नौकरी दिलाने के नाम पर ठगो ंने गरीब युवती को लगाया था पचास हजार का चूना
युवती की मौत के बाद जागी पुलिस ने शुरू की कार्यवाही
झांसी। किसी को महज इसलिए अपनी जान दे देनी पडे क्योकि उसकी शिकायत पर पुलिस कार्यवाही नही कर रही अपने आप मे यह विचारणीय है। क्या ऐसे शिकायतकर्ता की मौत के लिए सीधे तौर पर पुलिस को जिम्मेदार न माना जाये और क्यो न पुलिस के उस अधिकारी पर आपराधिक मुकदमा दर्ज न किया जाना चाहिए। खैर यहां बात उस युवती की हो रही है जिसे सायबर ठगो ने नौकरी के नाम पर अपनी ठगी का शिकार बनाते हुए उससे पचांस हजार रूपयों की ठगी कर ली। पुलिस मे शिकायत करने के बाद भी कोई कार्यवाही न किये जाने तथा परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने से अपराध बोध से दबी युवती ने अपनी जान दे दी।
ममला जिले के नवाबाद थाना अर्न्तगत गुमनावारा का है जहां की निवासिनी 20 वर्षीय युवती यशस्वी पराशर को सायबर ठगों ने नौकरी के नाम पर ठगी का शिकार बनाया। बताया जा रहा है कि ठगो ंने यशस्वी के आनलाइन आवेदन के आधार पर उसे अपने को एक कम्पनी का इम्प्लाई बताते हुए उससे नौकरी लगवाने का झासंा दिया। उससे कहा गया कि उसका चयन हो गया है उसे ज्याइन करने के लिए लैपटाप और अन्य सामग्री के लिए 48 हजार रूप्ये जमा करने होगंें।
घर की माली हालत ठीक न होने के बाद भी यशस्वी ने इस आशा मे कि नौकरी लग जाने के बाद धीरे धीरे तो हालात ठीक ही हो जायेगे, उसने किसी तरह पैसे की व्यवस्था कर ठगो को पैसे दे दिये। पैसे मिलते ही ठगो ने फोन करना बन्द कर दिया। इधर यशस्वी ने जब उस नम्बर पर काल करने का प्रयास किया तो नम्बर बन्द मिला जिससे उसे इस बात का अहसास हो गया कि वह ठगी का शिकार हो गयी है।
अपने आप को ठगे जाने का अहसास होते ही यशस्वी पूरी तरह निराष हो गयी और उसने सोमवार की देर रात अपने घर में फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली। यशस्वी ने फांसी लगाये जाने से पहले सुसाइड नोट भी लिखकर छोडा है जिसमें उसने कहा है कि उसे पैसे जाने का बहुत दुख है।
इस पूरे प्रकरण मे सबसे खास बात तो यह है कि यशस्वी ने अपने साथ हुयी इस ठगी की शिकायत नवाबाद थाने तथा साइबर सेल मे की थी परन्तु माह बीत जाने के बाद भी पुलिस ने न तो उसकी शिकायत का गम्भीरता से लिया ओेर न ही कोई कार्यवाही की। यदि पुलिस ने समय रहते उसकी शिकायत पर गम्भीरता से कार्यवाही की होती तो शायद यशस्वी को पैसा भी वापस मिल जाता और उसे अपनी जान ने देनी पडती। यहंा यह सवाल भी उठता है कि जब यह स्पष्ट है कि पुलिस की लापरवाही से ही यशस्वी की जान गयी है तो क्यों न सम्बध्ंिात पुलिस अधिकारी पर हत्या का मुकदमा चलना चाहिए।
हालाकि यशस्वी की मौत के बाद जागी पुलिस ने मामले को इस तरह सज्ञान मे लिया जेैसे वह इस बात का इन्तजार कर रही थी कि कब यशस्वी की मौत हो और वह नींद से जागे।