दिल्ली लाइफस्टाइल

हिंदी बनाई जाये राष्ट्रभाषा, लालकिले के पास होगी ‘प्रेरणा’ की अभिव्यक्ति सभा

प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा का दिल्ली में हिंदी सम्मेलन 2025

जबलपुर (मध्यप्रदेश) प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु जारी अपने अभियान के तहत दिल्ली में कार्यक्रम आयोजित कर रही है। प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा के इस अभियान में कवि साहित्यकार समाजसेवी पत्रकार शिक्षाविद मुख्य रूप से शामिल हो रहे है।
प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा हिंदी प्रचार प्रसार का काम कर रही है और सभी भाषाओं का समान रूप से सम्मान करती है।

प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा के इस अभियान में कवियों, कवयित्रियों, साहित्यकारों व पत्रकारों की मुख्य भूमिका है….. आप भी हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु इस अभियान में शामिल हो सकते हैं। प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा का राष्ट्रीय सम्मेलन 13 सितंबर 2025 को दोपहर 02.00 बजे से डाॅ धर्म प्रकाश वाजपेयी सिविल सेवा गुरु के संस्थान 18 पूसा रोड करोलबाग नई दिल्ली में आयोजित है।

प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा के राष्ट्रीय सम्मेलन में सम्माननीय मनीषियों का हिंदी के प्रचार-प्रसार व राष्ट्रभाषा की दिशा पर कार्यों हेतु अभिव्यक्ति आयोजित है। अंत में देशभर से आए कवि- कवयित्रियों की प्रतिनिधि रचनाओं की काव्य फुहार होगी।

प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा 14 सितंबर 2025 को दोपहर 01.00 बजे से लालकिले के पास हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु अभिव्यक्ति सभा आयोजित कर रही है…..सभा में हिंदी सेवियों के वक्तव्य व साहित्यिक धारा प्रवाहित होगी।

हिंदी को सम्मान

आज हिंदी की वर्तमान दशा चिंतन का विषय है। दुनिया का एकमात्र लोकतांत्रिक देश जिसकी अपनी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है वह भारत ही है। दुनिया में बहुत से देश है जहां कई भाषा व बोली है उसके बावजूद उनकी राष्ट्रभाषा है।

हम सभी भाषाओं का सम्मान करते हैं और सभी भाषाएं ज्ञान देती है। आज हिंदी का विरोध अपने देश में हो रहा है वैसा तो विश्व के किसी देश में नहीं है जो कि सचमुच चिंतन का विषय है। हम अपनी भाषा को खोते जा रहे हैं और विश्व पटल पर स्थापित करने की बात बड़े गर्व से कहते हैं। पता नहीं हम अपने ही देश में अपनी भाषा को उसका वास्तविक सम्मान कब दिला पाएंगे।

आप सभी साहित्य मनीषी साहित्यकार पत्रकार कलमकार व हिंदी प्रेमियों को इस दिशा में सार्थक प्रयास करने की आवश्यकता है और इस विषय को अपने – अपने प्रयासों से सत्ता के गलियारों तक अभिव्यक्त करने की दिशा में कदम बढ़ाने की आवश्यकता है तभी अपनी भाषा अपनी संस्कृति बचेगी।

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राजेंद्र सिंह

राजेंद्र सिंह (सम्पादक)

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