उत्तर प्रदेश के कांग्रेसी और जनता दोनों इस बात को लेकर हैरान है कि आखिर इन्दिरा के अक्स के रूप में देखी जाने वाली प्रियंका को क्या हो गया है ? उत्तर प्रदेश प्रभारी बने 3 वर्ष होने जा रहे हैं और इस दौरान प्रियंका की सियासत कार्यकर्ताओं एवं जनता के आशाओं के विपरीत है। प्रियंका अपनी दादी इन्दिरा गाँधी और पिता राजीव गाँधी के पीढ़ी के कांग्रेसियों से नहीं जुड़ पायी और न ही राहुल गाँधी के युवा टीम को बना पायी। स्थिति यह है कि प्रदेश के वरिष्ठम कांग्रेसी अपमानित होकर प्रियंका से दूर हो गए है लेकिन उन्होंने कांग्रेस छोड़ी नहीं है। युवाओं में प्रियंका का जो ग्लैमर था वह उतर चुका है। महिलाओं के बीच प्रियंका गाँधी को लेकर उत्साह समाप्त हो गया है। प्रियंका गाँधी के पीए के रूप में जो 2-4 लोग घूम रहे हैं वह न कांग्रेसी विचारधारा के है, न कांग्रेस परिवार के है और न ही उन्हें उत्तर प्रदेश की कोई जानकारी है।
प्रियंका के इर्द-गिर्द जुड़े तथाकथित वामपंथी विचारधारा वाले लोगों पर यह आरोप भी है कि वह प्रियंका के नाम पर कांग्रेस शासित राज्यों में जम कर दलाली कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में किसी भी स्वाभिमानी कांग्रेसी पृष्ठ भूमि के व्यक्ति को प्रियंका के आस पास तक भटकने नहीं दे रहे है। कांग्रेसियों के साथ साथ जनता भी प्रियंका के लल्लू पसंद को लेकर अचम्भित है और हस के प्रदेश अध्यक्ष के चयन लल्लू को लेकर यही टिप्पणी करते है कि लल्लू के नेतृत्व में कांग्रेस प्रदेश में वास्तविक रूप से लल्लू हो गयी है। देश की सबसे पुरानी पार्टी के प्रदेश कार्यालय में सत्ता में न रहने के बाद भी वरिष्ठ कांग्रेसियों का आना-जाना लगा रहता था जो सत्ता में न रहते हुए भी सत्ता का एहसास करा देते थे। लम्बे समय तक कांग्रेस पार्टी की खबर लिखी है। यह एहसास नहीं होता था कि अगर कांग्रेस मुख्यालय पर मीडिया कर्मी जाय तो उन्हें ख़बरों को लेकर निराश होना पड़े या उनके सम्मान में किसी प्रकार की कमी रहे। कांग्रेस एक कल्चर मानी जाती थी जो प्रियंका के नेतृत्व में गायब हो चुकी है।
लल्लू के नेतृत्व में प्रदेश कांग्रेस लल्लू बन गयी तो युवा कांग्रेस, राष्ट्रीय छात्र संगठन, महिला संगठन व अन्य कांग्रेस से जुड़े संगठन और प्रकोष्ट सब कुछ गायब हो चुके हैं। जब से प्रियंका ने उत्तर प्रदेश की कांग्रेस कमान संभाली है लल्लू कांग्रेस में लल्लू लल्लू लल्लू ही नज़र आते हैं और एक भी चेहरा पुरानी पीढ़ी या नई पीढ़ी का नहीं दिखाई देता है। जिसकी अपनी हैसित एक विधानसभा सीट जीतने की हो। ले-देकर वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी की बेटी कांग्रेस विधान दल की नेता आराधना मिश्रा और चंद चेहरे ही बचे हैं जो विधानसभा चुनाव जीतने की क्षमता रखते हैं।
प्रियंका की कार्यशैली और ट्विटर की सियासत से कांग्रेसी परेशान और दुखी है तो जनता में भी कांग्रेस को लेकर निराशा पनप रही है। एक समय था जब प्रियंका गाँधी की लेकर जनता और कांग्रेस में एक गज़ब का उत्साह था। अमेठी संसदीय क्षेत्र में अपने पिता राजीव व सोनिया गाँधी के साथ छोटी प्रियंका जब आती थी तो उन्हें देखकर लोगों में यह चर्चा होती थी कि यह इन्दिरा की अक्स है। अमेठी में राजीव गांधी के प्रचार-प्रसार का कार्य देखने वाले जगदीश पियूष नारे से दीवार पटवा देते थे, “अमेठी की डंका- बेटी प्रियंका”। आज “अमेठी की डंका- बेटी प्रियंका” के उस चहरे को अमेठी की जनता ने भी नकार दिया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रियंका गाँधी के चुनाव प्रबंधन में ही परम्परागत सीट अमेठी राहुल गाँधी हार गए।
कांग्रेसी और जनता दोनों प्रियंका को लेकर यह चर्चा और कयास भी लगा रहे है कि उनकी सोच और इन्दिरा के अक्स के रूप में जिस प्रियंका को देखते थे, वह गलत था। प्रियंका में इन्दिरा का अक्स बिलकुल नहीं है या फिर प्रियंका की मजबूरी है पति राबर्ट वाड्रा। पति राबर्ट वाड्रा को बचाने के लिए इन्दिरा के अक्स के रूप में सियासत नहीं कर रही है बल्कि एक आरोपित पति को बचाने के लिए पत्नी की भूमिका में रह कर सियासत करने के लिए सियासत कर रही है।
यह दोनों सवाल बहुत ही महत्वपूर्ण है और यह सही भी है कि अगर इन्दिरा का अक्स प्रियंका में है तो वह इन्दिरा जैसे तेवर की सियासत क्यों नहीं कर रही हैं ? अगर नहीं कर रही है तो यह आरोप सही है कि वह पति को बचाने के लिए चलती फिरती कांग्रेस की राजनीति कर रही है। सही क्या है, इन्दिरा का अक्स है या पति को बचाने के लिए सियासत कर रही हैं इसका जवाब तो प्रियंका गाँधी ही दे सकती हैं।
राजेन्द्र द्विवेदी
वरिष्ठ पत्रकार
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