प्रधान सो रहे चैन की नींद, सफाई या उत्तर देना भी जरुरी नहीं समझते
गोण्डा। कहने को तो अमृत सरोवर लेकिन इसे आप गंदे नाले से ज्यादा कुछ नहीं कह सकते इसी तरह जंगल के बीचोबीच बनाये गए पंचायत भवन जिसे धन का दुरूपयोग और खलिहान का रूप ले चुके सामुदायिक शौचालय के साथ साथ बंदरबाट का मामला तय न हो पाने के चलते जर्ज़र साधन सहकारी समिति भवन के अटके निर्माण की कहानी नगर से जुड़े ग्राम महादेवा की है।

आने वाले पंचायत चुनावों से पहले वर्तमान कार्यकाल में गावों को विकास के किस पायदान पर पहुँचाया गया है या फिर उन्हें और पीछे कर दिया गया है की चल रही पड़ताल में समाचार वार्ता की टीम पिछले दिनों नगर से लगभग सटे ग्राम महादेवा पहुंची जहाँ ग्राम वासियों की तमाम आम समस्याओं के साथ कुछ बड़े भ्रस्टाचार के मामले सामने दिखे जिसमे लगभग 25 लाख के बजट से बने पंचायत भवन जिसे गाँव से बहुत दूर जंगल के बीचोबीच बना दिया गया है, पंचायत भवन तक जाने के लिए रास्ता नहीं है, जो रास्ता दिखाई दिया वो पूरी तरह कच्चा दिखा जो मामूली बारिश में ही भयंकर कीचड से भर जाता है, अनियमित तरीके से बनाये गए पंचायत भवन के मुख्य द्वारा के सामने एक ग्रामीण का खेत पड़ता है जिसमे जाये बिना पंचायत भवन के अंदर जाना असंभव है, भवन की स्थिति देखकर इसे समझना कठिन नहीं है की आजतक इसका उपयोग नहीं किया गया है लेकिन इसके बाद भी फर्श पर लगी टाइल्स उखाड़ने लगी है, बंद पड़े कमरों में भयंकर कीड़ों ने अपना आशियाना बना लिया है, कुछ कमरों में खेती में उपयोग होने वाले पुराने उपकरण भरे दिखे।
इसी तरह अगर हम बात करें अमृत सरोवर की तो इसकी स्थिति किसी सामान्य और गंदे तालाब से अलग नहीं है, कहने को तो एक तरफ तालाब में जाने के लिए सीढ़िया बना दी गईं हैं लेकिन पूरा तालाब जलकुम्भी और अन्य जलीय पौधोँ से भरा पड़ा है।

यही नहीं ज़ब इस ग्राम के सामुदायिक शौचालय पर दृष्टि पड़ी तो वो पहली नज़र में गाँव का खलिहान लगा, सभी दरवाजों में लगे ताले वाले शौचालय के चारों ओर फसल से निकले अवशेषों के ढेर लगे हुए थे जो इस बात को प्रमाणित करते दिखे की शौचालय पूरी तरह से निस्प्रेयोज्य है।
अब हम बात करें देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ खेती किसानी की तो खेती किसानी की रीढ़ उर्वरक और बीज की ग्राम स्तर पर सुलभ उपलब्धता सुनिश्चित कराने की जिम्मेदारी सँभालने वाले साधन सहकारी समिति भवन की तो पूरी तरह जर्ज़र इस भवन के बारे में जो जानकारी निकल कर सामने आई उसके अनुसार वर्ष 2012 तक उर्वरक और बीज की सुलभ उपलब्धता सुनिश्चित कराने के बाद इस भवन को बंद कर दिया गया और तभी से ये भवन जर्ज़र स्थिति में पड़ा हुआ है, जानकारों ने ये बताया की भवन निर्माण के लिए बजट कब का पास हो चुका है लेकिन जिम्मेदारों की आपसी कमीशनखोरी की दर तय न हो पाने के चलते निर्माण नहीं हो पा रहा, जिसके परिणाम स्वरुप गाँव के किसानों को अपनी खेती किसानी छोड़ बीज और उर्वरक के लिए मारे मारे फिरना पड़ता है।

ये तो रही ग्राम की व्यवस्था और अर्थव्यवस्था सँभालने वाले जिम्मेदारो की वो करतूत जिसके चलते एक तरफ जहाँ ग्राम सभा महादेवा के अंतर्गत आने वाले 12 पुरवों के लगभग पांच हज़ार की जनसंख्या बुरी तरह प्रभावित हो रही है लेकिन ग्राम सभा के प्रथम पुरुष की पदवी को सुशोभित करने वाले ग्राम प्रधान फूलबाबू चौबे चैन की बंशी बजा रहे हैं।
इन अव्यवस्थाओं और भ्रस्टाचार पर उनका पक्ष जानने के लिए ज़ब संपर्क किया गया तो उन्होंने अस्वस्थ होने की बात बताई जिसपर उनसे बाद में संपर्क करने को कहा गया लेकिन ज़ब इसके बाद उनसे कई बार संपर्क करने का प्रयास किया गया तो उन्होंने फोन उठाना और वास्तविकता से अवगत कराना तो दूर कॉल रिसीव करना भी उचित नहीं समझा।

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