डीएम के ताबडतोड कार्यवाही से घबराकर चरम भ्रष्ट विभाग के कर्मी अपने कुकर्मो पर कर रहे पर्दा डालने का प्रयास
पीएमएस संघ ने बैठक कर जिलाधिकारी को घेरने की बनाई रणनीति
गोण्डा। सबसे भ्रष्ट विभागों की लिस्ट में शुमार चिकित्सा विभाग के कर्मियों ने जिलाधिकारी पर अभद्रता का आरोप लगा पिछले दिनों सामूहिक रूप से इस्तीफा दे दिया। सवाल यह उठता है कि यदि यह इस्तीफा मात्र अभद्रता करने के कारण दिया गया है तो फिर इससे पहले भी अधिकारियो तथा जनप्रतिनिधियो द्वारा भी कई बाद सीएमओ स्तर के अधिकारियों के साथ अभद्रता तो अभद्रता उनके साथ मारपीट तथा उन्हें बंधक तक बनाने की घटनाये हो चुकी है ंलेकिन तब किसी भी चिकित्सक या फिर सीएमओ ने इस्तीफा नही सौंपा।
यदि बात करें स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ जनप्रतिनिधियों या फिर उच्चधिकारियो द्वारा की गयी अभद्रता या फिर उनके साथ मारपीट की घटनाओं की तो जिले का सर्वचर्चित प्रकरण पूर्व सीएमओं अमर सिंह कुशवाहा का है जिन्हें पूर्व मंत्री स्वर्गीय विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित ंिसंह द्वारा मारपीट के बाद उनका अपहरण तक कर लिया गया था परन्तु तब किसी ने इस्तीफा नही दिया।
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उच्चाधिकारियों के उत्पीडन तथा काम के अत्याधिक बोझ के चलते पूर्व और स्वर्गीय एसीएमओ डा गयासुल हसन द्वारा आत्महत्या तक कर ली गयी लेकिन किसी ने भी इस्तीफा तो क्या विरोध करने तक की जहमत नही उठाई। हाल ही में कोरोना किट को ब्लैक मार्केटिगं के आरोप में जेेल भेजे गये कुछ कर्मचारियों पर भी किसी ने इस्तीफा देने की जहमत क्यों नही उठाई।
पीएमएस संघ के वर्तमान अध्यक्ष डा0 टी पी जायसवाल और ईएमओ लक्ष्मी कांतं गोस्वामी के साथ भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष के पुत्र द्वारा की गयी मारपीट पर भी किसी ने न तो किसी तरह का विरोध ही किया ओर न ही इस्तीफा सौपा।
यदि यह सामूहिक इस्तीफा इसलिए नही दिया गया कि उनके साथ अभद्रता की गयी उन्हें ऐसे उपाधियों से सम्मनित किया गया जिसके वे हकदार नही हैं तो फिर इस सामूहिक इस्तीफे की वजह और क्या हो सकती है। कही ये इस्तीफा इसलिए तो नही दिया गया कि जिलाधिकारी मार्केन्डेय शाही की ताबडतोड कार्यवाही और पूरी तरह बीमार हो चुके स्वास्थ्य विभाग को स्वस्थ करने की जिलाधिकारी के प्रयासों पर विराम लगाया जा सके। क्योंकि श्री शाही के इस प्रयास से जहां विभाग के भ्रष्टाचार पर लगाम लग रहा था वही भारी भरकम वेतन उठाने के बाद भी अपने कामों को न करने की आदत भी बदलनी पड रही थी जो उन्हें बर्दाश्त नही हो रहा था।
बुधवार को अपनी इन्ही परेशानियों को लेकर जिलाधिकारी के अभद्र व्यवहार का बहाना बनाकर उन पर अनर्गल दबाव डालने की नीति के साथ एसीएमओ सहित लगभग जिले के सभी पीएचसी और सीएचसी अधीक्षकों ने सामूहिक रूप से अपना इस्तीफा सीएमओ को सौंप दिया। यहां यह भी सवाल खडा होता है कि यदि जिले से सभी प्रमुख सरकारी चिकित्सक जिलाधिकारी श्री शाही के कार्यपणाली से असंतुष्ट थे तो अब तक किसी ने आवाज क्यों नही उठाई, क्या उन्हें ए पी सिंह के साथ होने वाले दुव्र्यहार की प्रतीक्षा थी कि जब उनके साथ जिलाधिकारी श्री शाही अभद्रता करेगे तभी सब अपना इस्तीफा प्रशासन के हवाले करेंगे।
चिकित्साधिकारियों के सामुहिक इस्तीफे के कारणो ंमें हम जिलाधिकारी द्वारा इस विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार और लापरवाही की आदतों को समाप्त करने के प्रयासों को इसलिए प्रमुखता से मानते है कि यदि पिछले कुछ महीनों में ही श्री शाही द्वारा स्वास्थ्य विभाग पर की गयी कार्यवाहियो ंकी समीक्षा की जाये तो पता चलता है कि अभी तक किसी भी जिलाधिकारी ने अपने कार्यकाल में स्वास्थ्य विभाग पर इतना हथौडा नही चलाया है।
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अब हम बात करे इस विभाग पर जिलाधिकारी श्री शाही द्वारा की गयी विगत कुछ महीनो में कार्यवाही की बात तो विगत 11 मार्च को उन्होेनें महिला अस्पताल में लापरवाही के चलते एक डाक्टर तथा एक स्वीपर की सेवा समाप्त की थी। इसी तरह 15 मार्च को एक सीएचसी के प्रबध्ंाक तथा आरोग्य मित्र की सेवा समाप्त की गयी। एक अपै्रल को दो झोलाछाप डाक्टरो पर प्राथमिकी दर्ज करने के निर्देष दिये गय। कोरोना नियंत्रण में लापरवाही के चलते 27 अर्पैल्र को सीएचसी प्रभारियों की वेतन वृद्वि को रोक दिया गया। इसी तरह विगत 8 मई को जिलाधिकारी के औचक निरीक्षण में अपने कार्यस्थल पर नदारद मिले एमओआईसी सहित 30 कर्मचारियों पर भी कार्यवाही की गयी। 26 मई को एक मेडिकल अफसर की सेवा समाप्त की गयीं। इसी तरह अपने कार्यस्थल पर अनुपस्थित मिलने के कारण 28 मई को कई कर्मचारियो ंपर भी कार्यवही की गयी। इसी तरह विगत 4 जून को एक चिकित्स की सेवा इसलिए समाप्त कर दी गयी क्योकि वह काफी दिनो से अनुपस्थित चल रहा था। विगत 9 जून को भी इसी तरह काफी समय से अनुपस्थित चल रहे एक डाक्टर की सेवा जिलाधिकारी द्वारा समाप्त की गयी। 10 जून को एक बीपीएम की सेवा समाप्त की गयी जिस पर भी महीनो से नदारद रहने का आरोप था। 16 जून को भी दो चिकित्साधिकारियों पर भी कार्यवाही की गयी। 22 जून को जिले के 32 स्वास्थ्यकर्मियों का वेतन रोके जाने के साथ उनसे स्पष्टीकरण भी तलब किया गया। विगत 2 जुलाई को जिलाधिकारी द्वारा 19 स्वास्थ्यकर्मियों को वेतन रोका गया।
यह तो रही विगत पांच महीनांे में जिलाधिकारी मार्कन्डेय शाही द्वारा स्वास्थ्य विभाग के भष्ट और लापरवाह कर्मचारियों के विरूद्व की गयी कार्यवाही। इससे पहले की गयी कार्यवाही की बात की जाये तो लिस्ट बहुत ही लम्बी हो जायेगी।
गुरूवार को इन्ही इस्तीफो केा लेकर पीएमएस संघ की एक मीटिंग बुलाई गयी जिसमें इस्तीफे के कारणों पर चर्चा करते हुए संघ के अध्यक्ष डा0 टीपी जायसवाल ने की पिछले लगभग छह माह से डाक्टरों के उत्पीडन की शिकायते प्राप्त हो रही थी लेकिन कोरोना काल में जनहित के चलते लोगों की जान बचाने के लिए कार्यो केा वरीयता दिया गया। इसी लिए अभी तक कोई भी कार्यवाही संघ ने अपने स्तर से नही की थीं। लेकिन वरिष्ठ चिकित्सक डा0 अजय कुमार ंिसंह के साथ हुयी इस अभद्रता को संघ ने सज्ञान में लिया है जिसकी शिकायत डा0 सिंह ने कल शाम केा ही संघ से की है और संघ ने इसकी जानकारी अपने उच्चधिकारियों को भी दे दी है। शीघ्र ही इस सम्बध मे कोई ठोस निर्णय लिया जायेगा। उन्होनें जिलाधिकारी को भी सम्बोधित करते हुए कहा है कि उन्हें भी लेबल फोर के डाक्टर व अधिकारी के साथ इस तरह के अमर्यादित भाषा का प्रयोग न किया जाये। इस बैठक में अपर एडी स्वास्थ्य, सीएमओ, व जिले के समस्थ सीएचसी पीएचसी के चिकित्साधिकारी उपस्थित रहे।
अब यदि इन सभी स्थितियों परिस्थतियों पर गौर किया जाये तो यह बात साबित हो जाती है कि चिकित्सा अधिकारियो द्वारा दिया गया सामुहिक इस्तीफा इसलिए तो नही ही दिया गया है कि उनके साथ जिलाधिकारी ने अभद्रता की है। इसके साथ यह भी बात प्रमाणित हो जाती है कि जिलाधिकारी श्री मार्केन्डेय शाही द्वारा जिले की पटरी से उतर चुकी स्वास्थ्य व्यवस्था को पटरी पर लाने का प्रयास यहां के चिकित्साधिकारियों को रास नही आ रहा जिसके कारण वह उन पर अर्नगल आरोप लगा कर उन्हें या तो कार्यवाही से रोकना चाहते हैं या फिर उन्हे शासन की नजरों में तानाशाह साबित कर उन्हे जिले से हटवाना चाहते है।