गोंडा। किसी श्रेष्ठ गुरु की पहचान उसके शिष्यों से होती है। जब गुरु अपने शिष्य पर गर्व कर सके तो उसकी गुरुता प्रणम्य और अभिनंदन के योग्य हो जाती है। ये बातें गुरु पूर्णिमा के अवसर पर श्री लाल बहादुर शास्त्री डिग्री कॉलेज के संस्कृत विभाग के छात्रों द्वारा आयोजित गुरु वंदन और अभिनंदन कार्यक्रम में कॉलेज की प्राचार्य डॉ. वंदना सारस्वत ने कहीं।
कार्यक्रम के अध्यक्षीय उद्बोधन में प्राचार्य डॉ. सारस्वत ने गोस्वामी तुलसीदास की चौपाइयों के माध्यम से यह भी कहा कि ‘हरइ शिष्य धन शोक न हरई। सो गुरु घोर नरक महं परई।’ इस अवसर पर उन्होंने महाविद्यालय के सभी शिक्षक बंधुओं को गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं दी।
मुख्य अतिथि के रूप में महाविद्यालय की प्रबंध समिति के सचिव उमेश शाह ने इस अवसर पर समस्त गुरुजनों को शुभकामनाएं देते हुए छात्र-छात्राओं को शिष्यत्व ग्रहण करने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि जिस तरह एक खेल प्रशिक्षक अपने खिलाड़ी शिष्यों को डांट-फटकार कर अनुशासन में रखते हुए महान खिलाड़ी बना देता है, उसी तरह विभिन्न विद्या के आचार्य अपने-अपने क्षेत्र में महान व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं। इसीलिए गुरु वंदनीय और अभिनंदनीय हैं।
विशिष्ट अभ्यागत मुख्य नियंता एवं भौतिक विज्ञान के अध्यक्ष डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस अवसर पर कहा कि भारत की ज्ञान परंपरा अत्यंत महान है। गुरु – शिष्य परंपरा ने देश को अनेक विभूतियां दी हैं। किसी भी महान व्यक्ति की महानता के केंद्र में कोई न कोई गुरु अवश्य होता है। यही कारण है कि विभिन्न संस्कृतियों में मार्गदर्शक गुरु को सम्मान प्राप्त होता है।
सारस्वत अभ्यागत डॉ. शैलेन्द्र नाथ मिश्र, अध्यक्ष, हिंदी विभाग ने कहा कि एक गुरु और पिता को अपने शिष्य और पुत्र से पराजित होने की कामना करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि ज्ञान का विकास बिना गुरु – ज्ञान के अतिक्रमण के संभव नहीं है। भारत वह देश है जिसने माता – पिता, गुरु, बड़े भाई, पड़ोसी ही नहीं, बल्कि कण-कण को गुरु सत्ता के रूप में स्वीकार किया गया है। इस अवसर पर उन्होंने कई ऐसे उदाहरण दिए, जिसमें शिष्य ने अपनी प्रतिभा से गुरु को पछाड़कर उनका मान बढ़ाया है।
महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ. डी. के. गुप्त ने सभी को शुभकामनाएं देते हुए ज्ञान विज्ञान से स्वयं को अद्यतन करने की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि अपने विषय का विशेषज्ञ होना और उस ज्ञान को विद्यार्थियों तक सफलतापूर्वक संप्रेषित करना एक अच्छे शिक्षक का गुण है।
संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. मंशाराम वर्मा ने विषय – प्रवर्तन करते हुए गुरु शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए उनके महनीय दायित्वों पर प्रकाश डाला। अपने उद्बोधन में उन्होंने गुरु-शिष्य की विराट परंपरा का विस्तृत विवरण सहित उल्लेख किया। इसके साथ ही उन्होंने शिक्षक, अध्यापक, उपाध्याय, कोच, प्रशिक्षक, गुरु जैसी विभिन्न संज्ञाओं की अर्थछवियों को प्रस्तुत किया।
डॉ. जय शंकर तिवारी, एसो. प्रोफेसर, हिंदी ने सभी गुरुजनों, अतिथियों एवं प्रतिभागी छात्र – छात्राओं का स्वागत किया।
समाजशास्त्र विभाग के अध्यक्ष डॉ. राम समुझ सिंह ने आयोजित कार्यक्रम में सभी अतिथियों एवं प्रतिभागियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।
माधवी राजपूत और अंशू कुमारी ने मधुर ध्वनि में वैदिक मंत्रों एवं लौकिक मंत्रों से कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
रांची विश्वविद्यालय में संस्कृत में शोधरत महाविद्यालय के पूर्व छात्र जगदम्बा सिंह ने कार्यक्रम का सुंदर संचालन किया।
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