उत्तर प्रदेश गोंडा स्वास्थ्य

अभी प्रिंसिपल साहब व्यस्त हैं, बाहर से कराओ एक्सरे

गरीब मरीजों को मुँह चिढ़ा रहीं दस दिनों से ख़राब एक्सरे मशीन, जिम्मेदारों के पास जवाब देने का समय नहीं

निजी पैथालोजी की सेवाएं लेने को विवश सैकड़ो मरीज 

गोण्डा। कुछ डाक्टर निजी प्रैक्टिस में व्यस्त है तो कुछ चिकित्सक निजी पैथालोजी की नौकरी में व्यस्त हैं, और इनके आका मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल इन सभी को सेट करने में व्यस्त हैं, अब मरीजों को इन सभी की व्यस्तता के चलते अपने आपको भी सरकारी सेवा के बदले निजी सेवाएं लेने के लिए मजबूरन व्यस्त होना पड़ रहा है।

जी हाँ हम बात कर रहे हैं जिले के कथित स्वशासी राज्य चिकित्सा विश्वविद्यालय की जहाँ कहने को तो डाक्टरों की लम्बी चौड़ी फौज खड़ी कर दी गईं है जिन्हे लाखों रुपये महीने का वेतन भी मात्र इसलिए दिया जा रहा है की जिले की गरीब जनता को मुफ्त में सम्पूर्ण स्वास्थ्य सुविधा प्राप्त हो सकें लेकिन स्थानीय जिम्मेदारों की गैरजिम्मेदारी से शासन की मंशा कही से भी पूरी होती नज़र नहीं आ रहीं।

इन गरीब मरीजों की बेबसी देखनी हो तो मेडिकल कालेज के एक्सरे रूम की ओर नज़र कीजिए जहाँ पर्ची हाथ में लिए मरीज इस आस में आते हैं की उनका एक्सरे होगा और चिकित्सक उन्हें औषधि देकर उन्हें पीड़ा से मुक्त करेंगे लेकिन पिछले दस दिनों से प्रतिदिन उनकी ये आशा निराशा में उस समय बदल रही है ज़ब उन्हें कर्मचारियों से ये पता चलता है की एक्सरे मशीन ख़राब है और कब ठीक होगी ये पता नहीं।

जवाब के बाद अचानक निराशा से बुझ चुकी आँखों में निजी पैथालोजी द्वारा लुटे जाने का दर्द झलक आता है, आपको बता दे की मेडिकल कालेज की दो एक्सरे मशीनों में से कोविड भवन में स्थापित मशीन पिछले दस दिनों से ख़राब है, इस मशीन पर छाती, गर्दन और पेट के एक्सरे की सुविधा है और इस सुविधा का लाभ प्रतिदिन 125 से 175 रोगी उठाते हैं जबकि निदान केंद्र में स्थापित दूसरी मशीन से अन्य प्रकार के एक्सरे किये जाते हैं।

खास बात तो ये है की रोगियों की इस बड़ी समस्या को लेकर कालेज प्रशासन पूरी तरह लापरवाह दिखाई दे रहा है जिसका प्रमाण प्रिंसिपल कोटास्थाने के उस जवाब में ने दिया जिसमे उन्होने अपने को व्यस्त बताते हुए कहा की रात में इसका जवाब सोचूंगा और कल बताऊंगा।

फिलहाल मेडिकल कालेज का दर्जा पाने के बाद पूरी तरह पटरी से उतरी जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था फिर कब पटरी पर आएगी, कहा नहीं जा सकता।

 

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राजेंद्र सिंह

राजेंद्र सिंह (सम्पादक)

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