आम तौर पर गोबर गणेश की उपाधि किसी को निरा मूर्ख या बेवकूफ साबित करने के लिए दी जाती है परन्तु यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि हिन्दू धर्म में मिट्टी के गणेश से अधिक पवित्र और पूज्यनीय गोबर के गणेश माने जाते हैं। इस विषय की विस्तृत जानकारी देते हुए ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री कहते हैं, ”गोबर गणेश का संदर्भ पुराणों से जुड़ा है। गौरतलब है कि देवों-दानवों में हुए अमृतमंथन के दौरान नंदा, सुभद्रा, सुरभि, सुशीला और बहुला पांच कामधेनुएं भी निकली थीं। देवों को दानवों के संत्रास से मुक्ति दिलाने के लिए आदिशक्ति दुर्गा ने सुरभि गाय के गोबर से गणेश की रचना की और उन्हें विभिन्य शक्तियां प्रदान कर अपना वाहन सिंह प्रदान किया। गणेश ने दानवों का संहार किया और इस तरह गणनायक या गणपति की उपाधि प्राप्त की। गोबर से गणेश की रचना एक महान उद्धेश्य के निमित्त हुई थी। देवी दुर्गा ने अपनी शक्तियों का संचार कर उसे समर्थ बनाया। आमतौर पर पूजा-पाठ में हम गोबर के गणपति बनाकर उनकी पूजा अर्चना करते हैं। मिट्टी और गोबर की मूर्ति में पंचतत्वों का वास माना जाता है और खासकर गोबर में माँ लक्ष्मी साक्षात वास करती हैं। साथ ही ऐसी मान्यता भी है कि देसी गाय के गोबर में उभरी रेखाओं में नजर आती विभिन्न आकृतियों में भी गणेश का रूपाकार देखते हुए गोबर गणेश को इससे जोड़ा जाता है।”
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश के निमाड़ स्थित महेश्वर में श्री गणेश जी की एकमात्र गोबर की मूर्ति है। ये मूर्ति हजारों साल पुरानी है मंदिर में बाप्पा अपनी दोनों पत्नियों रिद्धि-सिद्धि संग दर्शन देकर भक्तों का कल्याण करते हैं। भक्तों का भी मानना है कि यहां आने से गणपति जी अपने सभी भक्तों की इच्छा पूरी कर देते हैं। यही वजह है कि भक्त यहां उल्टा स्वास्तिक बनाकर भगवान तक पहुंचाते हैं अपनी फरियाद और मनोकामना पूरी होने के बाद यहां आकर सीधा स्वास्तिक बनाना नहीं भूलते। साथ ही यहाँ गोबर गणेश मंदिर में आने वाले भक्तों की मान्यता है कि यहां दर्शन करने से भक्तों को भगवान गणेश के साथ माँ लक्ष्मी का भी आशीर्वाद मिलता है। विशेषकर गणेश उत्सव और दीपावली के मौके पर इस मंदिर में बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ बाप्पा के दर्शनों के लिए उमड़ती है।