आपरेशन के बाद चश्मे की आवश्यकता को नकारता पम्पलेट बन रहा बड़े विवाद की वजह
गोण्डा। केन्द्र सरकार द्वारा आखों की बीमारियों को लेकर चलाये जा रहे एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम में जनपद के मुखिया और स्वास्थय विभाग के आलाअधिकारियों ने एक ऐसा फरमान जारी कर दिया है जिसको लेकर मरीजों और डाक्टरों में एक अजीब सी भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। यह फरमान मात्र भ्रम की ही नहीं बल्कि यह डाक्टरों और मरीजों के बीच एक असहज स्थिति को भी उत्पन्न कर सकता है।
हुआ यह है कि केन्द्र सरकार द्वारा चलाये जा रहे राष्ट्ीय अंधता एंव दृष्टि क्षीणता नियंत्रण कार्यक्रम के तहत जनपद गोण्डा में भी मोतियाबिंद आपरेशन का विशेष पखवाडा कार्यक्रम चलाया जा रहा है जिसकें तहत प्रचार प्रसार के लिए पूरे जनपद के आम स्थानों से लेकर विभिन्न चिकित्सासालयों मे एक ऐसा पम्पलेट वितरित किया गया है जिसमें लिखे एक लाइन से जिले कें आख के मरीजों में और विभाग के आंख विशेषज्ञों में भ्रम की स्थिति पैदा हो गयी है। जिले के मुखिया जिलाधिकारी प्रभांषु श्रीवास्तव और मुख्य चिकित्साधिकारी डा0 संतोष कुमार श्रीवास्तव की ओर से जारी इस पम्पलेट की एक लाइन में स्पष्ट लिखा गया है कि ‘‘लेंस प्रत्यारोपण से सामान्य दृष्टि प्राप्त होती है तथा चश्मा लगाने की आवश्यकता नहीं होती हैं’’। परन्तु आखों का आपरेशन कर लेंस प्रत्यारोपण करने वाले विषेशज्ञ जिलाधिकारी ओैर सीएमओ के इस दावे को पूरी तरह सिरे से नकार रहे हैं, वे इस बात पर अपनी असहमति जहा रहे है। जिला स्वास्थ्य विभाग के द्वारा जनहित में जारी इस पम्पलेट से मरीजों और चिकित्सकों के बीच भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गयी है।
इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी इस पम्पलेट में जहां एक तरफ भ्रम की स्थिति पैदा की है वहीं डाक्टरों ओैर मरीजों के बीच विवाद भी उत्पन्न हो गया है, इसमें लिखी बातें मरीजों के साथ साथ डाक्टरों को भी चुभ रही है। पम्पलेट में किये जा रहे दावों पर मरीज और विशेषज्ञ दोनों ही उंगलियां उठा रहे हैं जहां कई मरीज आपरेशन के बाद चश्में के नम्बर की बात सुन भडक रहे है, वहीं विषेशज्ञों को उन्हें समझाने में पसीना आ रहा है। कई मरीज तो यहा तक कह रहे है कि डाक्टर आपरेशन के बाद मुफत में मिलने वाले बढिया लेंस को न लगा कर घटिया स्तर का लेंस प्रत्यारोपण कर रहे है जिससे उन्हें आपरेशन के बाद भी चश्मा लगाने की सलाह दी जा रही है। जबकि सरकारी पम्पलेट पर मुख्य चिक्तिसाधिकारी द्वारा दावा किया जा रहा है कि आपरेशन के बाद चश्में की कोई आवश्यकता ही नही है।
इस बात पर जिले के चिकित्सकों के साथ साथ निजी चिक्तिसकों की माने तो आपरेशन के बाद लेंस प्रत्यारोपित करने के बाद भी आखों पर आवश्यकतानुसार चश्मा लगाये जाने की आवश्कयकता पडती ही है। वे सिरे से इस बात को नकार रहे है। एक या दो लोगों को अपवाद छोड दे ंतो लगभग सभी सामान्य मरीजों को आपरेशन के बाद चष्में की आवश्कता होती ही है। जिला स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी किया गया राष्ट्ीय अंधता एवं दृष्टि क्षीणता निवारण कार्यक्रम का यह पम्पलेट डाक्टरों और मरीजो के बीच विवाद का कारण बन गया है। कई एक्पर्ट तो यहा तक कह रहे है कि सम्भवतः जिला स्वास्थ्य विभाग के मुखिया और जिलाधिकारी द्वारा जारी इस पम्पलेट पर लिखे संदेश को विषेशज्ञ की सलाह लिये बिना ही प्रकाशित और वितरित करा दिया गया है अन्यथा इस तरह की बात दावे के साथ पम्पलेट में प्रकाशित नहीं करायी जाती।
पम्पलेट में लिखी बातों पर जब सीएमओ डाक्टर संतोष श्रीवास्तव से जानकारी ली गयी तो उन्होनेंं इन बातों को 100 प्रतिशत सही बताया और कहा कि यह आपरेशन एक नयी तकनीक के द्वारा की जाती है जो आई ओ एल कहलाती है जिसमें इन्ट्ावस्कूलर लेंस प्रत्यारोपण विधि के द्वारा लेंस के प्रत्यारोपित किया जाता हैं। प्रत्यारोपण के प्श्चात मरीज के चश्में की आवश्यकता नहीं पडती, किन्तु विडम्बना की बात तो यह है कि विषेशज्ञों की राय सीएमओ के इस बात से मेल नहीं खाती उनके अनुसार संम्भवतः पम्पलेट में की गयी इस भूल के दो कारण हो सकते हैं, पहला तो यह कि सीएमओं को कार्यक्षेत्र अस्थिरोग विषेशज्ञ का है और उन्हें नेत्र रोग विभाग से सम्बधिंत तकनीकी जानकारी न होने के कारण स्थिति स्पष्ट नहीं हो पायी हो या फिर पम्पलेट को प्रकाशन से पूर्व विशेषज्ञों से विचार विमर्श न कर पम्पलेट को जारी कर दिया गया हो वरना और कोई कारण नहीं हो सकता कि इस तरह का भ्रम पैदा करने वाला संदेश पम्पलेट में प्रकाशित करवा दिया जाये।
जिला स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी इस पम्पलेट को लेकर फिलहाल मरीजों और डाक्टरों में उहापोह की स्थिति बनी हुयी है देखना यह है कि विभाग डाक्टर एवं मरीजों में भ्रम फैला रहे इस पम्पलेट में कोई सुधार करता है या नही।