नाराजगी के बाद भी कर रहे प्रत्याशी का समर्थन तो दूसरी ओर विद्रोह कर ठोक रहे मैदान में ताल
गोण्डा। कहने को तो भाजपा को अनुशाषित और कैडर आधारित पार्टी माना जाता है तो दूसरी ओर समाजवादी पार्टी को मौकापरस्त तथा सिद्धांत विहीन पार्टी माना जाता हैं लेकिन निकाय चुनावों की बिगुल बजने तथा पार्टी टिकटों की घोषणा होने के बाद जो स्थिति सामने आ रही है उसने इन सभी मानबिन्दुओ को धाराशाई कर दिया हैं।
बात अगर गोण्डा नगर परिषद अध्यक्ष के दावेदारों को की जाये तो भाजपा ने पूर्व विधायक तुलसीदास रायचंदानी की पुत्र वधु लक्ष्मी रायचंदानी को अपना उम्मीदवार बनाया तो समाजवादी पार्टी ने वर्तमान नगर पालिका अध्यक्ष उज़्मा रशीद पर एक बार फिर दाँव खेलते हुए उन्हें उम्मेवारी सौपी हैं।
ऐसा नहीं हैं की प्रदेश की प्रमुख दो पार्टियों से अन्य दावेदारों की कोई कमी थी, अच्छी खासी लम्बी लिस्ट थी लेकिन अन्य सभी को दरकिनार कर पार्टी ने इन उम्मीदवारों पर भरोसा जताया। लेकिन हैरानी तो तब हुई ज़ब ख़ारिज हुई दावेदारी के बाद रिजेक्ट भाजपा उम्मीदवारों में से एक ने पार्टी की रीति और नीति की धज्जियाँ उड़ाते हुए एक तरह से विद्रोह करते हुए निर्दलीय के रूप में अपनी जबरदस्त दावेदारी ठोक दी तो एक उम्मीदवार अपने दलबल के साथ भारत भ्रमण को निकल गए।
वहीं दूसरी ओर सैधान्तिक रूप से अनेकों खामियाँ होते हुए भी समाजवादी पार्टी से रिजेक्ट किये गए एक प्रमुख उम्मीदवार ने पार्टी की घोषित प्रत्याशी को अपना पूर्ण समर्थन देते हुए तन मन धन से सहयोग करने तथा उसके पक्ष में प्रचार कर जन समर्थन प्राप्त करने में हर तरह से साथ रहने की घोषणा की।
अब इसे टिकट वितरण में की गई खामियाँ कहे, उम्मीदवारों की अति महत्वकांक्षा कहे या फिर जिला सहित प्रदेश नेतृत्व की विफलता, कारण कोई भी हो समाजवादी पार्टी जनता को और अपने नेतृत्व को ये सन्देश देने में पूरी तरह सफल रही हैं की कुछ भी हो हम पार्टी और उसके निर्णय का सम्मान तो करते ही है साथ ही इसी तरह जनता का भी सम्मान करते रहेंगे। वहीं दूसरी ओर प्रदेश के साथ केंद्रीय नेतृत्व को ठेंगा दिखाते हुए भाजपा का टिकट चाहने वालों ने जो आचरण दिखाया है वो कही न कहीं चुनाव परिणामों पर तो असर डालेगा ही साथ ही पार्टी की छवि को भी बड़ा आघात पहुंचाएगा जो आज नहीं तो कल अपना परिणाम भी दिखायेगा।