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आखिर कब पकेगी मेडिकल कालेज प्रशासन की जाँच वाली खिचड़ी, बीरबल को भी मात दे रहे प्रिंसिपल कोटास्थाने

भ्रस्ट चिकित्सकों को संरक्षण देने का कर रहे विफल प्रयास

साढ़े तीन माह से चल रही जाँच अभीतक नहीं हुई पूरी

हड्डी रोग विशेषज्ञ डा अतुल द्वारा रोगी से रिश्वत मांगने का है मामला

गोण्डा। अकबर बीरबल की वो कहानी तो आप सब ने कभी न कभी जरूर सुनी होगी जिसमे बीरबल काफ़ी ऊंचाई पर मटके को लटका कर खिचड़ी पका रहे थे, अब वो खिचड़ी तो शायद एक दो दिन में पक भी गईं होगी लेकिन बीरबल को भी मात देते मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य द्वारा एक मामले की कराई जा रही जाँच है की पकने का ही नाम नहीं ले रही, लगातार एक के बाद एज जाँच टीम का गठन किया जा रहा लेकिन किसी भी टीम की रिपोर्ट पर अपनी संतुष्टि की मोहर प्रधानाचार्य द्वारा न लगाया जाना इसी शंका को बल दे रहा हैं की कही न कही कुछ तो गड़बड़ हैं।

मामला विगत 17 जनवरी का है ज़ब एक महिला रोगी की शल्य चिकित्सा मेडिकल कालेज को अपनी सेवाएं दे रहे डा अतुल सिंह द्वारा किया जाना था, रोगी के कथनानुसार ऑपरेशन थिएटर में पहुँचने पर डा अतुल द्वारा 6 हज़ार ₹की मांग की गईं जिसमे असमर्थता जताने पर बाहर से सामान लाने के लिए एक पर्ची थमा दी गईं।

पीड़ित रोगी ने डा अतुल सिंह के इस भ्रस्ट आचरण की शिकायत तत्काल प्रधानाचार्य डा धनंजय श्रीकांत कोटास्थाने से की, अब निजी और सरकारी सहित विभिन्न घाटों का पानी पी चुके और मामले को लटकाने भटकाने में महारत हासिल कर चुके डा कोटास्थाने ने जाँच पर जाँच का खेल खेलते हुए अकबर के दरबारी रत्न बीरबल को भी मात देने का निश्चय कर लिया।

कहने को तो डा कोटास्थाने ने तुरंत एक कमेटी का गठन कर उसे पंद्रह दिन में रिपोर्ट देने का निर्देश दे दिया लेकिन समयवाधि समाप्त होने के बाद भी विभिन्न बहाने बनाकर पहली कमेटी की लगभग एक महीने तक खींच लिया। एक माह बाद ज़ब उनसे पुनः संपर्क कर मामले की प्रगति की जानकारी चाही गईं तो उन्होंने कमेटी की रिपोर्ट से संतुष्ट न होने की बात बताते हुए एक नई कमेटी के गठन की बात कही। लेकिन इस कमेटी की रिपोर्ट आई या नहीं, आई तो कब आई, और उस पर क्या निर्णय लिया गया इसकी जानकारी ज़ब विगत 21 मार्च को उनसे चाही गईं तो उन्होंने गाँधी के बंदरों की भूमिका निभाते हुए कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया।

सवाल अब भी वही हैं की इस जाँच की आंच क्या खिचड़ी वाली मटकी तक पहुँच भी रही है या फिर जनता और मीडिया को भ्रमित करने के लिए जाँच रूपी मटकी सिर्फ दिखावे के लिए ऊपर टांग दी गईं हैं और वास्तविकता ने खिचड़ी कही और पकाई जा रही हैं।

अब श्री कोटास्थाने के इस व्यवहार अर्थात भ्रस्टाचारियों को संरक्षण देने के पीछे क्या कारण हैं इसे तो वहीं बता सकते हैं लेकिन वे बताएँगे नहीं हालांकि हम कुछ अनुमान जरूर लगा सकते हैं जिनमे सबसे प्रमुख कारण हो सकता हैं भ्रस्टाचार से अर्जित कालेधन में उनकी हिस्सेदारी, दूसरा कारण हो सकता है जिम्मेदारी निर्वहन में अक्षमता, फिलहाल जो भी कारण हो उनके ये आचरण निकम्मे, भ्रस्ट, और अयोग्य चिकित्सकों का मनोबल बढ़ा रहा हैं और गरीब जनता को शोषित होने के लिए विवश करने के साथ शासन की मंशा को पलीता लगा रहा हैं।

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राजेंद्र सिंह

राजेंद्र सिंह (सम्पादक)

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