इन्दौर (मप्र)। जापान में जापानी चल सकती है, चीन में चीनी भाषा चल सकती है तो भारत में हिंदी भाषा क्यों नहीं चल सकती है ? हमें इन सवालों के उत्तर खोजने होंगे। बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि आजादी के 77 साल बाद भी हिन्दी को पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सका है।
शुक्रवार को मप्र की आर्थिक राजधानी इन्दौर में यह बात मुख्य अतिथि सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति जरत कुमार जैन ने इन्दौर प्रेस क्लब के सभागार में कही। अवसर रहा वैश्विक हिंदी सम्मेलन (मुम्बई), भारतीय भाषा मंच (दिल्ली) और इन्दौर प्रेस क्लब के संयुक्त तत्वाधान में ‘भारत और भारतीय भाषाएं’ विषय पर आयोजित वैश्विक संगोष्ठी का। इस अवसर पर मुख्य अतिथि श्री जैन ने सम्मेलन द्वारा प्रदत्त ‘वैश्विक हिंदी सेवा सम्मान’ से हिन्दीसेवी डॉ. मनोहर भंडारी, कवि प्रो. सरोज कुमार, अभिभाषक अनिल त्रिवेदी, हिन्दी सेवी निर्मल पाटोदी तथा वरिष्ठ पत्रकार व संस्थापक-संपादक (हिंदीभाषा.कॉम) अजय जैन ‘विकल्प’ को हिन्दी सेवा के लिए सम्मानित किया।
प्रारम्भ में अतिथि श्री जैन, अध्यक्ष ए. विनोद (राष्ट्रीय सह संयोजक-शिक्षा, संस्कृति उत्थान न्यास), विशिष्ट वक्ता सुप्रसिद्ध अधिवक्ता अनिल त्रिवेदी, निर्मल कुमार पाटोदी, सुप्रसिद्ध चिकित्सक मनोहर भंडारी एवं प्रो. सरोज कुमार का मंच पर आगमन हुआ। देशप्रेम के गीत की सुंदर प्रस्तुति के साथ अतिथियों ने दीप प्रज्वलन किया, साथ ही सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गई। स्वागत उद्बोधन प्रेस क्लब के उपाध्यक्ष प्रदीप जोशी ने दिया।
तत्पश्चात अतिथियों का पुष्प, पुस्तक और माला से स्वागत सम्मेलन के निदेशक डॉ. मोतीलाल गुप्ता ‘आदित्य’ सहित हिन्दीसेवी निर्मल पाटोदी, स्वप्निल जैन, न्यास के स्थानीय पदाधिकारी दिनेश दवे, प्रियदर्शनी अग्निहोत्री आदि ने किया।
संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए निदेशक डॉ. ‘आदित्य’ ने न्यायपालिका पर प्रश्न खड़े करते हुए कहा कि, भारत की न्यायपालिका देश की जनता के लिए है या देश की जनता न्यायपालिका के लिए ? न्यायमूर्ति को जनता की भाषा सीखनी चाहिए या जनता को न्यायमूर्ति की भाषा ? उन्होंने जनभाषा में न्याय, शिक्षा, रोजगार तथा व्यापार-व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए आवाज उठाने हेतु जनता का आह्वान किया। भारतीय भाषाओं के समर्थक तथा आचार्य विद्यासागर महाराज के शिष्य श्री पाटोदी ने भारत नाम के इतिहास का विवरण देते हुए कहा कि, हमारे देश का नाम हजारों वर्ष से भारत है, इसलिए ‘इंडिया’ नाम के स्थान पर केवल ‘भारत’ नाम का ही प्रयोग किया जाना चाहिए।
उच्च न्यायालय में मुकदमों की पैरवी हिंदी में करने और न्यायपालिका में जनभाषा के समर्थक अनिल त्रिवेदी ने कहा कि, व्यवस्था के माध्यम से नई पीढ़ी का विकास इस प्रकार हुआ है कि वह किसी भी मामले में अपनी आवाज नहीं उठाती, यह चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि जनता को जनता की भाषा में ही न्याय दिया जाना चाहिए।
डॉ. भंडारी ने मातृभाषा में शिक्षा का चिकित्सा विज्ञान के अनुसार विश्लेषण करते हुए बताया कि, जब कोई विद्यार्थी मातृभाषा में पढ़ता है तो उसके दिमाग के दोनों भाग सक्रिय होते हैं अन्यथा एक भाग ही काम करता है। उन्होंने मातृभाषा में शिक्षा के वैज्ञानिक पहलुओं पर प्रकाश डाला। साहित्यकार प्रो. कुमार ने हिंदी भाषा साहित्य के महत्व पर अपनी बात रखी। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए ए. विनोद (केरल) ने कहा कि, अंग्रेजों और विदेशी आक्रमणकारियों ने हमारी भाषा-संस्कृति को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जबकि देवी अहिल्याबाई और महाराणा प्रताप जैसे देशप्रेमियों ने भारतीय भाषा, संस्कृति और धर्म की रक्षा की। अब समय आ गया है कि हम अपनी भाषा, संस्कृति, धर्म और ज्ञान-विज्ञान को पुनर्स्थापित करें।
कार्यक्रम में सम्मेलन द्वारा डॉ. भंडारी, श्री त्रिवेदी, भाषासेवी श्री पाटोदी, प्रो. कुमार और हिंदीभाषाडॉट कॉम के संस्थापक-ससम्पादक अजय जैन ‘विकल्प’ को ‘वैश्विक हिंदी सेवा सम्मान’ से विभूषित किया गया। ज्ञात हो कि हिन्दी साहित्य अकादमी मप्र से अलंकृत श्री जैन उक्त मंच से हिन्दी के प्रचार-प्रसार में लगे हुए हैं। आपने इस सम्मान को भी अपने मण्डल और सभी रचनाकारों को समर्पित किया है।