पीएफ के भुगतान की गारण्टी सरकार ने न ली तो कल होगा आन्दोलन के अगले कदमों का ऐलान
ऊर्जा विभाग के नौकरशाह सरकार को कर रहे हैं गुमराह
लखनऊ ! विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के आह्वान पर उप्र के सभी ऊर्जा निगमों के तमाम 45 हजार बिजली कर्मचारी एवं अभियन्ताओं ने आज प्रातः 08 बजे से 48 घण्टे का कार्य बहिष्कार प्रारम्भ कर दिया। बिजली कर्मचारियों की मुख्य मांग है कि प्राविडेन्ट फण्ड के भुगतान की जिम्मेदारी लेकर उप्र सरकार गजट नोटिफिकेशन जारी करे और घोटाले के मुख्य आरोपी पूर्व चेयरमैन और अन्य जिम्मेदार आईएएस अधिकारियों को गिरफ्तार किया जाये।
उपभोक्ताओं की कठिनाईयों की देखते हुए संघर्ष समिति ने आज प्रारम्भ हुए 48 घण्टे के कार्य बहिष्कार से विद्युत उत्पादन गृहों की शिफ्ट, 400केवी पारेषण और सिस्टम आॅपरेशन की शिफ्ट को अलग रखा है जिससे बिजली का ग्रिड पूरी तरह से ठप न हो। संघर्ष समिति ने चेतावनी दी है कि यदि 48 घण्टे के शांतिपूर्ण कार्य बहिष्कार से सरकार न चेती तो मजबूरन शिफ्ट में कार्यरत बिजली कर्मी भी आन्दोलन में सम्मिलित होने हेतु बाध्य होगें।
प्रदेश भर में आज सुबह 08 बजे से ही बिजली कर्मचारी व अभियन्ता बिजली घरों और दफ्तरों से काम छोड़कर निकल गये और दिनभर विरोध प्रदर्शन करते रहे। राजधानी लखनऊ में लेसा व मध्यांचल सहित सभी दफ्तरों के बिजली कर्मचारी व अभियन्ता काम छोड़कर शक्तिभवन मुख्यालय पर एकत्र हुए। परियोजनाओं पर प्रातः 08 बजे से ही मुख्य गेट पर बिजली कर्मचारियों ने विरोध सभायें की और जमकर नारे बाजी की। इसी प्रकार जिला मुख्यालयों पर सभी दफ्तरों व बिजली उपकेन्द्रों के कर्मचारी एक स्थान पर एकत्र हुए और विरोध सभा की।
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने 48 घण्टे के कार्य बहिष्कार के लिए प्रबन्धन व नौकरशाहों के हठवादी रवैये को जिम्मेदार ठहराया है। संघर्ष समिति का कहना है कि बिजली कर्मचारियों के प्राविडेन्ट फण्ड की घोटाले में डूब गयी 26 अरब रूपये की धनराशि के भुगतान की जिम्मेदारी लेकर प्रदेश सरकार को गजट नोटिफिकेशन जारी करने से रोकने में सबसे बड़ी भूमिका ऊर्जा विभाग के नौकरशाहों की है जो सरकार को गुमराह कर रहे हैं। संघर्ष समिति ने स्पष्ट किया कि वे तत्काल 26 अरब रूपये के भुगतान की मांग नहीं कर रहे हैं बल्कि 26 अरब रूपये के भुगतान की गारण्टी की मांग कर रहे हैं जिससे बिजली कर्मचारी निश्चिन्त होकर अपने कार्य में जुटे रह सकें। वर्ष 2000 में ऐसी ही गारण्टी उप्र सरकार ले चुकी है एवं इसका गजट उपलब्ध है। अतः आज की परिस्थितियों में समान जिम्मेदारी लेने से उप्र सरकार क्यों कतरा रही है।
संघर्ष समिति ने बताया कि नियमों का उल्लंघन कर जीपीएफ ट्रस्ट में 2631.20 करोड़ रूपये और सीपीएफ ट्रस्ट में 1491.50 करोड़ रूपये दागी कम्पनी डीएचएफएल में जमा किये गये थे। जीपीएफ ट्रस्ट के 1185.50 करोड़ रूपये और सीपीएफ ट्रस्ट के 669.30 करोड़ रूपये वापस मिल चुके हैं जबकि जीपीएफ ट्रस्ट के 1445.70 करोड़ रूपये और सीपीएफ ट्रस्ट के 822.20 करोड़ रूपये डूब गये हैं।
यह भी उल्लेखनीय है कि यह तमाम धनराशि नियमों का उल्लंघन कर मात्र 7.75 प्रतिशत ब्याज पर दागी कम्पनी में लगायी गयी जो ब्याज दर राष्ट्रीयकृत बैंकों से भी कम है। ऐसे में इस घोटाले के मुख्य आरोपी पावर कारपोरेशन के पूर्व चेयरमैन, जो ट्रस्ट के भी चेयरमैन थे, व उनके अन्य सहयोगी आईएएस अधिकारियों को बर्खास्त कर तत्काल गिरफ्तारी किया जाना जरूरी है जिससे घोटाले के तह तक पहुंचा जा सके।
लखनऊ में आयोजित सभा को संघर्ष समिति के प्रमुख पदाधिकारियों शैलेन्द्र दुबे, राजीव सिंह, गिरीश पाण्डेय, सदरूद्दीन राना, सुहैल आबिद, राजपाल सिंह, राजेन्द्र घिल्डियाल, विनय शुक्ला, शशिकान्त श्रीवास्तव, महेन्द्र राय, वी सी उपाध्याय, डी के मिश्र, करतार प्रसाद, कुलेन्द्र प्रताप सिंह, मो इलियास, पी एन तिवारी, परशुराम, ए के श्रीवास्तव, पी एन राय, भगवान मिश्र, के एस रावत, आर एन यादव, आर एस वर्मा, के के वर्मा, पी एस बाजपेई, अमिताभ सिन्हा ने मुख्यतया सम्बोधित किया।