उत्तर प्रदेश लाइफस्टाइल

बढ़ते वृद्धाश्रम घटते जीवन मूल्य

Written by Reena Tripathi

लखनऊ ! भारतीय नागरिक परिषद् के बैनर से वृद्धा आश्रम सरोजिनी नगर लखनऊ में मेडिकल कैम्प का आयोजन चंद्रप्रभा हॉस्पिटल के सौजन्य से आयोजित किया गया।

इसी दौरान विचार आया क्या कभी हमने इन बुजुर्गों की मानसिक वेदना का अनुभव किया है? ……….
मन की गहराई तक झांकने की कोशिश की है………..नहीं न …..शायद यह मानसिक वेदना ही शारीरिक वेदना से कहीं अधिक घातक होती है ……………….. आइए कुछ समझने का प्रयास हैकरते शायद इन प्रश्नों के कुछ उत्तर मिल जाए।
भावनात्मक लगाव एक ऐसी जादू की झप्पी है जो शायद 2 पीढ़ियों के गैप को कम कर सकती हूं एक परिवार में छोटे बच्चों को उनके दादी और बाबा का प्यार मिल जाता है तथा जब वह छोटे बच्चे बड़े होते हैं तो कहानियों का एक नया संसार अपने पूर्वजों की कथाओं के रूप में मिल जाता है।

बशर्ते जिन्हें अपनी जीवन संध्या काल में वृद्धाश्रम की शरण लेनी पड़ती है क्योंकि ये शारीरिक रूप से सर्वथा अशक्त व असहाय हो चुके होते हैं, जो अपनी संतान से दूर एकाकी निराशापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे होते हैं व आत्म सुरक्षा हेतु या फिर अपने आत्म-सम्मान की रक्षा हेतु अपनी संतान पर आश्रित नहीं होना चाहते| अपना शेष जीवन आज सभी सुविधा संपन्न इन आश्रमों के सेवादारों की छत्र-छाया में ही व्यतीत करते हैं जहाँ वे अपने नए साथियों के साथ शारीरिक या मानसिक व्यथा तथा अपने विचारों को बाँट सकते हैं….निसंदेह आज ये वृद्धाश्रम आधुनिक सुविधा संपन्न होते हैंतथा उन्हें सुरक्षा प्रदान करते हैं पर अपनी उम्र के इस पड़ाव पर हमारे वृद्धों को ये आश्रम क्या भावात्मक सुरक्षा, आत्मीयता स्नेह दे सकते हैं जो अपनी संतान से और पारिवारिक सदस्यों से प्राप्त हो सकता है यह चिंतनीय व विचारणीय बिंदु है| अब प्रश्न यह उठता है कि आज इन वृद्धाश्रमों की बढ़ती हुई संख्या भी क्या एक ऐसा घटक है जो हमारे जीवन मूल्यों को गिराने में अपनी एक अहम् भूमिका अदा कर रहा है? यदि विचार करें तो लगता है कि कहीं न कहीं हमारी भारतीय संस्कृति पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित हो रही है ,इसके साथ ही संयुक्त परिवारों के विघटन और एकल परिवारों की बाहुल्यता से हमारी मानवीय संवेदनाएं कहीं न कहीं मृतप्राय-सी हो गईं हैं।

युवा पीढ़ी व वृद्ध पीढ़ी के विचारों में सामंजस्य के लिए कोई स्थान ही नहीं रह गया है शायद इसलिए कि आज का युवा वर्ग कुछ अधिक ही योग्य और बुद्धिमान हो गया है| जेनरेशन गैप के कारण ही ये दूरियां बढ़ रहीं हों ( इस श्रेणी में सब नहीं हैं कुछ इसके अपवाद भी हैं ) केवल स्वादिष्ट भोजन ,अच्छे कपड़े और रहने की सुविधा देना और इन्हें वृद्धाश्रम में रख कर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली जाती है या विदेश में रहने वाली संतान भी वृद्धाश्रमों में रह रहे वृद्ध माता-पिता के लिए इन आश्रमों को अनुदान राशि भेजती रहती हैं जिससे उनके बुजुर्गों को पूर्णरूपेण सुरक्षा मिलती रहे और ये वृद्धाश्रम भी पलते बढ़ते रहें………….

भारतीय नागरिक परिषद की महामंत्री रीना त्रिपाठी ने बताया भावनात्मक लगाव एक ऐसी जादू की झप्पी है जो शायद 2 पीढ़ियों के गैप को कम कर सकती हूं एक परिवार में छोटे बच्चों को उनके दादी और बाबा का प्यार मिल जाता है तथा जब वह छोटे बच्चे बड़े होते हैं तो कहानियों का एक नया संसार अपने पूर्वजों की कथाओं के रूप में मिल जाता है। बशर्ते कि बुजुर्ग भी अपनी इन नन्हे कपोलों को सहेजने का काम करें। आज बच्चों और परिवार को इस क्वालिटी टाइम दिया जाए ताकि कल वह भी अपने व्यस्ततम जिंदगी से कुछ समय निकालकर हमें दें हमारा हाल चाल पूछे, बैठने बीमार होने पर हमारे सर पर हाथ रखे और अपने सुख-दुख को इनसे बाट सके।

पैसे का अभाव या पैसे की उपलब्धता , क्या बचपन में क्रेच का परिणाम तो नही………… अर्थ के इस युग में अर्थ के लिए भागमभाग भरी जिंदगी लोगों की भावनाओं में आती कमी पर्यावरण प्रदूषण के कारण उपजीविका यह सब वृद्धा आश्रमो की वृद्धि में और भी चार चाँद लग रहे हैं………………….. आइए मिलकर एक छोटा सा प्रयास करें और अपने व्यस्ततम जीवन से कुछ समय निकालकर इन्हें उनके रहने की जगह पर दें…. Dr मिथलेश सिंह और Dr अनूप सिंह द्वारा बुजुर्गो के स्वास्थ जांच हेतु मेडिकल शिविर का आयोजन किया, आवश्यक दवाइयां और सामग्री उपलब्ध कराई,।
इस आयोजन में समाज सेवी नीता खन्ना, रीना त्रिपाठी, स्मिता देब, मेडिकल स्टाफ अंजली और पूनम उपस्थित रहीं। मेडिकल कैंप में लगभग 100वृद्ध दादा दादी का परीक्षण किया गया और आवश्यकता अनुसार दवा वितरित की गई।

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Reena Tripathi

(Reporter)

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