देर रात्रि जिला अस्पताल में भर्ती, हालत नाजुक हायर सेंटर रिफर
गोंडा। पुलिस मुठभेड़ में एक शातिर अपराधी को गिरफ्तार किए जाने की खबर है।
बताया जा रहा है कि मुठभेड़ के दौरान गिरफ्तार किया गया 24 वर्षीय सुरेंद्र गोस्वामी पुत्र निरहू गोस्वामी निवासी सोनबरसा,कांटा कोतवाली देहात, एक शातिर अपराधी है। पुलिस के अनुसार कई जनपदों में उसके विरुद्ध मुकदमे दर्ज हैं।
पुलिस के आरोप कथा के अनुसार बीती देर रात्रि करीब 2 बजे के आसपास गश्त के दौरान एस ओ जी व पुलिस टीम के साथ उसकी मुठभेड़ देहात कोतवाली क्षेत्र में किसी अज्ञात ( जो की बहुत बड़ा है )जगह पर हुई उसने पुलिस को देखते ही फायर झोंक दिया,जवाब में पुलिस ने भी गोलियां दागी,(जो की पूर्व में अन्य अपराधियों की तरह ) दाहिने पैर में लगी, जिससे वह घायल हो गया जिसे गिरफ्तार कर इलाज के लिए जिला अस्पताल भर्ती कराया गया,जहां उसका इलाज जारी है। उह बात और है कि प्रेस नोट जारी किए जाने तक उसको अस्पताल से अज्ञात मेडिकल कालेज के लिए रिफर किया जा चुका था।
पुलिस को उसके पास से एक बाइक,तमंचा,जिंदा कारतूस व खोखा मिला है। इसके विरुद्ध गोंडा बस्ती मऊ बहराइच में गैंगस्टर एक्ट वा लूट के कई मुकदमे पंजीकृत है।
पुलिस अब उससे उसके गैंग के बारे पूंछतांछ कर अन्य सदस्यों की गिरफ्तारी पर विचारं कर रही है।
दबी जुबान से मुठभेड़ को लोग बता रहे फर्जी
हर बार की तरह इस बार भी लोग पुलिस की इस मुठभेड़ को फर्जी बता रहे है। पुलिस के पिछले एक वर्ष के रिकार्ड को देखते।हुए लोग इस बात को दबी जुबान से कहने लगे हैं कि जब भी कोई नया पुलिस अधिकारी।आता है तो हर बार कोई नया अपराधी भी गुड वर्क के चलते मुठभेड़ में गिरफ्तार हो जाता है।
हर बार मुठभेड़ में कई बाते समान पाई जाती हैं जैसे~अपराधी हर बार 17 वर्ष से लेकर 30 वर्ष का ही होता है।
हर बार मुठभेड़ सुनसान जगह,एवम देर रात्रि में ही होती है,जिसे कोई पब्लिक नही देख पाती है।
मुठभेड़ के दौरान किसी भी अपराधी के पास से कोई इंपोर्टेड असलहा वा हथियार की जगह हर बार तमंचा का ही मिलना साथ में जिंदा कारतूस के साथ खोखा का मिलना एक इत्तेफाक होता है। मुठभेड़ के दौरान गोली का दाहिने पैर के घुटने के नीचे ही लगना। अस्पताल में भर्ती होने पर किसी से बात न करने देना,या घायल अपराधी को तुरंत अस्पताल से निकाल कर किसी अन्य जगह पर ले जाना।
ऐसे मामलों में प्रेस कांफ्रेंस कर जल्द से जल्द इस की सूचना मीडिया को देना यह सब वह बाते है जो इस तरह की घटनाओं को संदिग्ध बनाते है।
पुलिस सूत्रों की माने तो आमतौर पर पुलिस छोटे छोटे अपराधो के लिए आरोपियों को 48/72 घंटो तक बिना किसी लिखापढ़ी के ही थानों पर बैठाए रखती है? बहुत से मामलों में तो कई कई दिनो तक आरोपियों के घर वाले यह तक नही जान पाते की उनके घर का सदस्य है कहां?
फिलहाल पुलिस कह रही है कि बदमाश घायल होने के बाद जिला अस्पताल में भर्ती है, जबकि सच्चाई यह है कि पुलिस उसे सुबह ही करीब आठ बजे अपने साथ कही ले गई। जबकि अस्पताल सूत्रों का कहना है कि उसे लखनऊ के लिए रेफर कर दिया गया था।
एक तरफ पुलिस कह रही है की रात्रि करीब 02:00 बजे उसकी मुठभेड़ शातिर अपराधी के साथ हुई है,जबकि घायल सुरेंद्र गोस्वामी को जिला अस्पताल में रात्रि 01:25 बजे इलाज के लिए भर्ती कराया गया था।
मुठभेड़ की घटना में समय जो प्रेस नोट में दर्शाया गया है वह वास्तविक घटना देखते हुए में नही खाता है।
इस मामले में हेड कांस्टेबल लाल बहादुर सिंह के द्वारा उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था,जब उसके नोट कराए गए नंबर पर संपर्क किया गया और सुरेंद्र गोस्वामी को गोली कैसे लगी तो उसने उसे रेलवे क्रॉसिंग के पास पड़ा होना बताया था। जब उससे यह पूंछा गया कि उसे गोली किसने मारी तो उसने बताया कि इस बारे में देहात कोतवाल साहेब बताएंगे। दोपहर करीब 02:00 बजे जब कोतवाल देहात से फोन पर बात की गई तो उनका फोन स्विच ऑफ मिला, तीन बार ट्राई किया गया लेकिन फोन बंद मिला।
इसी बीच इस घटना का अनावरण पुलिस कप्तान के हाथों कर दिया जाता है अपराधी हैं तो उनके लिए पुलिस का सुरक्षा कवच भी समाज में है।इसमें कोई दो राय नहीं की पुलिस गुड वर्क करती है।लेकिन कभी कभी गुड वर्क के चलते नियमो वी कानून को भी इस्तेमाल किए जाने की बाते भी अब आम है। जिसमे सुधार की आवश्यकता है।और यह काम पुलिस के बड़े अधिकारी ही कर सकते हैं।
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