दृष्टिकोण

सनातन संस्कृति के खुशी और गम का पहला वार सहती “दहलीज”

Written by Reena Tripathi

“”जिस दहलीज पर तेरा इंतज़ार न हो,
उस दहलीज पर कभी जाना नहीं””।

दहलीज के पर्यायवाची आपने अक्सर संस्कृत में देहरी अवधी में देहली, डेहरी, ड्योढ़ी, चौखट, सीमा, मर्यादा के रूप में सुने होंगे।
सामान्यतः “देहरी” का अर्थ है द्वार की चौखट के नीचे की लकड़ी या पत्थर जो जमीन पर रहती है, दहलीज़ कहलाती है। इसे घर के मुख्य द्वार का बाहरी भाग भी कहा जाता है या घर और बाहर की सीमा रेखा के रूप में जाना जाता है।

आज के वैश्वीकरण और भौतिकतावादी युग में अल्युमिनियम , लोहे और कांच की चौखटों ने दहलीज को खत्म सा कर दिया है।
यदि सनातन परंपरा में देखे तो घर मे देहरी का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान था ।इसे मां लक्ष्मी का आगमन द्वार माना जाता था और इसकी पूजा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा, सुख-समृद्धि और शांति आती थी। भारतीय सभ्यता और संस्कृति को पारंपरिक रूप से जारी रखने वाले परिवारों में आज भी इसका उतना ही महत्व है। देहरी की पूजा से घर के वास्तु दोष दूर होते हैं और सभी ग्रह शांत रहते हैं।देहरी की पूजा एक सरल और प्रभावी अनुष्ठान है जो घर में सकारात्मक ऊर्जा, समृद्धि और शांति ला सकता है। देहरी नकारात्मक ऊर्जा को घर में प्रवेश करने से रोकती है।देहरी की पूजा रोजाना या विशेष अवसरों पर की जा सकती है। पूजा के लिए जल, चावल, फूल, दीपक, सुगंध, फल और मिठाई का उपयोग किया जाता है। जिस प्रकार बड़े प्रतिष्ठित मंदिरों में देरी पूजा का महत्व होता है उसी प्रकार घर में भी इसका विशेष महत्व है घर की बड़ी बुजुर्ग महिलाएं सबसे पहले देहरी को गंगाजल से साफ करके और फिर स्वस्तिक बनाती है चावल के ढेर पर सुपारी रखकर, फल और मिठाई या फिर घी गुड़ से इसकी पूजा की जाती है, और देवी लक्ष्मी और अन्य देवताओं से घर की सुख समृद्धिकी प्रार्थना की जाती है। किसी मंदिर से आने पर या महत्वपूर्ण अवसरों पर घर की देहरी से पानी उतरकर बाहर फेंक दिया जाता है ताकि नकारात्मकता अंदर ना जा सके और देहरीकी पूजा करने के बाद ही घर में प्रवेश किया जाता है। घर की देहरी में राहु का वास होता है और उसकी पूजा करने से राहु के दुष्प्रभावों से बचा जाता है। नई दुल्हनके आने पर देहरी की पूजा करवाई जाती है नई बहू के हाथों हल्दी सिंदूर घी गुड़ से विधि विधान पूर्वक पूजा करवाई जाती है।जो लोग गांव के पुरखों के पुराने घर को छोड़कर शहरों में बस गए वह भी अपनी नवागंतुक कुल वधु को लेकर गांव की देहरी व कुल देवी देवता की पूजा करने वापस गांव जाते हैं।

सनातन परंपरा के अनुसार हमारे पूर्वज गोधुली बेला में घर के मुख्य द्वार पर दीया जलाते थे जिससे घर में सुख-समृद्धि का प्रवेश हो सके ।इसके साथ ही नकारात्मक प्रभाव घर से दूर रखने हेतु महत्वपूर्ण था ।मान्यता है कि संध्या के जलते दीप से धन की देवी लक्ष्मी घर में प्रवेश करती हैं उन्हें आपके घर की शोभा आमंत्रित करती है। गांव के बुजुर्ग और बड़े पुरुष संध्या वंदन या माले से भगवान का जाप इसी देहरी के बगल में बने चबूतरे में बैठकर किया करते थे। गांव के कच्चे घरों को गोबर से लेकर गेरू से सजाकर और दहलीज तथा तुलसी के चौरे को शाम के दीपक से सजना हमारी सनातन परंपरा के बड़े बुजुर्गों की सीख और घर की समृद्धि को दर्शाता है।

एक विशेष कार्य हेतु एक गांव का भ्रमण करते समयपुरानी यादें ताजा हो गई और दादी नानी के गांव की याद आ गई।एक पुराने घर में लगभग इस गांव का अकेला ऐसा घर जहां आज भी लकड़ी की चौखट , पुराने किलो से जुड़ेपल्ले दार दरवाजे , और लकड़ी की बड़ी सी दहलीज,गोबर से लीपकर और गेरू से सजाकर फूस के छप्पर से मुख्य द्वार को छाया गया वाकई बरबस ही आपको दरवाजा खटखटाना को मजबूर कर देगा। इसी के तहत हमने भी खटखटाया और इस घर के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति की उम्र लगभग पंचानबे वर्ष थी और वह बिल्कुल स्वस्थ थे घर में देशी गाय पाली गई हुई थी जिसके शुद्ध दूध दही और मट्ठे से पूरा गांव लाभान्वित होता है।हमें भी घर वालों ने ताजा मट्ठा नमक और गुड़ के साथ पिलाया संयुक्त परिवार परंपरा का बहुत ही खूबसूरत उदाहरण देखने को मिला। पुराने जमाने में देहरीज को पार करना घर की इज्जत और आबरू समझी जाती थी बहुएं घूंघट में रहती थी पर दहलीज के बाहर नहीं निकलती थी।अक्सर हम लोग फिल्मों में डायलॉग सुनते आए है कि यदि “घर की दहलीज नागी तो सारे रिश्ते खत्म” इत्यादि।

यह गांव भौंकापुर सरोजिनी नगर लखनऊ में स्थित है बहुत ही साफ सुथरा और संस्कारों से युक्त परंपराओं का निर्वाह करने वाला गांव दिखा। हर घर के सामने लगभग साफ-सुथरा स्थान था नालियां भी साफ सुथरी थी लोगों ने बताया कि सभी लोग अपना घर और पड़ोस लोग रोज सुबह खुद साफ करते हैं। गांव की महिलाएं जहां तक संभोग हो सामने शुद्ध गोबर से लिपाई भी करती हैं जबकि घर पक्के बने हो फिर भी। यहां बहुत से मंदिर थे जिसमें एक लगभग दो सौ वर्ष पुराना राम जानकी मंदिर स्थित है।

और इसी के तहत लकड़ी की चौखट वाली डेहरी आपका ध्यान अपनी ओर आकर्षित जरूर करती हैं। सनातन संस्कृति और परंपरा की देहरी को नमन करते हुए।

… कुछ शेष जो रह गया है ..
तेरी दहलीज पर ,एक दिन
छोड़ आऊँगी
देखना , तेरे आँगन के
आसमाँ पर
बादल बन, ठहर जाऊँगी ।
🙏🙏🙏🙏

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Reena Tripathi

(Reporter)

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