लखनऊ। उत्तर प्रदेश के लिए नया साल शायद अच्छी खबर लेकर न आए. 2023 में, राज्य में एरसोल प्रदूषण 2% बढ़ने का अनुमान है और एरसोल प्रदूषण की दृष्टि से राज्य “अत्यधिक असुरक्षित” रेड ज़ोन में बना रहेगा. एक नया अध्ययन बताता है कि राज्य में बढ़ते एरोसोल प्रदूषण से निपटने के लिए ठोस ईंधन के इस्तेमाल, विनिर्माण क्षेत्र के धूल और वाहनों के उत्सर्जन में कमी जरूरी है.
एरोसोल की उच्च मात्रा में समुद्री नमक, धूल, ब्लैक और आर्गेनिक कार्बन जैसे प्रदूषकों के साथ-साथ पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5 और पीएम 10) भी शामिल रहते हैं. साँस के साथ शरीर में प्रवेश करने से ये लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं. एरसोल ऑप्टिकल डेप्थ (एओडी) वातावरण में मौजूद एरोसोल का मात्रात्मक अनुमान है और इसे पीएम2.5 के परिमाण के बदले में इस्तेमाल किया जा सकता है.
वर्तमान अध्ययन – “भारत में राज्य स्तरीय एरोसोल प्रदूषण का गहन अध्ययन (अ डीप इनसाइट इनटू स्टेट-लेवल एरोसोल पोल्यूशन इन इंडिया)” – बोस इंस्टीट्यूट, कोलकाता के शोधकर्ताओं डॉ. अभिजीत चटर्जी, एसोसिएट प्रोफेसर और उनके पीएचडी स्कॉलर मोनामी दत्ता ने तैयार किया है. यह अध्ययन लंबे अवधि (2005-2019) के रुझान, विभिन्न स्रोतों और अलग-अलग भारतीय राज्यों के लिए भविष्य (2023) के अनुमान के साथ एरोसोल प्रदूषण का राष्ट्रीय परिदृश्य प्रस्तुत करता है.
उत्तर प्रदेश वर्तमान में रेड जोन में है जो 0.6 से अधिक एओडी वाला अत्यधिक असुरक्षित क्षेत्र है और यह पहले से ही भारत के उच्चतम एओडी स्तर वाले राज्यों में शामिल है. एरोसोल प्रदूषण में 2% की वृद्धि का अनुमान है, जिससे 2023 में एओडी परिमाण इस असुरक्षित क्षेत्र में बढ़कर 0.75 से अधिक हो जाएगा.
एओडी का परिमाण 0 से 1 की बीच आंका जाता है. 0 अधिकतम दृश्यता के साथ पूरी तरह साफ़ आकाश का संकेतक है जबकि 1 बहुत धुंधले वातावरण को इंगित करता है. 0.3 से कम एओडी परिमाण ग्रीन ज़ोन (सुरक्षित), 0.3 से 0.4 ब्लू ज़ोन (कम असुरक्षित), 0.4 से 0.5 ऑरेंज जोन (असुरक्षित) है जबकि 0.5 से अधिक रेड जोन (अत्यधिक असुरक्षित) के अंतर्गत आता है.
अध्ययन के मुख्य लेखक और बोस इंस्टीट्यूट में पर्यावरण विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ अभिजीत चटर्जी ने कहा, “भारत में यूपी सबसे प्रदूषित राज्य है और वायु प्रदूषण के लिहाज से यह अत्यधिक असुरक्षित क्षेत्र में है. वायु प्रदूषण से निपटने और मानव जीवन को बचाने के लिए ज्यादा उपयुक्त कार्य योजना तैयार करने और इसके सख्त कार्यान्वयन की आवश्यकता है.”
अध्ययन की सह-लेखिका और बोस इंस्टीट्यूट, कोलकाता की सीनियर रिसर्च फेलो मोनामी दत्ता ने विस्तार से बताते हुए कहा, “यूपी के प्रमुख एरोसोल प्रदूषण स्रोतों में वाहनों का उत्सर्जन, ठोस ईंधन का उपयोग और विनिर्माण क्षेत्र की धूल शामिल हैं. वर्षों से, हमने देखा है कि वाहनों का उत्सर्जन उपरोक्त दो अन्य स्रोतों के मुकाबले ज्यादा प्रदूषण पैदा करता है. यह उल्लेखनीय है कि ठोस ईंधन का इस्तेमाल, उत्तर प्रदेश में दूसरा सबसे अधिक प्रदूषण करने वाला स्रोत, 2005 से 2019 के बीच धीरे-धीरे 19% से बढ़कर 24% हो गया. इसी दौरान, वाहनों के उत्सर्जन का योगदान लगभग अपरिवर्तित रहते हुए 36 से 38% के बीच बना रहा जबकि विनिर्माण क्षेत्र के धूल का योगदान 15% से बढ़कर 18% तक हो गया, जिसका कारण शहरीकरण में आई तेजी है.”
अध्ययन में यूपी में बढ़ते एरोसोल प्रदूषण को रोकने के लिए कुछ अनुशंसाएं प्रस्तुत की गई हैं. शोधकर्ताओं ने कहा है कि वाहनों के उत्सर्जन से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए अन्य प्रयासों के साथ-साथ 15 साल से पुराने वाहनों पर प्रतिबंध लगाने और इंजनों के उन्नयन (अपग्रेडेशन) की आवश्यकता है. डॉ. चटर्जी ने कहा, “सरकार को घरों के अन्दर होने वाले प्रदूषण के प्रति अधिक गंभीर होना चाहिए और वायु प्रदूषण एवं मानव स्वास्थ्य पर इसके हानिकारक प्रभावों की निगरानी करने और इस संबंध में जागरूकता फैलाने के साथ-साथ तरल पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) सब्सिडी को प्रोत्साहित करना चाहिए.”
वहीं दत्ता ने कहा कि अध्ययन के दौरान ठोस ईंधन के उपयोग और वाहनों के उत्सर्जन संबंधी विशिष्ट आंकड़े उपलब्ध नहीं रहने के कारण हम यह निर्धारित करने में असमर्थ रहे कि कम असुरक्षित और सुरक्षित क्षेत्र तैयार करने के लिए इन स्रोतों से होने वाले प्रदूषण की मात्रा को कितना कम करने की जरुरत है. उन्होंने आगे कहा, “हालांकि, राज्य के प्रदूषण स्तर को कम करने के लिए कार्य योजना की तत्काल जरुरत है. यूपी उच्च मृत्यु दर वाले राज्यों में से एक है”.
You must be logged in to post a comment.