नयी दिल्ली। आरक्षण व्यवस्था को लेकर शुक्रवार को उच्च न्यायालय ने एक बडा फेसला दिया है जिसमें उसने कहा है कि कोटा पालिसी का मतलब योग्यता को नकारना नही है इसका मकसद मेघावी उम्मीदवारों को नौकरी के अवसर से वचिंत रखना नही है भले ही आरक्षित श्रेणी से सम्बध रखते हों।
आरक्षण के फायदे को लेकर दायर की गयी एक याचिका पर फेसला सुनाते हुए न्यायामूर्ति उदय ललित की अध्यक्षता वाली सवोच्च न्यायालय की पीठ ने अपना यह फेसला शुक्रवार केा सुनाया। फेसले में इस बात का स्पष्ट रूप् से उल्ल्ेख किया गया हे कि पर भरने के लिए आवेदकों की जाति के बजाय उनकी यौग्यता पर ध्यान देना चाहिए और मेघावी उम्मीदवारों की मदद करनी चाहिए। साथ ही किसी भी प्रतियोगिता मे ंआवेदकों का चयन पूरी तरह योग्यता के आधार पर ही होना चाहिए। पीठ के इस आदेश के बाद माना जा रहा है कि आरक्षण व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन आ सकता है।
पीठ में शामिल न्यायामूर्ति एस रविन्द्र भटट ने अपनी टिप्पणी मे कहा कि आरक्षण उघ्र्वाधर और क्षैतिज दोनों तरीकों से पब्लिक सर्विसेज में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का तरीका है। आरक्षण को सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए मौके समाप्त करने वाले नियम की तरह नही देखा जाना चाहिए। ऐसा करने से नतीजा जातिगत आरक्षण के रूप् में सामने आयेगा जहां प्रत्येक सामाजिक श्रेणी आरक्षण के अपने दायरे मेें सीमित हो जायेगी और योग्यता को नकार दिया जायेगा। सभी के लिए खुली व्यवस्था होनी चाहिए इसमें एक ही शत्र हो कि आवेदक को अपनी योग्यता दिखाने का अवसर मिले चाहे उसके पास किसी भी तरह के आरक्षण का लाभ उपलब्ध हो।
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद देखना अब यह है कि सरकार इस पर क्या कदम उठाती है जिससे आरक्षण व्यवस्था भी चलती रहे और योग्यता का भी हनन न होने पाये। माना ता यह भी जा रहा है कि पहले से ही किसानों के मामले पर चुनौतियों से जूझ रही केन्द्र सरकार के सामने सुप्रीम कोर्ट ने एक और बडी चुनौती अपने आदेश के माध्यम से रख दी है जिससे पार पाने के लिए सरकार को कडी मशक्कत करनी पड सकती है।