फिर वही ताकत मिली भाकियू को किसान क्रान्ती यात्रा से -: सौरभ उपाध्या
महज आठ साल की उम्र में बालियान खाप के मुखिया का जिम्मा संभालने वाले चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत की हुंकार से देश की हुकूमतें कांप उठती थीं। वह सीधे दिल्ली और लखनऊ की हॉटलाइन पर आ जाते थे। उनकी एक आवाज पर किसान पशुओं को साथ लेकर जेलें भरने में जुट जाते थे। मीलो को घेर लेते थे। मेरठ, दिल्ली और लखनऊ कूच का ऐलान करते ही गांव-गांव से किसान निकलने लगते थे।
भाकियू की किसान यात्रा में 70 फीसदी से अधिक वह किसान थे, जो बाबा टिकैत के भी आंदोलनों में शामिल रहे। वह चाहते हैं कि भाकियू को एक बार फिर वही ताकत मिले और वही ताकत किसान क्रान्ति यात्रा से भाकियू पुन; पुराने रूतबे मे यात्रा से दिख रही है, चौधरी टिकैत के आन्दोलन मे नेताओ और किसानो का भरमार होता था वही रंग दोबारा बीकेयू मे दिख रहा है, और देश का किसान एक बड़े हिस्से मे बाबा जी के पुत्रो पर विश्वास कर कद से कद मिला कर खड़ा हो चुका है, जिसका नतीजा यात्रा मे बीजपी सरकार द्धारा किसानो के साथ किऐ गए दुरव्योहार का परिणाम आगामी पाच राज्यो मे हुए चुनावो मे देखने को मिला !
साल 1935 में जन्मे चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत मात्र आठ साल के हुए तो पिता की असामयिक मौत के बाद बालियान खाप के चौधरी की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी और ‘टिकैत’ की पदवी मिली। शुरू से ही बेबाकी, सादगी और ईमानदारी के साथ जीने वाले टिकैत ने 52 वर्ष की उम्र में मुजफ्फरनगर के शामली क्षेत्र के करमूखेड़ी बिजलीघर पर पहली बार किसी बड़े किसान आंदोलन का नेतृत्व किया तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मेरठ के ऐतिहासिक धरने के बाद तो वह किसानों के सिरमौर बन गए।
उन्होंने किसानों के लिए हमेशा सरकारों को झुकाया। किसानों के सामने टिकैत के असमय चले जाने से बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया था, कि अब उनका लड़ाका उनके बीच नहीं है तो ऐसे में दुख-दर्द कौन समझेगा और किसान आंदोलन की दिशा क्या होगी। बीते सात साल से किसानों के सामने यही सवाल खड़ा था । और इसी सवाल का जबाब बाबा जी लाडले बेटो ने किसान क्रान्ति यात्रा मे दे कर हर किसानो के दिलो पर कब्जा कर लिया ।
करीब पांच साल बाद भाकियू को मिली संजीवनी
करीब पांच साल पहले भाकियू ने मेरठ में सिवाया टोल पर 40 दिन का आंदोलन चलाया था। यह पहला ऐसा आंदोलन था जो बाबा टिकैत के जाने के बाद हुआ। टिकैत ने कभी लंबी पदयात्राओं का ऐलान नहीं किया वह हमेशा लंबे पड़ाव डालने में भरोसा करते थे। अब किसान क्रांति यात्रा के जरिए भाकियू में किसानों की भीड़ ने नई जान फूंक दी ।
आईये हम बताते है, आपको बाबा टिकैत के प्रमुख आंदोलनो के बारे मे
- करमूखेड़ा पावर हाउस घेराव : जनवरी 1987 में 11 सूत्रीय मांगों को लेकर करमूखेड़ा पावर हाउस का घेराव
-
मेरठ मार्च : फरवरी 1988 में किसानों की समस्याओं से जुड़ी 35 मांगों को लेकर ऐतिहासिक मेरठ मार्च
-
रजबपुरा सत्याग्रह : मार्च-जून 1988 में रेल रोको-रास्ता रोको आंदोलन के दौरान किसानों पर की गई फायरिंग के विरोध में 110 दिन तक रजबपुरा में सत्याग्रह
-
नईमा लाओ आंदोलन : अगस्त-सितंबर 1989 में मुस्लिम युवती नईमा की मौत को लेकर भोपा थाने का घेराव
-
लखनऊ महापंचायत : जुलाई 1990 में तत्कालीन जनता दल सरकार की नीतियों के खिलाफ लखनऊ में महापंचायत
-
द्वितीय लखनऊ महापंचायत : जनवरी 1992 में खाद मूल्य में इजाफे और बिजली की दरों में बढ़ोत्तरी के खिलाफ प्रदर्शन
-
दिल्ली पंचायत : दो अक्टूबर 1991 खाद पर सब्सिडी की मांग को कर दिल्ली में पंचायत
-
लखनऊ पंचायत तृतीय : जून 1992 में एक माह लंबी पंचायत का आयोजन। इसमें सात सूत्रीय मांगों के साथ ही किसानों के 10 हजार रुपये तक सभी कर्ज माफी की मांग की गई
-
गाजियाबाद भू-मुआवजा आंदोलन : जून-अगस्त 1992 में भूमि मुआवजे का आंदोलन उन किसानों के लिए था, जिनकी जमीने सरकार ने 1962 में अधिग्रहित कर ली थी। इसमें किसानों के आश्रितों को नौकरी के साथ लंबित मुआवजे का जल्द से जल्द भुगतान की मांग प्रमुख थी।
-
चिन्हट कठुआ पंचायत : जून 1993 का यह आंदोलन चिन्हट के किसानों की अधिग्रहित भूमि के मुआवजे को लेकर रहा।
-
सत्याग्रह : सितंबर-अक्टूबर 1993 में सात सूत्रीय मांग, रामकोला के किसानों के गन्ना मूल्य के बकाया भुगतान और किसानों के 10 हजार रुपये तक लोन की माफी के लिए यह आंदोलन किया गया।
-
बीज सत्याग्रह : वर्ष 1993 में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कृषि क्षेत्र में प्रवेश पर रोक लगाने के लिए बीज सत्याग्रह।
बाबा चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की जेल यात्रा
गिरफ्तारी तिथि स्थान कारण
1. 15 जुलाई 90 बरेली लखनऊ में पंचायत करने जाने पर ।
- 31 दिसंबर 91 मेरठ लखनऊ में पंचायत करने को जाने पर ।
-
22 जून 92 फैजाबाद के तरुण गांव में लखनऊ पंचायत में जाते हुए ।
-
31 जुलाई 92 मोदीनगर गाजियाबाद पंचायत में जाते हुए ।
-
23 सितंबर 92 रामकोला रामकोला में किसानों पर फायरिंग के विरोध में पंचायत के दौरान ।
-
अक्टूबर 92 अलीगढ़ सिकंद्राबाद में पंचायत के लिए जाते हुए ।
-
नवंबर 97 मुजफ्फरनगर रेल रोको आंदोलन के दौरान ।
-
12 फरवरी 2000 मुरादाबाद लखनऊ पंचायत के लिए जाते हुए ।
सौरभ उपाध्य्या्य