2022 में 7 विधानसभाओं- हिमाचलप्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, गुजरात, गोवा और मणिपुर के चुनाव होंगे। गोवा और मणिपुर में पिछली बार भी जनादेश नहीं मिला था। भाजपा ने चोर दरवाजे से सत्ता हथिया ली थी-अबकी बार जनता सजा न दे, यही आश्चर्यका विषय होगा।
पंजाब में शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन टूट चुका है,अपना कोई जनाधार है नहीं, इसलिए सत्ता वहां मिलने से रही। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में हर पांच सालमें सत्ता बदल जाती है। अभी भाजपा सत्ता में है, संभावना यही है कि चुनाव में सत्ता गंवानी होगी।गुजरातमें पिछली बार सत्ता जाते-जाते बची थी, अगर अबकी बार कहीं गंवानी पड़ी,तो आरएसएस और भाजपा में मोदी-शाहका एकबाल खत्म हो जाएगा।इसलिए, गुजरात का किला बचाए रखना मोदी-शाह के लिए बड़ी चुनौती है।
अब आइए उत्तरप्रदेश में आरएसएस और भाजपा की चुनौतियों को समझें। उत्तरप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पन्त एक मात्र मुख्यमंत्री हैं जो 1946 से मुख्यमंत्री थे और 1952 में पहले आम चुनाव के बाद भी सत्ता में लौटे। उसके बाद 2007 तक किसी मुख्यमंत्री ने 5 वर्ष का अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया
2007- 12 तक मायावती, 2012-17 तक अखिलेश यादव ने 5- 5वर्षका अपना-अपना कार्यकाल अवश्य पूरा किया, लेकिन अगले चुनावों के बाद सत्ता में उनकी वापसी नहीं हुई। उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव, 2017 के समय मोदी अपनी लोकप्रियता के शिखर पर थे।अपनी संकीर्णताओं के कारण वह भले खुद को युवाहृदय सम्राट और हिंदूहृदय सम्राट कहलवाने में गौरव का अनुभव करते हों, लेकिन 2013-17 के दौरान उन्होंने अद्भुत राजनीतिक कौशल का परिचय दिया था।
विपक्षकी हर कमजोरी पर उनके जैसा करारा वार शायद ही कोई कर पाए। समाजके हर वर्ग के लोगों के लिए उनके पास हसीन सपने थे। भारत की, गुजरात की जातिवादी सामाजिक संरचना में जिस जाति में वह पैदा हुए, वह जाति नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने तक सामान्य जाति की श्रेणी में वर्गीकृत थी। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूपमें अपने कार्यकाल में मोदी ने उसे पिछड़ी जाति की श्रेणीमें वर्गीकृत करवाया, लेकिन अब खुद को अति- पिछड़ा वर्ग से जोड़ते हैं। मोदी जी देश के 15वें प्रधानमंत्री हैं, लेकिन वह पहले प्रधानमंत्री हैं, जिसे अपनी जाति बतानी पड़ती है।
उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव, 2017 के ठीक पहले केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश भाजपा की कमान सौंपी गई। उन्हें उत्तरप्रदेश के पिछड़ा वर्ग के भाजपा चेहरा के रूपमें प्रस्तुत किया गया। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान मोदी ने हर जगह खुद को अति- पिछड़ा वर्ग के नुमाइंदे के रूप में प्रस्तुत किया और सुनियोजित तरीके से यह भ्रम फैलने दिया कि अगला मुख्यमंत्री पिछड़ा वर्ग से यानि कि केशव प्रसाद मौर्य होंगे।
2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को तीन चौथाई सीटें मिलीं। जब मुख्यमंत्री चयन की बात आई, तो मोदी की पहली पसंद केशव प्रसाद मौर्य नहीं, मनोज कुमार सिन्हा थे। आरएसएस और भाजपा की संस्कृति के अनुसार वोटबटोरू के रूप में केशव प्रसाद मौर्य की प्रासंगिकता और उपादेयता समाप्त हो चुकी थी।लेकिन आरएसएस ने अपना वीटो लगा दिया और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन गए। पहले ही दांव में मोदी चारों खाने चित्त नजर आए।
आरएसएस का मुख्यालय नागपुर(महाराष्ट्र)भले हो,भले ही उसके शीर्ष पर मराठा ब्राह्मणवाद का वर्चस्व हो,लेकिन उसकी तीन प्रयोगस्थली-अयोध्या, काशी और मथुरा-उत्तरप्रदेश में हैं। आरएसएस की निगाह में योगी आदित्यनाथ केशव प्रसाद मौर्य और मनोज कुमार सिन्हा की तुलनामें ज्यादा कट्टर हिन्दू की छवि रखते हैं और उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ आरएसएस की पहली पसंद थे। हालांकि, सच यह भी है कि भाजपा सांसद रहते हुए 2007 और 2012 के विधानसभा चुनावों में योगी ने भाजपा के अधिकृत प्रत्याशियों को हरवाने में कोई कोर कसर नहीं रखी थी।लेकिन,आरएसएस को इन राजनीतिक अनुशासनहीनता से क्या लेना देना?उसे तो सिर्फ इस बात से मतलब था कि योगी आदित्यनाथ तथाकथित कट्टर हिन्दूवाद के प्रतीकपुरुष हैं।
पिछले साढ़े चार वर्ष में उत्तरप्रदेश प्रशासनिक ही नहीं, राजनैतिक कुप्रबंध का भी शिकार हुआ। एक तरफ, आरएसएस योगी आदित्यनाथ को स्टार प्रचारक के तौर पर पेश करता रहा,हर चुनाव में योगी आदित्यनाथ कट्टर हिन्दूके प्रतीकपुरुष के रूप में चुनाव प्रचार करते रहे और दूसरी तरफ मंत्रियों, विधायकों, नौकरशाहों को यह एहसास रहा कि भाजपा के पास वोट बटोरू एक ही चेहरा है मोदी का,और योगी मोदी की पसंद तो हैं नहीं, इसलिए योगी आदित्यनाथ की पकड़ मंत्रियों, विधायकों और नौकरशाहों में बन नहीं पाई।
मोदी जैसा शंकालु व्यक्ति इस बात से भी आतंकित और आशंकित रहा कि स्टार प्रचारक के तौर पर अगर योगी सफल हुए तो वह मोदी के प्रतिद्वंद्वी के रूपमें उभरेंगे,जो मोदी क्यों स्वीकार करेंगे। इसलिए, मुख्यमंत्री के रूप में योगी की असफलता ही मोदी की व्यक्तिगत सफलता की पहचान दिखी। मोदी को अपनी प्रचार मशीनरी और उसकी क्षमता पर भी पूरा भरोसा था। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर योगी को बदलकर अपने भक्त अरविंद कुमार शर्मा को मुख्यमंत्री की कमान थमा देने की योजना भी मोदी ने बना रखी थी। लेकिन उनकी यह योजना योगी ने कारगर नहीं होने दी।
दूसरी तरफ,अखिल भारतीय स्तर पर भाजपा के स्टार प्रचारक की अपनी भूमिकाबसे योगी इतने आत्ममुग्ध रहे हैं कि वह खुद को 2024 में भारतबके प्रधानमंत्री के रूपमें देखने लगे। सोशल मीडिया विशेषज्ञों के माध्यम से’मोदी के बाद योगी’अभियान चलवा दिया। उत्तरप्रदेश की तथाकथित उपलब्धियों की चर्चा अंतर्राष्ट्रीय मीडियामें विज्ञापन के रूपमें चलने लगी।
राजनैतिक कुप्रबंध ने उत्तरप्रदेश में मोदी बनाम योगी का वातावरण बनाया,तो आरएसएस ने बीच- बचाव किया।आरएसएस की व्याख्या यह रही कि जब उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव,2022 सर पर हों,तो योगी को मुख्यमंत्री पदसे हटाए जाने का मतलब होगा-कट्टर हिंदूवादका बीच मझधार में रह जाना। 15 जुलाई, 2021 को अपने संसदीय क्षेत्र बनारस भ्रमणके दौरान मोदी द्वारा योगी की प्रशंसा की व्याख्या यही है कि उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव तक योगी अपने पद पर बने रहेंगे। लेकिन चुनाव पश्चात भी योगी ही मुख्यमंत्री होंगे, यह सुनिश्चित नहीं है।
पंकज कुमार श्रीवास्तव वरिष्ठ पत्रकार “रांची”
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