उत्तर प्रदेश राजनीति

महिला सशक्तिकरण और दम घोटती राजनीति

Written by Reena Tripathi

सरिता रावत के मनोबल को तोड़कर क्या महिला शक्ति मजबूत हो पाएगी

उत्तर प्रदेश की राजनीति में पंचायत चुनाव की सरगर्मियां जोरों पर है।
एकतरफ सत्ताधारी पार्टी जो कि महिला सशक्तिकरण और महिला शक्ति मिशन के तहत महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए कटिबद्ध है वहीं दूसरी तरफ माल क्षषेत्र से जिला पंचायत सदस्य का टिकट मांग रही एक अबला नारी जिसने अभी कुछ दिन पहले ही नशे के चक्रव्यूह में फंसे हुए युवक आकाश किशोर को विवाह के दो वर्ष बाद ही खो दिया।

जी हां यहां बात सरिता रावत उर्फ श्वेता किशोर की हो रही है एक तरफ सरकार और सत्ताधारी दल अक्सर महिला सबलीकरण के नाम पर बड़ी-बड़ी योजनाएं और प्रोत्साहन के लिए बड़ी-बड़ी बातें करती हैं वहीं दूसरी तरफ खुद को गांव स्तर की राजनीति में व्यस्त रखने की मंशा से भारतीय जनता पार्टी से टिकट मांग रही कौशल किशोर की बहू का टिकट काट दिया गया।

एक तरफ दो वर्ष के छोटे बच्चे के साथ पूरी जिंदगी का संघर्ष और जीने की लालसा के बीच प्रतिद्वंदिता में यदि श्वेता किशोर ने संघर्ष का रास्ता चुना है श्वेता किशोर ने यह निर्णय लिया कि उसे खुद लड़ कर अपना अस्तित्व बनाना होगा और स्वाभिमान के साथ गांव स्तर पर मजबूर बेसहारा नशे की लत में फंसे हुए युवा और महिलाओं की मदद करनी होगी, इसी मंशा के तहत उसने भारतीय जनता पार्टी से जिला पंचायत सदस्य माल का टिकट मांगा, परंतु उसे टिकट नहीं दिया गया ।

सरिता रावत उर्फ श्वेता जहां एक तरफ अपने छोटे बच्चे के भरण-पोषण और खुद को एक दिशा देने के लिए जिला पंचायत सदस्य बनकर समाज की सेवा करने में खुद को व्यस्त रखना चाह रही थी तो इसमें बुरा क्या है?
सांसद और विधायक के घर के लोगों को टिकट नहीं दिया जाएगा यह रणनीति अच्छी है परंतु यदि परिस्थितियां विषम है और एक महिला को सबल बनाने की बात है तो हम उस में इतनी संकुचित मानसिकता क्यों रखते हैं? क्यों समाज और सरकारें टूटी हुई महिलाओं की मदद के लिए आगे नहीं आती।

जिला पंचायत माल से जातिगत समीकरण के कारण एससी सीट पर टिकट उन लोगों को नहीं दिया गया ,जो कि बीजेपी की सेवा में दिन रात लगे रहते हैं। क्या सरिता रावत को सिर्फ सांसद कौशल किशोर की बहू होने का खामियाजा उठाना पड़ेगा।

यहां बात सिर्फ चुनाव लड़ने की नहीं है यह बात है विश्वास कि यहां बात है एक विशेष पार्टी के प्रति अपनी आस्था की। भारतीय जनता पार्टी यदि अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल इसी तरह तोड़ती रहेगी तो निश्चित रूप से बाहर से आए हुए घुसपैठिए पार्टी पर कब्जा कर लेंगे और जमीनी स्तर पर काम करने वाले संगठन के कार्यकर्ता, और पदाधिकारी अपना मनोबल तोड़ कर दूसरी पार्टी के लिए काम करने को विवश हो जाएंगे।

निश्चित रूप से यहां बात राजनीतिक महत्वाकांक्षा कि नहीं है बात सिर्फ इतनी है की एक महिला यदि अपने अस्तित्व के लिए समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए और अपने छोटे बच्चे के भरण-पोषण के लिए स्वतंत्र रहकर काम करना चाहती है तो फिर उसकी भावनाओं को कुचलने की साजिश क्यों रची जाती है।
क्या कार्यकर्ताओं का मनोबल ,कार्यकर्ताओं की आस्था और कार्यकर्ताओं का भारतीय जनता पार्टी के प्रति समर्पण कुछ भी मायने नहीं रखता। एक तरफ जहां अर्थ तंत्र का बोलबाला है और कुछ लोगों द्वारा टिकट खरीदें और बेचे जा रहे हैं ऐसी परिस्थितियों में क्या ईमानदारी से किए गए प्रयास नाकाफी होंगे, और लगातार पार्टी के विरोध में काम करने वाले लोग टिकट पाते रहेंगे……………

आज सरिता रावत उर्फ श्वेता किशोर के पास कोई विकल्प नहीं है परंतु इच्छाशक्ति और आत्म सम्मान की इस लड़ाई में वह विवश होकर निर्दलीय चुनाव लड़ने की मजबूरी के साथ अपना नामांकन दाखिल करने को विवश होगी क्या पार्टी को पुनःविचार नहीं करना चाहिए

पार्टी के शीर्ष पर बैठे हुए पदाधिकारी मनन करें मंथन करें।

आज यह सामाजिक और दबे कुचले समाज की मांग है की महिला शक्ति के नाम पर बातें नहीं ,जमीनी स्तर पर काम होना चाहिए और सरिता रावत को भारतीय जनता पार्टी से टिकट मिलना चाहिए

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Reena Tripathi

(Reporter)

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