विगत कई दिनों से हम राज्य सरकार द्वारा चुनाव की ड्यूटी में लगे हुए शिक्षक और कर्मचारियों को जिनका इसी दौरान कोरोना महामारी की चपेट में आकर मृत्यु हुई के आंकड़ों को झूठलाने का खेल देख रहे हैं।
शिक्षकों के विभिन्न संगठनों द्वारा हजारों की संख्या में मृतक शिक्षकों की फोटो सहित डिटेल चुनाव आयोग से लेकर विभिन्न शिक्षा के अधिकारियों व शिक्षा मंत्री को भेजी गई। और हम सब ने अपने खोए हुए शिक्षक /कर्मचारी साथियों की संख्या हजारों से घटकर तीनआते हुए भी देखी। विभिन्न संगठनों के विरोध के कारण सरकार द्वारा कुछ संशोधन जैसी बयान बाजी भी देखी।ऐसा लगा कि सरकार निर्वाचन ड्यूटी में लगे हुए कर्मचारी जिन्होंने कोरोना काल में अपने प्राण गवाएं को न्याय मिलेगा।
यह सब आंकड़ों की बाजीगरी की तरह क्या बातों का छलावा था यह तो समय ही बताएगा। इन विषम परिस्थितियों में आज शिक्षक व कर्मचारी संगठनों के साथ ही आम शिक्षक की भी यह मांग है कि………..
निर्वाचन ड्यूटी के दौरान संक्रमित होकर प्राण गंवाने वाले कर्मचारियों व शिक्षकों के परिवार को सरकारी सहायता के विषय में सरकार इन महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान दें
प्रथम निर्वाचन ड्यूटी करने वाले कर्मचारियों व शिक्षकों को सरकार फ्रंटलाइन वर्कर घोषित करे और फ्रंटलाइन वर्कर को कोरोना वायरस के कारण जान गवाने पर उसके परिवार को वह सभी सुविधाएं दी जाए जो चिकित्सा, स्वास्थ्य, सफाई पुलिस आदि पूर्व घोषित फ्रंटलाइन वर्कर सेवा में दी जा रही है।
दूसरी निर्वाचन ड्यूटी को फ्रंटलाइन वर्कर ड्यूटी मानने के बाद सारे विवाद स्वत: समाप्त हो जाएंगे और निर्वाचन के दौरान संक्रमित होकर जान गवाने वाले सभी कर्मचारियों शिक्षकों को सरकार को तदनुसार पचास लाख रुपए का कम्पेनसेशन देना चाहिए। मा उच्च न्यायालय के अनुसार तो एक करोड़ रु का कंपनसेशन दिया जाना चाहिए।
तीसरी बात जहां तक मृतक आश्रित के सेवायोजन की बात है तो मृतक आश्रित के सेवायोजन का नियम पचास साल पुराना है जिसमें कोरोना से मृत्यु होने पर संशोधन किया जाना समय की महती आवश्यकता है।
कोरोना के कारण जान गवाने वाले मृत कर्मचारी या शिक्षक के आश्रित को उसकी योग्यता के अनुरूप सेवायोजन दिया जाना चाहिए तब मृतक परिवार के साथ थोड़ा बहुत न्याय हो पाएगा। अन्यथा चतुर्थ श्रेणी का सेवायोजन या कुछ सीमित तृतीय श्रेणी का सेवायोजन न्यायपूर्ण नही है। तथा जिन शिक्षकों के पास कोरोना महामारी के दौरान कोरोना पॉजिटिव की रिपोर्ट किसी कारण नहीं मिल पाई अस्पताल में जगह किसी कारण नहीं मिल पाई और वह घर पर ही बिना इलाज के तड़प तड़प के मर गया उन्हें भी इस श्रेणी में शामिल किया जाए क्योंकि उनके पास अब कोई सबूत दिखाने वाला नहीं है।
कई परिवार पूरी तरह समाप्त हो गये है, कोई कमाने वाला नही बचा है। यदि ऐसे परिवार का कोई बच्चा एमबीए या बी टेक या उच्च शिक्षा प्राप्त है तो क्या वह चतुर्थ श्रेणी की नौकरी करने को मजबूर होगा और उसके सारे सपने और भविष्य समाप्त नही हो जाएगा ? अतः कोविड-19 से मृत्यु के बाद आश्रित सेवायोजन की नियमावली तत्काल उपरोक्तानुसार बदली जानी चाहीये।
कोरोना महामारी के शिकार हुए आवश्यक रूप से चुनाव ड्यूटी करने को मजबूर शिक्षक और कर्मचारी जो आज हमारे बीच नहीं है क्या उनको न्याय दिलाना सरकार और उनके साथियों का फर्ज नहीं है??
क्या उनके दूध मुहे बच्चों को, बिलखती बेवाओं को, चुपचाप रोते मां बाप को टूटते आर्थिक रूप से कमजोर और बिलखते परिवारों को आश्रय देने के लिए सरकार को उसी तरह आगे नहीं आना चाहिए जिस प्रकार चुनाव की ड्यूटी पर ना जाने पर उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए सरकार और अधिकारी आतुर रहते हैं।
आज जब मृतक और उनके आश्रितों को सरकारी संरक्षण की बात आई तो फिर आंकड़ों की बाजीगरी करके क्या हम अतृप्त आत्माओं को शांत कर सकेंगे क्या उनके परिवारों को संबल प्रदान कर सकेंगे यदि नहीं तो ऊपर बताई गई बातों पर सरकार को ध्यान देना चाहिए।…………. दिवंगत शिक्षकों के परिवारों को मिले न्याय.
आम शिक्षक की गुहार
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