लखनऊ ! असाध्य रोग ट्यूबरकुलोसिस मेनिनजाइटिस से जूझ रही गांव अलीनगर खुर्द में अपनी नानी के यहां रहने वाली राधिका जो कि वही के प्राथमिक स्कूल अलीनगर खुर्द की कक्षा तीन की छात्रा है ।उसके पिता ने पैदा होते ही उसे और उसकी मां को छोड़ दिया था ।
इस वर्ष विद्यार्थी कोरोना महामारी के कारण विद्यालय नहीं जा सके जिसके कारण से शिक्षकों को बीच-बीच में विद्यार्थियों की सुधि लेनी पड़ती है। बच्ची की नानी के माध्यम से जब विद्यालय की शिक्षिका रीना त्रिपाठी को यह पता चला कि गरीबी के कारण राधिका का इलाज कराने में समस्या आ रही है, तो पहल करते हुए शिक्षिका रीना त्रिपाठी प्राइवेट राशि अस्पताल गई और वहां पर वस्तुस्थिति का पता किया तो पता चला ग्लूकोस की बोतल के सिवा कुछ भी सार्थक नहीं हो रहा था।
शिक्षिका ने व्हाट्सएप और फेसबुक के माध्यम से अपने दोस्तों को खबर दी जिससे मदद के लिए कई हाथ आगे आए और सब ने मिलकर प्राइवेट अस्पताल के चंगुल से इस बच्चे को निकाल सिविल अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कराया। बच्ची की हालत इतनी गंभीर थी कि बस आंखें खुली थी पर शरीर की सभी गतिविधियां बंद हो चुकी थी।
पहले तो सिविल अस्पताल में लेने से मना कर दिया परंतु काफी दबाव के बाद पेशेंट को जगह मिली और इलाज शुरू हुआ ।कई प्रकार के टेस्ट हुए सरकारी और प्राइवेट दोनों, कई बार रीढ़ की हड्डी से पानी निकाला गया और लगभग 1 हफ्ते के बाद डॉक्टरों के अथक प्रयास से और डॉक्टर नंदकिशोर के कुशल मार्गदर्शन में बच्चे के हाथ और पैर में हलचल प्रारंभ हुई।
ईश्वर की असीम अनुकंपा से लगभग 15 दिन की डॉक्टरों, राधिका की मां और शिक्षिका रीना त्रिपाठी की मेहनत रंग लाई और एक महीने की जीवन और मौत की जंग से राधिका बाहर निकल आई। रिकवरी एक बार जब शुरू हुई तो तेजी से जारी रही । नवरात्रि के शुभ अवसर पर कन्या राधिका खुशी खुशी सिविल अस्पताल की इमरजेंसी वार्ड जहां से रोज असहाय लाशे निकलती हैं वहां से सकुशल मौत से लड़ कर जंग जीत अपने घर वापस आ गई।
वाकई शिक्षकों का काम सिर्फ विद्यालय में जाकर अपने टाइम टेबल का पालन करना ही नहीं है बल्कि समय-समय पर अपने विद्यार्थियों के साथ आत्मीय रूप से जुड़ाव रखते हुए नैतिकता का पालन करते हुए, उन्हें गंभीर परिस्थितियों में सहायता देना होता है।
अपने बच्चों के प्रति आत्मीयता और स्वयं के आत्मविश्वास और सहयोग की भावना के बल पर रीना त्रिपाठी ने मासूम बच्ची को मौत की जंग से हाथ पकड़ कर बाहर खींच लिया जो उनके बच्चों के प्रति समर्पण को दिखाता है।
आज की भौतिकता युक्त, कोरोना महामारी कि नैराश्य उक्त वातावरण के बीच श्यामा प्रसाद मुखर्जी अस्पताल डॉ राम मनोहर लोहिया अस्पताल और मेडिकल कॉलेज के चक्कर लगाना शायद बहुत ही दुरूह कार्य है।
कोरोना महामारी के इस समय किसी और के लिए जीना और उसके संघर्षों में साथ देना वाकई कठिन कार्य है इसके लिए प्राथमिक विद्यालय अलीनगर खुर्द की सहायक अध्यापक रीना त्रिपाठी अन्य अध्यापकों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी तथा अन्य शिक्षकों के लिए यह मार्गदर्शन की बात भी है कि सभी बच्चों से आत्मीयता रखें जिससे देश का भविष्य सुनहरा हो सके, तभी बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ जैसे अभियान सार्थक होंगे और शायद मिशन शक्ति का भी उद्देश्य भी धरातल पर प्रतिबिंबित हो सकेगा।
अगर शिक्षक जागरूक हो जाए तो गरीबी और अशिक्षा के कारण किसी बेटी को अपने जीवन को खोना नहीं पड़ेगा।
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