इस दौरान मां दुर्गा की आराधना गुप्त रूप से की जाती है इसलिए इन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। इन नवरात्र में मानसिक पूजा का महत्व है। वाचन गुप्त होता है। लेकिन सतर्कता भी आवश्यक है। ऐसा कोई नियम नहीं है कि गुप्त नवरात्र केवल तांत्रिक विद्या के लिए ही होते हैं। इनको कोई भी कर सकता है लेकिन थोड़ी सतर्कता रखनी आवश्यक है।
दश महाविद्या की पूजा सरल नहीं। कालीकुल और श्री कुलजिस प्रकार भगवान शंकर के दो रूप हैं एक रुद्र (काल-महाकाल) और दूसरे शिव, उसी प्रकार देवी भगवती के भी दो कुल हैं- एक काली कुल और श्री कुल। काली कुल उग्रता का प्रतीक है।
काली कुल में महाकाली, तारा, छिन्नमस्ता और भुवनेश्वरी हैं। यह स्वभाव से उग्र हैं। श्री कुल की देवियों में महा-त्रिपुर सुंदरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला हैं। धूमावती को छोड़कर सभी सौंदर्य की प्रतीक हैं।
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दस महाविद्या किसकी प्रतीक
छिन्नमस्ता ( वैभव, शत्रु पर विजय, सम्मोहन)
त्रिपुर भैरवी ( सुख-वैभव, विपत्तियों को हरने वाली)
धूमावती ( दरिद्रता विनाशिनी)
बगलामुखी ( वाद विवाद में विजय, शत्रु पर विजय)
मातंगी ( ज्ञान, विज्ञान, सिद्धि, साधना )
कमला ( परम वैभव और धन)
आराधना का मंत्र
काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी।
भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा।
बगला सिद्धविद्या च मातंगी कमलात्मिका।
एता दश महाविद्या: सिद्धविद्या: प्राकृर्तिता।
एषा विद्या प्रकथिता सर्वतन्त्रेषु गोपिता।।
नवरात्र में माँ भगवती की आराधना दुर्गा सप्तशती से की जाती है , परन्तु यदि समयाभाव है तो भगवान् शिव रचित सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ अत्यंत ही प्रभाव शाली एवं दुर्गा सप्तशती का सम्पूर्ण फल प्रदान करने वाला है।
गृहस्थ साधक जो सांसारिक वस्तुएं, भोग-विलास के साधन, सुख-समृद्धि और निरोगी जीवन पाना चाहते हैं उन्हें इन नौ दिनों में दुर्गासप्तशती का पाठ करना चाहिए, यदि इतना समय न हों तो सप्तश्लोकी दुर्गा का प्रतिदिन पाठ करें। देवी को प्रसन्न करने के लिए और साधना की पूर्णता के लिए नौ दिनों में लोभ, क्रोध, मोह, काम-वासना से दूर रहते हुए केवल देवी का ध्यान करना चाहिए। कन्याओं को भोजन कराएं, उन्हें यथाशक्ति दान-दक्षिणा, वस्त्र भेंट करें
गुप्त नवरात्र में की जानेवाली पूजा विधि के बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री का कहना है, ‘’धर्मिक मान्यतानुसार गुप्त नवरात्रि में अन्य नवरात्रि की तरह पूजा करनी चाहिए। नवरात्रि नौ दिनों का पर्व होता है तथा जिसकी शुरुवात प्रथम दिन घट स्थापना से की जाती है। घट स्थापना के पश्चात नौ दिनों तक सुबह तथा शाम में माँ दुर्गा अर्थात भगवती की पूजा करनी चाहिए। अष्टमी या नवमी के दिन नवरात्रि का समापन कन्या-पूजन करने के पश्चात करना चाहिए। आशादा नवरात्रि जिसे गुप्त नवरात्री या वरही नवरात्रि के रूप में भी जाना जाता है नौ दिवसीय वराही देवी को समर्पित उत्सव है।
गुप्त नवरात्री के दिन तांत्रिकों और साधकों के लिए बहुत ही शुभ माने जाते हैं। उपवास रखकर और श्लोकों और मंत्रों का जप करके भक्त, देवी के प्रति अपनी भक्ति को दर्शाते हैं। यह माना जाता है कि इस नवरात्री के दौरान देवी तुरंत भक्तों की प्रार्थनाओं पर ध्यान देती हैं और उनकी इच्छाओं को पूरा करती हैं। वराही देवी को तीन रूपों में पूजा जाता है: दोषों को हटाने वाली, धन और समृद्धि का उपहार देने वाली और ज्ञान की देने वाली है
इस साल में 4 बार नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है. इनमें से माघ और आषाढ़ मास में पड़ने वाली 2 नवरात्रों को गुप्त नवरात्र कहते हैं. गुप्त नवरात्रि के 9 दिनों में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है. वैसे तो चारों नवरात्रि मां दुर्गा के भक्तों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होती हैं लेकिन माघ और आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि अघोरियों और तांत्रिकों के लिए बहुत विशेष मानी जाती हैं. आषाढ़ की गुप्त नवरात्रि 11 जुलाई से शुरू होकर 18 जुलाई तक चलेंगी. इन नवरात्रि में भी भक्त निराहार रहकर या फलाहार लेकर व्रत करते हैं. ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री से गुप्त नवरात्र के शुभ मुहूर्त और इनका महत्व जानते हैं।
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हाथी पर सवार होकर आएंगी मां दुर्गा
इस साल आषाढ़ मास के गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा गज यानी हाथी की सवारी से आएंगी. इन नवरात्रों पर इस बार गुप्त नवरात्र पर सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है, जो कि 11 जुलाई को सुबह 5:31 बजे से रात 2:22 तक रहेगा और उस दिन रवि पुष्य नक्षत्र भी पड़ रहा है, यह विशेष संयोग बेहद शुभकारी है और सारे काम सिद्ध करने वाला है. इसके अलावा नवरात्र में पूजा की शुरुआत आर्द्रा नक्षत्र में होने से योग और उत्तम हो गया है. बता दें कि नवरात्र 8 दिन की होगी, क्योंकि षष्टी और सप्तमी तिथि एक ही दिन हैं. इससे सप्तमी तिथि का क्षय हो गया है.
ज्योतिष सेवा केन्द्र
ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री