लखनऊ। भारत की राजनीति कुर्सी पाने के लिए किस हद तक निकृष्टि और नीचता पर उतर सकती हैं इसका जीता जागता प्रमाण पिछले कुछ दिनों से तमाम नेताओं के बयानों से सामने आ रहा है, सनातन के सबसे बड़े ग्रन्थ श्रीराम चरित मानस पर और उसकी कुछ चौपाइयों की मनमानी व्याख्या कर सनातन के एक वर्ग कों दूसरे से अलग कर उन्हें भड़का कर उनका वोट पाने के लिए की जा रही निकृष्टि राजनीती ग़ज़ब ग़ज़ब बयान दे रही है।
अभी कुछ ही दिन हुए ज़ब बिहार के शिक्षा मंत्री ने श्रीराम चरित मानस पर सवाल उठाया तो अब कई दलों से भटक कर समाजवादी पार्टी में आये नेता स्वामीप्रसाद मौर्य ने भी मानस पर सवाल उठा दिया है। प्रकरण में खास बात तो ये है की पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मामले पर मौर्य कों दण्डित करने के बजाय उन्हें अपना पूरा समर्थन देते हुए उन्हें राष्ट्रीय महासचिव बनाकर एक तरह से उन्हें पुरस्कृत करने का काम किया है।
सनातन के सबसे बड़े ग्रन्थ पर सवाल उठाने और उसका राजनैतिक लाभ लेने की कुछ दलों द्वारा की जा रही कोशिश निकट भविष्य में क्या रंग दिखाती है ये तो समय बताएगा लेकिन इन बयानों के चलते जिस सामाजिक संरचना कों आघात पहुँचाया जा रहा है वह बहुत ही ख़तरनाक और देश के लिए हानिकारक होगा ये निश्चित है जिसका प्रमाण रविवार से ही उस समय दिखाई देना शुरू हो गया ज़ब प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कुछ लोगो द्वारा मानस की प्रतियों कों जलाया गया।