ ऐसे सूक्ष्मजीव सामने आए हैं, जिन पर पेंसिलीन भी बेअसर है।
क्या होते हैं सूक्ष्मजीव
जीवाणु और विषाणु सूक्ष्मजीवों के ही प्रकार हैं, जो किसा भी कोशिका में पहुंचकर शरीर को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देते हैं। ये हमारी त्वचा, मुंह, नाक और कान के जरिए शरीर में प्रवेश करते हैं। फिर एक से दूसरे व्यक्ति में फैलने लगते हैं। इसीलिए अब चिकित्सक सलाह देने लगे हैं कि प्रत्येक व्यक्ति के बीच एक हाथ की दूरी बनी रहनी चाहिए। किसी का जूठा नहीं खाना-पीना चाहिए। वैसे हमारी त्वचा सूक्षम जीवों को रोकने का काम करती है और जो शरीर में घुस भी जाते हैं, उन्हें एंटीबायोटिक मार डालते हैं।
1940 से 1980 के बीच कई एंटीबायोटिक की खोज हुई
1940 से 1980 के बीच बड़ी मात्रा में असरकारी एंटिबायोटिकों की खोज हुई,नतीजतन स्वास्थ्य लाभ के क्षेत्र में का्रंतिकारी परिवर्तन हुए। किंतु 1980 के बाद कोई बड़ी खोज नहीं हुई। 1990 में एक नई किस्म की एंटीबायोटिक की खोज जरूर हुई, मगर हकीकत में यह पुरानी दवाओं के ही नए संस्करण थे। विडंबना है कि नई एंटीबायोटिक दवाएं विकसित नहीं हो रही हैं, जबकि ताकतवार नए-नए सूक्ष्मजीव सामने आ रहे हैं।
एंटीबायोटिक का अविष्कार करने और फिर उसे परीक्षणों के बाद बाजार में लाने में दो दशक से भी ज्यादा का समय लगता है। इसमें निवेश भी अधिक होता है, इस कारण कंपनी को दवा के दाम महंगे रखने पड़ते हैं। इधर जनता की जागरूकता बढ़ने और सामाजिक कार्यकताओं की फौज खड़ी हो जाने से ड्रग ट्रायल करना भी मुश्किल हो गया है। क्योंकि अधिकांश कंपनियां और चिकित्सक ड्रग ट्रायल की शर्तें पूरी नहीं करते, नतीजतन इन्हें अदालत के कठघरे में खड़ा करना आसान हो जाता है।
प्राकृतिक प्रतिरक्षातंत्र पर असर डालती हैं यह दवाएं
प्रकृति ने मनुष्य को बीमारियों से बचाव के लिए शरीर के भीतर ही मजबूत प्रतिरक्षात्मक तंत्र दिया है। इन्हें श्वेत एवं लाल रक्त कणिकाओं के माध्यम से जाना जाता है। इसके अलावा रोग-रोधी एंजाइम लाइफोजाइम भी होता है, जो जीवाणुओं को नष्ट कर देता है। एंटिबायोटिक दवाएं जहां संक्रामक रोगों से इंसान का बचाव करती हैं वहीं इससे शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता भी कमजोर हो जाती है।
कैसे पहचानें एंटीबायोटिक दवा
एंटीबायोटिक दवाओं की पहचान कोई भी खुद कर सकता है। अगर किसी दवा के पत्ते के पीछे लाल लाइन है तो इसका मतलब है यह दवा एंटीबायोटिक है। बिना किसी परामर्श के इन दवाओं का सेवन घातक हो सकता है।
डॉक्टरों द्वारा अनुचित एंटीबायोटिक दवाओं की बिक्री, घटिया एंटीबायोटिक दवाइयां बेची जा रही हैं, बीमारी को रोकने के लिए कम टीकाकरण स्तर, अस्पतालों में खराब संक्रमण नियंत्रण, स्वच्छ पानी की कमी और नियंत्रित सीवर, एंटीबायोटिक निर्माण के लिए पर्यावरण नियंत्रण की कमी, और मांस के लिए बढ़ती भूख, विशेष रूप से पोल्ट्री। अनुचित एंटीबायोटिक खपत अक्सर बिना परामर्श के, एक बड़ी समस्या है।
बिना परामर्श के दवाओं का सेवन बड़ी समस्या
भारत में सबसे बड़ी समस्या है बिना किसी परामर्श के असानी से एंटीबायोटिक दवाओं का मिलना। परामर्श के बिना नए एंटीबायोटिक दवाओं की बिक्री को कम करने के लिए नियम लागू किए गए हैं। लेकिन भारत में ओवर-द-काउंटर दवाओं को पूरी तरह से खत्म करना संभव नहीं है, क्योंकि बहुत से लोग स्वास्थ्य देखभाल, चिकित्सकों और परामर्श तक पहुंच नहीं पाते हैं। 2014 में, भारत सरकार ने 24 प्रकार के एंटीबायोटिक दवाओं के लिए परामर्श की आवश्यकता शुरू कर दी थी, जिसे विशेष रूप से चिह्नित बक्से में बेचा जाता था। वर्तमान में कोई प्रकाशित मूल्यांकन या संकेत नहीं हैं कि यह भारत में एंटीबायोटिक खपत को कम करने में सफल रहा या नहीं।