कहीं बदले की भावना से तो दर्ज नहीं कराया गया पत्रकारों पर मुकदमा
गोण्डा। गत सोमवार को पुलिस मीडिया सेल के कथित सराहनीय प्रेस नोट से ज्ञात हुआ कि थाना छपिया अंतर्गत तीन कथित पत्रकारों पर पुलिस ने 8-9 धाराओं में मुकदमा दर्ज कर उन्हें मारा पीटा भी गया।
अब सवाल यह उठता है कि जिन तीन पर मुकदमा दर्ज किया गया वह पत्रकार हैं या कथित पत्रकार। इनमें से दुर्गा प्रसाद पटेल को काफी समय से पत्रकार के रूप में क्षेत्रीय पत्रकारों के बीच जाना जाता है। मान लेते हैं कि वह पत्रकार नहीं है फिर भी इस शोसल मीडिया के युग में यदि उसने कोई खबर चलाई तो उसके जवाब में पुलिस को उसके साथ मार-पीट गाली गलौज करने का अधिकार कहां से मिला। यदि खबर पर आपत्ति थी तो उस पर नियमानुसार कार्रवाई करने आईटी एक्ट में मुकदमा दर्ज करने का पूरा अधिकार पुलिस को है। बतौर पुलिस न्यूज़ आवर कार्यालय के पास घटना का जिक्र किया गया है। जिससे स्पष्ट है कि यह कार्यालय काफी समय से वहां स्थित था और राजेश कुमार दुबे दुर्गा प्रसाद पटेल को पत्रकार मानते थे।
जब दुर्गा प्रसाद पटेल ने उपनिरीक्षक द्वारा अवैध खनन, चौकी पर शराब पीने की खबर चलाई तभी से वह कथित पत्रकार हो गया। खबर से झल्लाए उपनिरीक्षक राजेश कुमार दुबे ने कानून कायदे को ताक पर रखकर पत्रकार को पीटा और आनन-फानन में अनेकों धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया। यदि चौकी पर फर्जी पत्रकार पल रहा था और बाकायदा न्यूज़ आवर का बोर्ड भी लगाए हुए था तो यह उपनिरीक्षक राजेश दुबे की बहुत बड़ी नाकामी मानी जायेगी। फिर मार-पीट गन्दी – गन्दी गालियां देने का अधिकार उपनिरीक्षक को किसने दिया। हालांकि गन्दी गालियां देने के कारण उपनिरीक्षक को लाइन हाजिर पुलिस अधीक्षक आकाश तोमर ने कर दिया है परन्तु गालियों के साथ दरोगा का यह कहना कि तुम चौकी की खबर चलाओगे हम खाना खा रहे थे तुमने शराब पीने कि खबर कैसे चलाई। इस पर शायद पुलिस अधीक्षक ने गौर नहीं किया वरन् पत्रकारों पर फर्जी मुकदमा दर्ज नहीं कराया होता।
बताया जाता है कि दुर्गा प्रसाद पटेल लगभग एक महीने से दरोगा राजेश दुबे की करतूतों की ख़बर चलाकर पुलिस अधीक्षक आकाश तोमर को ट्वीट कर रहा था। जिस पर पुलिस अधीक्षक ने ध्यान नहीं दिया। परिणामस्वरूप वर्दी का दुरूपयोग करते हुए उपनिरीक्षक राजेश दुबे ने पत्रकारों से बदला लेते हुए उन पर अनेकों धाराओं में मुकदमा दर्ज कर दिया।
एक तरफ वास्तविक अपराध होने पर भी जनपद के सभी थानों में तहरीर बदलकर अपराध को हल्का दिखाने का खेल जारी है तो दूसरी तरफ दरोगा द्वारा बदले की भावना से गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जा रहा है। इस पूरे प्रकरण में दाल में कुछ काला के बजाय पूरी दाल ही काली नजर आ रही है।
हड़बड़ाहट में दर्ज किए इस मुकदमे में घटना को 26 जून की रात 11 बजे के बाद का दिखाया गया जबकि पुलिस मीडिया सेल से प्राप्त सराहनीय प्रेस नोट द्वारा इसी मुकदमे की पूरी खबर 26 जून दिन सोमवार को 3 बजकर 21 मिनट पर दोपहर के बाद आ चुकी थी। इतना ही नहीं अपर पुलिस अधीक्षक शिवराज की बाइट भी 26 जून को ही 4 बजकर नौ मिनट शायं आ चुकी थी। जिससे उन्होंने दरोगा का बचाव करते हुए पत्रकार को लगीं चोट को केले के डंठल से बनाया बताया है। जबकि केले के डंठल से बनाई चोट का निशान काला होता है और पत्रकार को लगीं चोट का निशान लाल दिख रहा है।
अब सवाल यह उठता है कि 26 जून दिन सोमवार की रात 11 बजे के बाद की घटना की पटकथा घटना घटित होने से पहले ही दिन में कैसे लिख दी गई। प्रकरण पर जब थानाध्यक्ष छपिया सतानंद पाण्डेय से बात की गई तो उन्होंने कहा कि घटना 26-27 जून के रात की है। पुलिस मीडिया सेल द्वारा तारीख में गलती हो गई है। अब सवाल यह उठता है कि यदि तारीख में गलती हो जायेगी तो पुलिस मीडिया सेल पर खबर घटना के पहले कैसे आ जायेगी। ये खबर तो 27 जून को आनी चाहिए। मीडिया सेल की ख़बर और थानाध्यक्ष छपिया का बयान एक दूसरे का विरोध करता है जिससे स्पष्ट है कि पूरे पुलिस विभाग के संज्ञान में मीडिया को गैर कानूनी ढंग से दबाने का यह षड्यंत्र मात्र नजर आता है। साथ ही पुलिस अधीक्षक द्वारा इसी प्रकरण में दरोगा राजेश दुबे और आरक्षी अभिषेक यादव को लाइन हाजिर करना भी इस बात का संकेत है कि दरोगा द्वारा बदले की भावना से पत्रकारों पर मुकदमा दर्ज कराया गया है।