लखनऊ। उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग एवम डॉ०राम मनोहर लोहिया राष्टीय विधि विश्वविद्यालय लखनऊ के संयुक्त तत्वाधान में चल रहे प्रोजेक्ट “डिजिटल मानवाधिकार : उत्तर प्रदेश राज्य में उभरते आयाम एवम चुनौतियां” के तहत डॉ०राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्विद्यालय में डिजिटल मानवाधिकारों पर अंत: विषय व्याख्यान का प्रारंभ हुआ।
इसमे प्रोजेक्ट निदेशक डॉ०अमनदीप सिंह और डॉ०विकास भाटी ने सभी अतिथि वक्ताओं और प्रतिभागियों का स्वागत करके कार्यक्रम की शुरुआत करी । मुख्य वक्ता समाजशास्त्र विभाग के प्रो०संजय सिंह ने इंटरनेट के बढ़ते महत्व से जुड़े सामाजिक मुद्दे और चुनौतियों पर अपने विचार व्यक्त किए। प्रोo सिंह ने कहा कि डिजिटलीकरण समाज के कई पहलुओं को एकीकृत करता है और डिजिटल परिवर्तन से ही भविष्य की चुनौतियों का सामना किया जा सकता है। इंटरनेट प्रौद्योगिकी ने सूचना संचार के नए रूपों एवं स्रोतों और इसे प्रसारित करने के नए तरीकों को इज़ाद किया है । ये बदलाव लोगों के जीवन, सांस्कृतिक पैटर्न और सामाजिक प्रवृत्तियों के साथ-साथ अर्थव्यवस्था जैसी बड़ी सामाजिक संरचनाओं को कैसे प्रभावित करेंगे, समाजशास्त्रियों के सामने आज एक बड़ी चुनौती है।
दुसरे वक्ता डॉ०विजय अवाना, अधिवक्ता उच्च्तम न्यायलय ने बताया कि नैतिक आधार पर, प्रत्येक व्यक्ति निजता के अधिकार का हकदार है। भारतीय न्यायपालिका आंशिक रूप से उसी से सहमत है। पर राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु व्यक्तिगत स्वायत्तता और राष्ट्रीय सुरक्षा के परस्पर विरोधी आदर्शों के बीच संतुलन बनाना बहुत ज़रूरी है। भारत का संविधान “भारत की संप्रभुता और अखंडता के हित में, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता, या अदालत की अवमानना के संबंध में निजता के अधिकार पर उचित प्रतिबंध प्रदान करता है।यही कारण है कि राज्य की निगरानी को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता है
तीसरे वक्ता डॉ० अनिल कुमार मौर्या , बनारस हिन्दू विश्विद्यालय ने अपने व्याख्यान में बताया कि निजता का मानव अधिकार किसी व्यक्ति की स्वयं के लिए यह निर्धारित करने की क्षमता से संबंधित है कि कब, कैसे और किस उद्देश्य से उनकी व्यक्तिगत जानकारी दूसरों द्वारा प्रबंधित की जाती है। गोपनीयता की रक्षा मानवीय गरिमा, सुरक्षा और आत्मनिर्णय सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। यह व्यक्तियों को स्वतंत्र रूप से अपना व्यक्तित्व विकसित करने की अनुमति देता है। डॉ० मौर्या ने बताया कि जैसे-जैसे डेटा संग्रह उपकरण अधिक परिष्कृत होते गए, कंपनियों ने व्यक्तिगत डेटा संग्रह के साथ विभिन्न रूपों में प्रयोग करना शुरू कर दिया, जिसमें मेलिंग सूची और ग्राहक बैंकिंग जानकारी एकत्र करना शामिल था। ऐसे में डाटा सुरक्षा से जुड़े कानूनी प्रावधानों में उचित संशोधन अति आवश्यक हैं।
आखिरी में विधि विश्वविद्यालय के डॉ०अब्दुल्ला नासिर ने अंतरराष्ट्रीय परिपेक्ष में इंटरनेट शटडाउन पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने सरकार द्वारा इंटरनेट निलंबन की आवृत्ति, कारण और विवाद की व्याख्या की। डॉ०अब्दुल्ला नासिर ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति (यूएनएचआरसी) ने 2016 में इंटरनेट तक पहुंच को बुनियादी मानव अधिकार बताते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था। इसमें राज्यों से ऑनलाइन मोड में आम लोगों को सूचना के प्रसार को जानबूझकर रोकने से बचने का भी आग्रह किया गया है । अपने व्याख्यान में डॉ०अब्दुल्ला नासिर ने समझाया कि सरकार को इंटरनेट शटडाउन लागू करने के लिए सार्वजनिक सुरक्षा, एहतियाती उपाय, राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे व्यापक शब्दों का उपयोग नहीं करना चाहिए। शटडाउन की अनुमति केवल उचित आधारों पर दी जानी चाहिए जो लिखित रूप में हों और जनहित पर आधारित हों न कि निहित स्वार्थों पर आधारित हों।
मंच का संचालन विश्विद्यालय की एलएल०बी की चतुर्थ वर्ष की छात्रा रूपल जयसवाल ने किया।
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