उत्तर प्रदेश शिक्षा

कलयुग में एकलव्य का फिर मांगा अंगूठा, मर्जर/विलय के नाम पर गांव के स्कूल बंद

Written by Reena Tripathi

बच्चे दर-दर भटकने को मजबूर

गांव के गरीब और वंचित बच्चों के लिए बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालय दूर दराज के इलाकों में खुले गए थे जिसका उद्देश्य वंचितों को शिक्षा से जोड़ना था। वर्तमान समय में कम संख्या के आधार पर स्कूलों को बंद कर आसपास के दूसरे स्कूलों में विलय किया जा रहा है। यानी की कई पीढियां से गांव में चल रहे विद्यालय बंद हो रहे हैं कहते हैं छात्र संख्या कम होने के कारण सरकार पर बहुत ज्यादा बोझ पड़ रहा है। संविधान में राज्य को वेलफेयर स्टेट घोषित करते हुए सभी को आवश्यक मूलभूत सुविधाओं जोड़ना राज्य का कर्तव्य बताया गया है यानी कि संविधान में विदित है कि राज्य लाभ कमाने वाली संस्था नहीं है।उससे भी एक कदम आगे बढ़ते हुए बाबा साहब ने पिछड़े और वंचितों का ध्यान रखते हुए सभी को शिक्षा का अधिकार मिले इसके लिए अनुच्छेद 14 के तहत मूलअधिकार दियाऔर इसी के तहत आज भारतीय संविधान में शिक्षा, 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए एक मौलिक अधिकार है इसे 86वें संवैधानिक संशोधन द्वारा अनुच्छेद 21A में शामिल किया गया है, जिसमें कहा गया है कि राज्य, कानून द्वारा निर्धारित तरीके से, 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा। यह अधिनियम 1 अप्रैल, 2010 से लागू हुआ, जिससे भारत उन 135 देशों में शामिल हो गया जो शिक्षा को प्रत्येक बच्चे का मौलिक अधिकार मानते हैं। सभी को शिक्षा देने के लिए केंद्र सरकार ने सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत की। जैसा कि सर्वविदित है लोकहित में सर्व शिक्षा अधिकारी (एसएसए कार्यक्रम) के प्रणेता भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे। प्रश्न उठता है सर्व शिक्षा अभियान (SSA) क्या है? और उसकी जरूरत क्यों पड़ी? तो हम पाते है कि वैश्वीकरण के युग में विश्व की हितकारी संस्थानों में से एक “यूनेस्को” का मुख्य उद्देश्य विश्व में सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना है, विशेष रूप से वंचित समूहों और संघर्षों या आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों हेतु और वैश्विक प्रतिस्पर्धा और आवश्यक मापदंडों केत हत केंद्र सरकार ने 60% कृषि प्रधान आबादी वाले भारत देश के प्रत्येक गांव में बच्चे शिक्षा प्राप्त कर सकें अतः हर 1 किलोमीटर में प्राइमरी और तीन किलोमीटर में जूनियर बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूल खोलने का प्रावधान किया गया और इसे सर्व शिक्षा अभियान नाम दिया गया। यह भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जिसे प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण (UEE) को प्राप्त करने के लिए 2001 में शुरू किया गया था। सर्व शिक्षा अभियान को कानूनी समर्थन तब प्रदान किया गया जब 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा को भारतीय संविधान में अनुच्छेद 21 A के तहत एक मौलिक अधिकार बनाया गया यानी की राज्य का यह कर्तव्य है कि प्रत्येक बच्चे को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा सुरक्षित करें किसी भी परिस्थिति में कोई बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे। मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार सर्व शिक्षा अभियान कार्यक्रम का संचालन करता है और यह 2000-2001 से चालू है।सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत मध्यस्थता के प्रतिमानक प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में प्रत्यक 40 बच्चों पर एक शिक्षक। प्राथमिक विद्यालय में कम से कम दो शिक्षक होना सुनिश्चित हुआ। उत्तर प्रदेश में चल रहे सर्व शिक्षा अभियान का उद्देश्य समयबद्ध तरीके से इस मौलिक अधिकार की अपेक्षाओं को पूरा करना है। जब बड़ी तादात में सर्व शिक्षा अभियान के स्कूल खोले जा रहे थे तब यह कहीं पर भी उल्लेखित नहीं था कि एक स्कूल में बच्चे कितने पढ़ेंगे पर गांव में रहने वाला गरीब और वंचित बच्चा शिक्षा प्राप्त करेगा ऐसी ही आशा और अपेक्षा थी। पूरे देश के साथ प्रदेशों में भी इसका सकारात्मक परिणाम रहा और इसी के तहत उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में शिक्षा के स्तर में काफी सुधार आया जहां शिक्षा के क्षेत्र में तराई के जिले पीछे रहते थे वहां पर भी सर्व शिक्षा अभियान के तहत साक्षरता का बढ़ा मापदंड प्राप्त किया गया।

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अचानक सर्व शिक्षा अभियान के तहत बेसिक शिक्षा परिषद के चलने वाले प्राथमिक विद्यालय इस आधार पर बंद किए जाने लगे की वहां बच्चों की संख्या कम है और वित्तीय भार सरकार पर पड़ रहा है जबकि हकीकत यह है की केंद्र और राज्य सरकार की साझी योजना के तहत यह वित्तीय भार अनुपात में बांट दिया जाता है।

स्कूल मर्जर या विलय के फैसले से हजारों गरीब वंचित और आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को शिक्षा के अधिकार से दूर कर दिया जाएगा यह बात सभी जानते है कि किसी भी गांव का विद्यालय बंद हो जाने से बच्चों को दूसरे गांव या लगभग तीन किलोमीटर दूर के विद्यालय में जाना पड़ेगा। गरीब बच्चों के पास संसाधनों की कमी होती है माता-पिता मजदूरी या खेतों में काम करते हैं अतः रोज अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने और लेने भी नहीं जा सकते ।इतनी दूर 6 से 14 वर्ष के बच्चों का पैदल जाना मुश्किल है और प्राइवेट स्कूलों की फीस ऐसे अभिभावक नहीं दे सकते और ना ही इन सभी बच्चों का राइट टू एजुकेशन एक्ट के तहत प्राइवेट स्कूलों में सरकार एडमिशन करवा सकती है। यानी कुछ दिनों बाद हम इन बच्चों को गांव की पगडंडियों में इधर-उधर घूमता हुआ ही पाएंगे। कई छोटे बच्चे विकलांग भी होते हैं कई बेटियां शरीर से काफी कमजोर होती है क्या उनके मां-बाप उन्हें सुरक्षित शिक्षा दिलाने दूसरे गांव भेज पाएंगे?

आज स्कूल मर्जर की नीति के लिए यही कहा जा सकता है कि कलयुग में एकलव्य का अंगूठा गुरु नहीं पर सरकार और भावनात्मक लगाव ना रखते हुए नीतियां बनाने वाले अधिकारी जरूर मांग रहे है ताकि वह शिक्षित ना हो सके और जीवन भर बड़े घरों में नौकर,किसान या मजदूर ही बने रहे। और उससे भी बड़ी समस्या है बेटियों के साथ जो अकेले घर से बाहर दुकान तक जाने में कब है वह नियत का शिकार हो जाए माता-पिता आसंकित रहते हैं तो इतनी दूर अकेले पढ़ने जाने पर उनके साथ सब कुछ ठीक रहेगा क्या इसका आश्वासन सरकार दे पाएगी? स्कूल मर्जिंग से उठने बहुत से प्रश्न जो आज जनमानस को उदवलित कर रहे हैं की आखिर गांव के विद्यालय बंद क्यों?

इस प्रकार सर्व शिक्षा अभियान गरीब असहाय दूर दराज के गांव में रहने वाले बच्चों की योजना थी उसे व्यवसाय से ना जोड़ा जाए,तो ही बेहतर रहेगा।आज समाज को एकजुट होकर हजारों एकलव्यो को, उनके कटते हुए अंगूठे को बचाना होगा। दस बच्चों से कम संख्या के आधार पर विद्यालय बंद कर देना एक बार उचित है पर जहां संख्या बीस से ऊपर है पचास की संख्या वाले विद्यालय बंद कर देना बच्चों के साथ घोर अन्याय हैं। एक बार ऐसे स्कूलों में जहां बच्चों की संख्या कम है शिक्षक को चेतावनी देकर संख्या बढ़ाने का टारगेट देना चाहिए और शिक्षक को शिक्षक उत्तर कार्यों से मुक्त कर सिर्फ शिक्षण कार्य करने की छूट देनी चाहिए निश्चित रूप से ऐसा करने पर संख्या बल बढ़ेगा और सरकार का यश गान चारों तरफ फैलेगा।
सभी मासूम बच्चों शिक्षक संगठनों अभिभावकों समाज सेवकों के आग्रह को स्वीकार करते हुए सरकार को अपने फैसले पर पुनः विचार करना चाहिए।

एक सामाजिक व्यथा कृपया आप भी विचार करें

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Reena Tripathi

(Reporter)

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