भारत में 70 सालों से गणतंत्र, लोकतंत्र प्रभावी नहीं है। आम गण अपने मन की कोई बात कार्यपालिका को, न्यायपालिका को, विधायिका को सहजता से बता नहीं पाता।
राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी रह चुके प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता जीवन कुमार मित्तल ने वर्तमान व्यवस्था और कार्यपालिका पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए कहा कि गण को कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका आदि के विभिन्न भवन के बाहर ‘गन’ दिखती है। हर जगह जनता को फुटबाल समझ किक मार आउट कर दिया जाता है। हर जगह गण को भिखारी समझ कहा जाता है: कहीं ओर जायो। PIL आदि पर जुरमाना किया जाता है जिससे सरकार सुधारक झाग की तरह मन मसोस बैठ जाते हैं।
इतना ही नही उन्होंने कहा कि RTI के माध्यम से उचित जानकारी नहीं मिलती। अरबों गण की अरबों परेशानियां पर किसी का कोई ध्यान नहीं है। गण हेतु सिस्टम को, तंत्र को ऑब्जेक्शन और सजेशन देने का सिस्टम ही नहीं है। सिस्टम से सम्बंधित ऑब्जेक्शन और सजेशन देने वाले को शिकायतकर्ता मान लिया जाता है। नीतिगत, पालिसी मैटर के नाम पर गण की किसी भी सजेशन को झट ओवररूल, नजरअंदाज आदि कर दिया जाता है। गण के अधिकार लगातार कम किये जा रहे हैं। गण की हर आवाज दबाने हेतु देशद्रोह आदि जैसे भारी कानून बना दिए जाते हैं।
उन्होंने इन अव्यस्थाओ सवाल ही नही उठाया बल्कि उनका समाधान भी बताते हुए कहा है कि ‘राइट टू गिव इनफार्मेशन’ पोर्टल होना चाहिए जहाँ कोई गण तंत्र की किसी कमी पर ऑब्जेक्शन और व्यावहारिक सजेशन सहजता से दे सके।