प्रधानमंत्री मोदीके अनेक भाषणोंसे विश्वके सबसे बड़े
लोकतंत्रके रूपमें हमारी प्रतिष्ठा और गरिमाको गहरा आघात लगता रहा है।यहां प्रस्तुत है ऐसी ही कुछ बानगियां-
1.भारतके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीने 23जनवरी,2018को दाओसमें हुए वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरमकी बैठकमें कहा-
भारतके 600करोड़ मतदाताओंने 2014में 30सालके बाद पहली बार किसी एक राजनीतिक पार्टीको केंद्रमें सरकार बनानेके लिए पूर्ण बहुमत दिया।जबकि 2014 में देशकी कुल आबादी ही करीब 130करोड़ थी, जिसमें तकरीबन 80करोड़ ही वोटर थे.
- 25दिसंबर,2017को अटल जयन्तीके अवसर पर पीएम मोदीने दिल्ली मेट्रोकी मेजेंटालाइनका उद्घाटन किया.इस अवसर पर उन्होंने कहा-पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजयेपी पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे,जिन्होंने 2002में मेट्रोकी यात्रा की थी.
जबकि देशमें पहली बार कोलकातामें 1972में मेट्रोकी नींव रखी गई थी.जिसका उद्घाटन 1984में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधीने किया था.दिल्ली मेट्रो कोलकाताके बाद दूसरी मेट्रो थी.
3.अक्टूबर,2013में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं बने थे। उन्होंने पटनामें भाजपाकी हुंकार रैलीको संबोधित किया था.इस दौरान उन्होंने कहा-
सम्राट अशोक बिहारके गौरव थे.नालंदा और तक्षशिला जैसे शिक्षण संस्थान बिहारके गौरव रहे हैं.
बिहारी भौंचक रह गए थे,मोदीके इतिहास ज्ञान पर क्योंकि तक्षशिला बिहार तो छोड़िए,भारतमें ही नहीं है. तक्षशिला फिलहाल पाकिस्तानके रावलपिण्डीके निकट एक तहसील है.ये एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है, जो प्राचीन भारतमें गांधारकी राजधानी और शिक्षाका प्रमुख स्थल था.
4.इसी हुंकार रैलीमें उन्होंने बिहारके गौरवका जिक्र करते हुए कहा-
‘बिहार इतना गौरवशाली है कि उसने सिकंदर महान की सेनाको भी हरा दिया था.सिकंदरने पूरी दुनिया जीत ली थी.लेकिन जब वो बिहार पहुंचा और बिहारियों से पंगा लिया तो उसका क्या हश्र हुआ?वो यहां आकर हार गया.’
जबकि 326ई.पू. में सिकंदर तक्षशिलासे होते हुए पुरु के राज्य की तरफ जा रहा था,जो झेलम और चेनाब नदीके बीच बसा हुआ था.आगे बढ़ते हुए वो व्यास नदी तक पहुंचा और उसके बाद वो वापस लौट गया.यानि सिकंदर कभी बिहार गया ही नहीं और पंजाबसे ही उसे वापस लौटना पड़ा था,जहां लौटते वक्त उसकी मौत हो गई थी.
5.इसी हुंकार रैलीमें नरेंद्र मोदीने कहा-
‘जब हम गुप्त साम्राज्य की बात करते हैं तो हमें चंद्रगुप्तकी राजनीति की याद आती है.’
जबकि चंद्रगुप्त गुप्त वंशके नहीं मौर्य वंशके संस्थापक थे.उन्होंने 322ईपू में मौर्य वंशकी स्थापना की थी. इन्होंने मगध साम्राज्यके नंदवंशके राजा घनानंदके शासनको खत्म किया था.इस काममें चाणक्यने उनके गॉडफादरकी भूमिका निभाई थी.
6.गुजरातके तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदीने नवंबर, 2013में खेड़ा की एक सभामें कहा था-
‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी गुजरातके बेटे थे.उन्होंने लंदनमें इंडिया हाउसका गठन किया था.1930में उनकी मौत हो गई थी.’
जबकि श्यामा प्रसाद मुखर्जीका जन्म कोलकातामें हुआ था और उनकी मौत 1953में हुई थी.मोदीका आशय श्यामजी कृष्ण वर्मासे रहा होगा,जिन्होंने लंदनमें इंडिया हाउसका गठन किया था.
7.नवंबर,2013में गुजरातके तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरातके बालासिनोरमें एक अस्पतालके उद्घाटन के अवसर पर अपने भाषणमें कहा-
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी स्वामी विवेकानंद और स्वामी दयानंद सरस्वतीके संपर्कमें रहते थे.
जबकि डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जीका जन्म 1901में हुआ था और विवेकानंदका जन्म 1863में हुआ था,1902में तो स्वामी विवेकानंदकी मौत हो गई थी।तब मुखर्जी एक साल के रहे होंगे।इसी तरह,दयानंद सरस्वतीका जन्म 1824में हुआ था और श्यामा प्रसाद मुखर्जीके जन्मसे काफी पहले 1883में ही दयानंद सरस्वतीकी मौत हो चुकी थी.
8.प्रधानमंत्रीनरेंद्र मोदी 8जून,2016को अमेरिकाके दौरे पर थे.उस वक्त अमेरिकाने भारतसे चोरी गईं 200 से ज्यादा कलाकृतियां लौटा दी थीं.इस अवसर पर पीएम मोदीने कहा था-जब हम कोणार्कके सूर्य मंदिरमें इन मूर्तियोंको देखते हैं तो लगता है कि हमारे पूर्वज साइंस और आर्टमें मास्टर थे.किसी मॉडर्न फैशनेबल गर्लको स्कर्ट पहने और हाथमें पर्स लिए ये मूर्तियां 2000साल पुरानी हैं.इसका मतलब है कि शायद ये चलन उस वक्त रहा होगा.’
जबकि कोणार्कके सूर्य मंदिरको गंगवंश के राजाओंने 13वीं शताब्दीमें बनवाया था.कोणार्कका सूर्य मन्दिर ओडिशाके पुरी जिलेमें है.इस मंदिरको 1984में यूनेस्कोने विश्व धरोहरके रूपमें मान्यता दी थी.
इसी तरह,मोदी अपने प्रलापों से महापुरुष के खिलाफ झूठे आरोप लगाते रहे हैं,उनको बदनाम करनेकी नापाक कोशिश करते रहे हैं,जो कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री से अनपेक्षित है।पेश है-कुछ दृष्टांत।
1.झूठा आरोप:
कर्नाटक विधानसभा चुनाव-प्रचारके दौरान बीदरमें 9मईको नरेंद्र मोदीने झूठा आरोप लगाया था कि कांग्रेसका कोई नेता भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्तसे जेलमें नहीं मिला।
उन्होंने कहा था-जब देशकी आज़ादीके लिए लड़ रहे शहीद भगत सिंह,बटुकेश्वर दत्त,वीर सावरकर जैसे महान लोग जेलमें थे,तब क्या कांग्रेसका कोई नेता उनसे मिलने गया था?लेकिन अब कांग्रेसके नेता जेल में बंद भ्रष्ट नेताओंसे मिलते हैं.
देशके पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरूने अपनी आत्मकथामें भगत सिंहसे लाहौर जेलमें हुई मुलाकात का जिक्र किया है.यह मुलाकात 1929में हुई थी,जब असेंबलीमें बम धमाके के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्तको गिरफ्तार किया गया था.इस किताबमें नेहरूने लिखा है-जब जेलमें भूख हड़तालको महीना भर हुआ,उस वक्त मैं लाहौरमें ही था.मुझे जेलमें कुछ कैदियोंसे मिलनेकी इजाज़त मिली और मैंने इसका फायदा उठाया.मैंने पहली बार भगत सिंह,जतीन्द्रनाथ दास और कुछ अन्योंको देखा.वे सब बेहद कमज़ोर थे और बिस्तर पर थे और उनके लिए बात करना भी मुश्किल था.
भगत सिंह चेहरेसे आकर्षक और समझदार थे और अपेक्षाकृत शांत दिख रहे थे.उनमें किसी तरहका गुस्सा नहीं दिखाई दे रहा था.उन्होंने बेहद सौम्य तरीके से बात की।लेकिन मुझे लगता है,कोई ऐसा व्यक्ति जो महीने भर से अनशन पर हो,वो आध्यात्मिक और सौम्य दिखेगा ही.जतिन दास किसी युवतीकी तरह सौम्य और शालीन दिख रहे थे.जब मैंने उन्हें देखा तब वे काफी पीड़ामें लग रहे थे.अनशनके 61वें दिन उनकी मृत्यु हो गयी थी.’
उनकी इस मुलाकातके बारेमें 9और 10 अगस्त,1929 के द ट्रिब्यून अख़बारमें छपा भी था.गौर करने वाली बात है कि उस समय ट्रिब्यून लाहौरसे ही छपता था. ट्रिब्यूनके आर्काइवके सौजन्यसे मिली इस खबरको पढ़ा जा सकता है.
9अगस्त,1929की इस रिपोर्टमें लिखा है-पंडित जवाहरलाल नेहरू,डॉ गोपीचंद,एमएलसीके साथ आज लाहौर सेंट्रल और बोरस्टल जेल गए और लाहौर कॉनस्पिरेसी केसमें भूख हड़ताल पर बैठे लोगोसे बातचीत की.पंडित नेहरू पहले सेंट्रल जेल गए,जहां वे सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्तसे मिले,उनसे उन्होंने भूख हड़तालके बारेमें बात की. इन दो कैदियों से मिलनेके बाद वे बोरस्टल जेल गए जहां वे अनशन कर रहे जतिन दास,अजय घोष और शिव वर्मा समेत अन्य लोगोंसे मिले जो अस्पतालमें भर्ती थे.
2.इससे पहले कर्नाटकके कलबुर्गी में प्रधानमंत्रीने कहा था कि फील्ड मार्शल केएम करिअप्पा और जनरल के थिमैयाका कांग्रेस सरकारने अपमान किया था.यह एक ऐतिहासिक तथ्य है.जनरल थिमैयाके नेतृत्वमें हमने 1948की लड़ाई जीती थी.जिस आदमीने कश्मीरको बचाया उसका प्रधानमंत्री नेहरू और रक्षामंत्री कृष्ण मेननने अपमान किया.क्या अपमान किया,कैसे अपमान किया,इस पर मोदी मौन रहे।
तथ्य यह है कि 1947-48की लड़ाईमें भारतीय सेना के जनरल सर फ्रांसिस बुचर थे न कि जनरल थिमैया.युद्धके दौरान जनरल थिमैया कश्मीरमें सेनाके ऑपरेशनका नेतृत्व किया था.वे 1957में सेनाध्यक्ष बने. 1959में जनरल थिमैया सेनाध्यक्ष थे.तब चीनकी सैनिक गोलबंदीको लेकर रक्षामंत्री कृष्णमेननने उनका मत माननेसे इनकार कर दिया था.इसके बाद जनरल थिमैयाने इस्तीफेकी पेशकश की थी,जिसे प्रधानमंत्री नेहरूने अस्वीकार कर दिया था.
पंकज कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ पत्रकार
You must be logged in to post a comment.