प्रशासन रो रहा स्टॉफ की कमी का रोना, मेडिकल कालेज का हाल
गोण्डा। यदि आपका जिले के मेडिकल कालेज या कहे जिला अस्पताल के आपातकालीन चिकित्सा कक्ष में आना जाना रहता हैं तो आपके सामने ऐसी स्थिति अवश्य आई होगी जिसमे चिकित्सक ने बेड खाली न होने की बात बताकर मरीज को भर्ती करने से इंकार कर दिया होगा, संभव हैं आपके सामने ऐसी भी स्थिति दिखाई दी हो ज़ब इसी बहानेबाज़ी के चलते मरीज के परिजन और चिकित्साकर्मियों में बहस और झड़प होते हुए देखा हो।
जी है हम बात कर रहे हैं जिले के नवनिर्मित स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय की, कहने को तो इसे मेडिकल कालेज का दर्जा किसी तरह मिल गया, छात्रों का प्रवेश भी हो गया, उनकी पढ़ाई भी शुरू हो गईं, आने वाले समय में यहाँ से पढ़कर निकले छात्र प्रदेश ता देश के अन्य क्षेत्रों में अपनी सेवाएं भी देने लगेंगे लेकिन संस्थान अभी भी मुलभूत सुविधाओं की कमी से ही जूझ रहा हैं, ऐसे में सवाल ये खड़ा हो रहा है की जो संस्थान अपने जिले के लोगों को चिकित्सा की समुचित सुविधाएं उपलब्ध कराने में अक्षम हैं वो किस श्रेणी के चिकित्सकों को तैयार करेगा और वे चिकित्सक किस तरह की सेवा जनता को देंगे।
जिला चिकित्सालय के बहुमंजिला कोविड भवन में दर्जनों वार्ड बने हुए हैं जिनमे स्थापित सैकड़ो बेड के साथ चिकित्सा के सभी संसाधन भी मौजूद हैं लेकिन फिर भी सभी वार्डों में ताला बंद कर उन्हें निष्क्रिय कर रखा गया हैं जबकि एक तरफ आपातकालीन कक्ष में मरीजों को बेड की कमी बता भर्ती करने से इंकार किया जा रहा हैं या उन्हें अकारण लखनऊ रेफर कर दिया जा रहा हैं।
मामले पर ज़ब प्रधानाचार्य धनंजय श्रीकांत कोटास्थाने से जानकारी चाही गईं तो उन्होंने इस गंभीर प्रकरण का दो टूक जवाब देते हुए कहा की स्टॉफ की नियुक्ति न होने के चलते इन वार्डों का संचालन नहीं हो रहा। लेकिन यहाँ ते भी बताना आवश्यक हैं की कोविड के समय इन सभी वार्डों का पूरी तरह से संचालन किया गया था जबकि उस समय कर्मचारियों की संख्या आज से बहुत कम थी तो आज इन वार्डों का संचालन क्यों नहीं किया जा सकता।
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