जुमलों और शब्दावली गढ़ने में भाजपा का कोई सानी नहीं।अपने नए स्वरूप-भाजपा-के आरंभिक दौर में यह पार्टी खुद को’पार्टी विद डिफरेंस’कहती थी। दिसंबर,2003में उम्मीदोंके खिलाफ छत्तीसगढ़,मध्यप्रदेश और राजस्थान में पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिल गया और आडवाणीके नेतृत्वमें पार्टीने नारा गढ़ा-शाईनिंग इंडिया।अटलजी नहीं चाहते थे,लेकिन आडवाणीके सामने वह लाचार हो गए,समय से छःमहीने पहले चुनाव कराना पड़ा और सत्ता गंवानी पड़ी।
प्रधानमंत्रीके रूपमें मोदीके दूसरे कार्यकालके महज 2 वर्ष पूरे हुए हैं।लेकिन,भाजपा नेतृत्वने अपने तमाम
नए केन्द्रीय मंत्रियों,सांसदोंको खदेड़ा और नया नारा गढ़ा-जन आशीर्वाद यात्रा।पूरे देश से सच्चाई सामने आने लगी-कोई भी मंत्री-सांसद जनताके सवालोंके जवाब दे पाने की स्थितिमें नहीं है,आशीर्वाद कम और बद्दुआ ज्यादा मिल रही है।
पार्टीकी पूरी सत्ता सिर्फ दो व्यक्तियोंमें केन्द्रित होकर रह गई है-मोदी-शाह,दोनोंको अपने सायों से भी डर लगता है,दोनों किसी व्यापक जनाधारवाले को तो बर्दाश्त करनेसे रहे।मोदी जिन दिनों गुजरातके मुख्यमंत्री थे,उनके दो सबसे विश्वासपात्र व्यक्ति थे- अमित शाह और आनंदीबेन पटेल।लेकिन,आपस में ये दोनों प्रतिद्वंद्वी रहे हैं।प्रधानमंत्री बनने पर मोदीने मुख्यमंत्रीकी कुर्सी अमित शाहको नहीं आनंदीबेन पटेल को सौंपी।अमित शाहने वर्षोंसे गुजरातके मुख्यमंत्रीकी कुर्सी पर नजर गड़ा रखी थी,वह प्रतिद्वंद्वी को चली गई,वह यह कैसे बर्दाश्त करते।उन्होंने आनंदीबेन पटेल को अघोषित रूपसे जीना मुहाल कर दियाआखिरकार, मोदीने आनंदीबेन पटेलको राज्यपाल बनाकर गुजरात की स्थानीय राजनैतिक परिदृश्यसे बाहर किया।गुजरात के मुख्यमंत्रीकी कुर्सी अमित शाहकी पसंद विजय रूपाणीको सौंपी गई।विजय रूपाणीमें एक ही गुण- अवगुण था-वह मोदी-शाहके यसमैन थे।ऐसे रीढ़विहीन नेता कैसे बेहतर परिणाम दे सकते थे।
गुजरात विधानसभा चुनाव,2017में मोदी-शाहने’अबकी बार,डेढ़ सौ पार’का नारा तो खूब लगाया,लेकिन सौ का आंकड़ा भी नहीं छू पाए, 99पर अटक गए। लेकिन,विजय रूपाणी से बेहतर यसमैन मिला नहीं,सो विधानसभा चुनावमें अपेक्षित परिणाम नहीं मिलने पर भी रूपाणी मुख्यमंत्री बने रहे।विजय रूपाणी के दूसरे कार्यकाल के अभी 4वर्ष पूरा होना बाकी है।2022के पूर्वार्द्ध में उत्तरप्रदेश,उत्तराखंड,पंजाब,गोवा और मणिपुर में चुनाव होने हैं।पंजाबमें भाजपाका गठबंधन अकाली दल से टूट गया है,वहां सत्ता मिलने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है।उत्तराखंडमे भाजपाने 5वर्ष में तीन मुख्यमंत्री दिए,सत्तामें वापसीकी कोई संभावना नहीं है।गोवामें पिछली बार भी भाजपाने चोर-दरवाजेसे सत्ता हथियाई थी,इस बार मिलने की कोई संभावना नहीं।पिछली आधी शताब्दीमें उत्तरप्रदेश विधानसभाके किसी चुनावमें सत्ताधारी मुख्यमंत्रीको सत्ता वापस नहीं मिली,इस बार भी ऐसे ही संकेत मिल रहे हैं।अगर,भाजपा उत्तरप्रदेशका चुनाव हारती है,तो गुजरात विधानसभा चुनाव,2022जीत पाना कठिन हो जाएगा।जन आशीर्वाद यात्राने स्पष्ट संकेत दे दिए थे कि विजय रूपाणीके मुख्यमंत्री रहते,मोदी-शाह कितना भी जोर लगा लें,विधानसभा चुनाव तो नहीं जीत पाएंगे।इसी परिप्रेक्ष्य में विजय रूपाणी ही नहीं पूरे मंत्रिमंडल को रिप्लेस करने का निर्णय लिया गया।आज्ञाकारी बालककी तरह विजय रूपाणीने तो इस्तीफा सौंप दिया,लेकिन नए मंत्रियोंके चयनमें भाजपा नेतृत्वको जिस प्रकार पसीना बहाना पड़ा है,वह मोदी-शाहके लिए गंभीर चुनौती है।भूपेंद्र पटेल मंत्रिमंडलमें 7पटेलों को शामिल करवाकर आनंदीबेन पटेलने अमित शाह को चारों खाने चित्त कर दिया है।भूपेंद्र पटेल और आनंदीबेन पटेलकी आत्मीयता इससे समझी जा सकती है कि वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल उसी विधानसभा क्षेत्रका प्रतिनिधित्व करते हैं,जिस विधान सभा क्षेत्रसे आनंदीबेन पटेल जीतती रही हैं।यह गुजरातकी स्थानीय राजनीति और मोदी पर आनंदीबेन पटेल की पकड़ दर्शाती है।एक आम मतदाता सवाल कर सकता है,कर रहा है-अगर विजय रूपाणी और उनकी टीम काबिल, सक्षम थी,तो ऐसी कौन-सी आफत आ गई,जो पूरी टीम को बदलना पड़ा।और,अगर नकारा, अयोग्य और अक्षम थी,तो चार साल तक उन्हें सत्ताकी बागडोर दी ही क्यों गई?
अमित शाह राजनीतिमें मोदीकी छायाकी तरह रहे हैं।कभी कोई हड़बड़ी नहीं दिखाई,अपना 100% योग्यता, दक्षता मोदीके राजनैतिक कैरियरको सजाने-संवारने में लगाया।उनकी महत्वाकांक्षा रही है-मोदी जब 75की उम्र पूरी कर सार्वजनिक राजनीति से रिटायर होंगे, प्रधानमंत्रीकी कुर्सी उन्हें तोहफेमें मिल जाएगी।लेकिन, उन्हें पता नहीं था कि उनके पितृसंस्था आरएसएसकी अपनी अलग प्राथमिकताएं हैं।
उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव,2017के दौरान केशव प्रसाद मौर्य भाजपाके प्रदेश अध्यक्ष थे,भाजपाकी ओर से पिछड़ा चेहरा थे।हर चुनावी सभामें मोदीजी खुदको पिछड़ा बताते और सबसे बड़े वोट बैंक पिछड़ा वर्गको संतुष्ट करनेका प्रयास करते।भाजपाने केशव प्र मौर्यकी इस महत्वाकांक्षाको हवा दी कि चुनावके बाद वही मुख्यमंत्री होंगे।चुनावमें अनपेक्षित रूपसे भाजपाको तीन-चौथाईसे ज्यादा सीटें मिल गईं।लेकिन,मोदी और भाजपा अपना चुनावी वादा भूल गए।मुख्यमंत्री पद के लिए केशव प्र मौर्यका नाम उनकी प्राथमिकता सूची में था ही नहीं।मोदीकी पहली पसंद मनोज कु सिन्हा थे।लेकिन,आरएसएस ने अपना वीटो लगाया,सांप्रदायिक और कट्टर हिन्दूत्वके फायरब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन गए।आरएसएसको सांप्रदायिक और कट्टर हिन्दुत्वके लिए मोदीके विकल्प स्टैंड-बाई के तौर पर एक चेहरे की तलाश थी और योगी आदित्यनाथ से बेहतर विकल्प कोई दिख नहीं रहा था।एक मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ की विफलता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या चाहिए कि बताने- दिखाने के लिए भी उन्हें प.बंगालके फ्लाईओवर की फोटो चुरानी पड़ती है।कोरोना जैसी महामारीसे निपटने में आदित्यनाथकी उपलब्धि यही है कि अभी तक यूपी में 40%आबादी को टीके नहीं लगे हैं,जबकि केरलमें 90%को टीके लग चुके हैं।उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव,2022के लिए जनवरी,2021से जब मोदीने अपना ध्यान केन्द्रित किया,तो अपने सबसे विश्वासपात्र नौकरशाह अरविन्द कुमार शर्माको समयपूर्व सेवानिवृत्ति दिलवाकर एमएलसी बनवाया।अपेक्षा थी कि अरविन्द कु शर्माको उत्तरप्रदेश मंत्रिमंडलमें शामिल कर लिया जाएगा।लेकिन,योगी आदित्यनाथने मोदी-शाह के निर्देशों की उपेक्षा की।मोदी-योगीके बीच टकराहट की खबरें मीडियामें चटखारेके साथ परोसी गईं।
उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव,2022का चुनावी संघर्ष उस मुकाम पर पहुंच गया है,जहां हर हालत में,अमित शाहका राजनैतिक भविष्य अंधकारमय दीख रहा है। व्यावहारिक तौर पर,यह मान लिया गया है कि उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव,2022 तक योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने रहेंगे।अगर मोदी-शाह भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकेंगे,तो चुनाव में जीत मिलने पर योगी आदित्यनाथ भावी प्रधानमंत्रीके तौर पर अपना दावा पेश करेंगे और न सिर्फ भावी प्रधानमंत्री के तौर पर अमित शाह की संभावना समाप्त हो जाएगी,बल्कि पार्टी के भीतर 2024तक मोदी का प्रधानमंत्री बने रहना दूभर हो जाएगा।और,अगर योगी आदित्यनाथको उनकी औकात बतानेके लिए उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया जाए,तो भाजपाकी चुनावी हार सुनिश्चित है।इसलिए,अपनी कुटिलता के तहत अमित शाह कभी संजय निषाद को बुलाकर चाय पिला रहे हैं,तो कभी केशव प्र मौर्य की पीठ ठोक रहे हैं। अगर,केशव प्र मौर्य बयान दे रहे हैं कि उत्तरप्रदेश में 52%पिछड़ों की उपेक्षा कर सत्ता प्राप्त नहीं की जा सकती या फिर उत्तरप्रदेशके अगले मुख्यमंत्री का चुनावके बाद भाजपा विधायक दल में बहुमत के आधार पर किया जाएगा,तो इसके पीछे अमित शाह की वह बताई जा रही है।
किसान आंदोलन,बढ़ती बेरोज़गारी,कोरोना कुप्रबंध आदि ऐसे ज्वलंत मुद्दे हैं,जिनके कारण व्यापक जनांदोलन खड़ा हो जा सकता है,एक प्रधानमंत्रीके तौर पर मोदीका इकबाल वैसे ही समाप्त हो जाएगा,जैसे 1974-77के दौरमें लोकनायक जयप्रकाश नारायणके संपूर्ण क्रान्ति आन्दोलनके कारण इंदिरा का,1987-89के दौरमें राजीव गांधीका,2012- 14के दौरमें डॉ मनमोहन सिंहका समाप्त हो गया था। जाहिर सी बात है-उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव,2022में मोदी-शाह-भाजपाको गंवाना ही,गंवाना है-कुछ पाने की कोई संभावना दूर-दूर तक नहीं है।मोदी-शाह 2017में योगी आदित्यनाथको मुख्यमंत्री बनानेके आरएसएसके वीटो के लिए उसे कोसेंगे और इससे भाजपा पर आरएसएसके वर्चस्वको गंभीर चुनौती मिलेगी।