हर माह किया जाता है वसूली का बटवारा
महोबा। वैसे तो ये विख्यात हाँ की उत्तरप्रदेश के सभी सरकारी चिकित्सालयों में डाक्टरों की कैंची बिना पर्याप्त धन वसूली के नहीं चलती जिसके लिए विभिन्न तरीके इन भ्रस्टाचारियों ने ईज़ाद कर रखे हैं और और इन वसूली से मिले पैसों का उच्चाधिकारीयों तक बराबर बटवारा भी होता है जिसका प्रमाण शिकायतों के बाद भी पर्याप्त कार्यवाही का न होना है चूंकि ऐसे भ्रष्टाचार में सभी की भागीदारी होती है इसलिए मामले सामने भी कम आते हैं, महोबा का प्रकरण इसलिए सुर्खियों में आया क्योंकि पैसे के बंटवारे को लेकर विवाद हुआ और डाक्टर को जिला अस्पताल में भर्ती होना पड़ गया।
जी हाँ, विभाग और सरकार की नाकामी तथा योगी सरकार की प्रतिष्ठा पर बदनुमा धब्बा लगाती ये घटना जिले के महिला अस्पताल की है जहाँ मुख्य चिकित्सा अधीक्षक और डाक्टर आपस में भिड़ गए, जानकारी के अनुसार विवाद इतना बढ़ गया की सीएमएस डा0 एस पी सिंह ने डाक्टर एस के वर्मा की गर्दन तक दबा दी जिसके चलते उनका रक्तचाप इतना बढ़ गया की उन्हें जिला अस्पताल में भर्ती होना पड़ा।
जानकारी के अनुसार वसूली में बंटवारे का ये मामला इतना इसलिए बढ़ा की डा वर्मा ने कुछ दिनों की छुट्टी ली थी, कार्य प्रभावित न हो इसलिए सीएमएस ने एक अन्य चिकित्सक की सुविधा ले ली, अवकाश से वापस आने पर ज़ब डा वर्मा ने अपने स्थान पर किसी और को कार्य करते पाया तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया और वे सीएमएस से भिड़ गए।
डा0 वर्मा ने सीएमएस पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा की वे प्रतिमाह 50000₹ की माँग उनसे करते हैं इतना ही नहीं वे अस्पताल के अन्य कर्मचारियों से भी पैसे की मांग करते हैं।
वहीं सूत्रों की बात करें तो डा वर्मा इसलिए क्रोधित हुए की अन्य डाक्टर के आ जाने से उन्हें अपनी अवैध कमाई पर डाका पड़ता हुआ दिखा जिस पर उन्होंने सीएमएस का विरोध इस बात को लेकर किया की ज़ब प्रतिमाह आपकी मनचाही रकम आपको दी जा रहा है तो किसी और को आपने काम पर क्यों रखा।
फिलहाल पुरे मामले को लेकर स्वास्थ्य विभाग चौकन्ना हो गया और सीएमओ ने प्रकरण के जांच किये जाने की बात कही है लेकिन इस घटना ने इस बात को साफ कर दिया है की लाखों रुपये वेतन पाने वाले और भगवान का दूसरा रूप पाए चिकित्सकों के लिए रुपये के अतिरिक्त और कुछ भी मायने नहीं रखता, इसी के साथ स्वास्थ्य विभाग में व्याप्त घूसखोरी और भ्रस्टाचार का भी पर्दाफाश हो गया है। देखना तो ये है की योगी सरकार इस प्रकरण को कितनी गंभीरता से लेती है?
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